सुरेंद्र किशोर : गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने गुरु की याद में..
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर
अपने गुरु की याद मे
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इस अवसर पर एक ऐसे स्कूल शिक्षक बैकुंठ बाबू
को मैं याद कर रहा हूं जिन्होंने 62 साल पहले मुझे पढ़ाया था।
पता नहीं, आज के कितने शिक्षकों को उनके विद्यार्थी दस साल के बाद भी याद रखेंगे !
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बिहार के सारण जिले के एकमा हाई स्कूल के,जो बाद में उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय बना, प्रधानाध्यापक बी.एन.सिंह को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला था।
निजी प्रबंधन में चल रहे एक ऐसे स्कूल में वह पढ़ाते थे जिनके शिक्षकों को समय पर वेतन देने के लिए कभी -कभी आस-पड़ोस के धनवान लोगों से कर्ज भी लेना पड़ता था प्रबंधन को।
पर, मैंने कभी नहीं सुना कि शिक्षकों ने हड़ताल करके पढ़ाई बाधित कर दी।
कई बार मैंने देखा कि स्कूल से लौटकर बैकुंठ बाबू ने अपनी धोती को पानी में भिंगोया,उसे निचोड़ा और सूखने के लिए डाल दिया ताकि उन्हें वही धोती पहनकर अगले दिन स्कूल जाना होता था।
इससे आप अनुमान लगाइए कि उन्हें कितना वेतन मिलता होगा !
इसके बावजूद………!
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सन् 1963 में एकमा स्थित अलख नारायण सिंह उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य बैकुण्ठ बाबू को भी तत्कालीन राष्ट्रपति डा.एस.राधाकृष्णन ने देश के अन्य अनेक शिक्षकों के साथ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था।
इस सम्मान के वे सर्वथा योग्य थे।
योग्यता,कर्मठता और अनुशासनप्रियता के कारण इलाके के लोगों और छात्रों में उनका बड़ा सम्मान था।
वैसे भी उन दिनों आम शिक्षक भी सम्मान के पात्र होते थे,पर बैकुण्ठ बाबू तो विशेष थे।
बैकुण्ठ बाबू लंबे समय तक एकमा स्थित हाई स्कूल के प्राचार्य रहे।
मैं 1962-1963 में एक साल के लिए उस स्कूल का छात्र था।
मैंने वहां से सन 1963 में मैट्रिक पास किया।
मैं साइंस का विद्यार्थी था।
साइंस के विद्यार्थी अपनी हिन्दी पर अधिक ध्यान नहीं देते।
मेरा भी वही हाल था।
बैकुण्ठ बाबू हिन्दी भी पढ़ाते थे।
उन्होंने एक ही साल में मेरी हिन्दी को मांज दिया।
यदि पत्रकारिता लायक मेरी हिन्दी बन पड़ी तो उसमें बैकुण्ठ बाबू की मंजाई का योगदान था।
शिक्षा के गिरते स्तर को देख कर पिछले दिनों बिहार सरकार के राज्य मुख्यालय के विशेष निदेश पर जिला स्तर के पदाधिकारियों ने स्कूलों का निरीक्षण किया था।
बहुत सी गड़बड़ियां पाई गयीं।
क्योंकि नियमित निरीक्षण की परंपरा अब लगभग बंद ही हो चुकी है।
मेरे छात्र जीवन में अक्सर निरीक्षक स्कूलों में आया करते थे।
एकमा स्कूल में मेरे सहपाठी रहे सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह(छपरा) ने तो अंग्रेजों के जमाने की एक बड़ी बात बताई।
उन्हें उनके पूर्वजों ने बताया होगा।
अंग्रेज गवर्नर रेल मार्ग से एकमा से गुजर रहे थे।
अ.ना.सि.उच्च विद्यालय का भवन ट्रेन से ही दिखाई पड़ता है।
गवर्नर साहब अनायास बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के ट्रेन से उतर कर स्कूल में चले गए।
सुबह के करीब नौ बजे थे।
चपरासी राम पुकार स्कूल में हाजिर था।
हेड मास्टर साहब यानी बैकुण्ठ बाबू अपने आवास से स्कूल के रास्ते में थे।
गवर्नर ने सन 1932 में स्थापित उस स्कूल का निरीक्षण किया।
हेड मास्टर साहब के आने के बाद गवर्नर ने स्कूल की उनसे तारीफ की।
यह सब प्रबंधन के सहयोग और शिक्षकों की कत्र्तव्यनिष्ठा का परिणाम था।
सन 1963 में उस स्कूल से फस्र्ट डिविजन से पास करने वाले हम लोग 14 छात्र थे।
उन दिनों सारण जिले के अतरसन हाई स्कूल और जिला स्कूल जैसे थोड़े से स्कूलों को छोड़कर एकमा स्कूल की यह संख्या काफी मानी जाती थी।
अतरसन हाई स्कूल से हर साल औसतन तीस छात्रों को फस्र्ट डिविजन मिलता था।
उन दिनों सच्ची पढ़ाई और सच्ची परीक्षा हुआ करती थी।
एकमा हाई स्कूल की स्थापना वहां के एक नामी परिवार ने
की थी।
उस परिवार में पूर्व मुख्य मंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह की पत्नी किशोरी सिन्हा की बुआ ब्याही हुई थीं।
बैकुण्ठ बाबू को खाते-पीते, चलते-फिरते,पढ़ाते -लिखाते और अपने आॅफिस में बैठकर काम करते मैंने करीब देखा था।
सब में शालीनता और गरिमा थी।
ऋषि की तरह थोड़े में अपना काम चलाते थे।
शाकाहारी थे।
आवास से स्कूल पैदल ही जाते थे।
पर, कहीं भी खड़ा होकर किसी से बात नहीं करते थे।
कई बार मैंने देखा कि स्कूल से लौट कर उन्होंने अपनी धोती को पानी में भिंगोया,उसे निचोड़ा और सूखने के लिए डाल दिया ताकि उन्हें वही धोती पहन कर अगले दिन स्कूल जाना था।
बैकुण्ठ बाबू के छात्र रहे प्रो. राजगृही सिंह के अनुसार
‘बैकुण्ठ बाबू के कारण उस जिले में उस स्कूल की पहचान थी।
उस स्कूल में एक से एक योग्य शिक्षक थे जिस तरह के योग्य शिक्षक अब आम तौर पर काॅलेजों में भी नहीं होते।
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यह बात कम ही लोगों को मालूम होगी जो मैं बताने जा रहा हूं।
अंग्रेजों के जमाने में काॅलेज के प्राचार्य की बदली हाई स्कूल के प्राचार्य के पद पर और हाई स्कूल के प्राचार्य की बदली काॅलेज के प्राचार्य
पद पर हुआ करती थी।
ऐसे कई नाम बिहार के उच्च शिक्षा निदेशक रहे दिवंगत प्रो.नागेश्वर प्रसाद शर्मा ने मुझे दिए थे।
हेड मास्टर साहब यानी बैकुंठ बाबू चाहते थे कि ‘हमारे स्कूल के छात्र अच्छी शिक्षा ग्रहण करें और जीवन में काफी तरक्की करें।’
उनकी इच्छा पूरी भी होती रहती थी।
मेरे ही बैच के कई छात्र बाद में इंजीनियर और डाॅक्टर बने थे।
उन दिनों इंजीनियर और डाक्टर बनने की होड़ रहती थी।
इन दो में से भी डाक्टर की अपेक्षा इंजीनियर बनने की अधिक होड़ रहती थी।
प्रशासनिक सेवा प्रतिभाशाली छात्रों की तीसरी प्राथमिकता रहती थी।
हेड मास्टर साहब मशहूर गांव सिताब दियारा के मूल निवासी थे।
उसी गांव के राज्य सभा के उप सभापति मान्यवर हरिवंश जी भी हैं।
हरिवंश जी भी जब अपने गांव के स्कूल में पढ़ते थे तो वे घर से बोरा लेकऱ स्कूल जाते थे ताकि क्लास रूम में नीचे जमीन पर बिछा कर उस पर बैठ सकें।