कौशल सिखौला : मोदी-पुतिन.. श्रेष्ठतम विश्व कूटनीति, हमें इस पर गर्व है

दो दिनों में करीब 24 घण्टे की रूस यात्रा के दौरान यदि पुतिन और मोदी करीब 10 घंटे साथ साथ मैन टू मैन बिताते हैं तो दोनों देशों के बीच 75 साल पुरानी गहरी मित्रता का गहरा रहस्य समझ लीजिए । चीन और नॉर्थ कोरिया से बहुत नजदीकी संबंध बढ़ा चुके रूस ने भारत की पारंपरिक दोस्ती को कितना अधिमान दिया है , मोदी 3 कार्यकाल की यह उल्लेखनीय सफलता है।

संयोग देखिए जिस समय भारत और रूस कूटनीति के शिखर का स्पर्श कर रहे थे उस वक्त रूस यूक्रेन युद्ध भी चल रहा था और उधर अमेरिका में यूक्रेन को लेकर 17 नाटो देशों की बैठक भी चल रही थी । मोदी को भोजन के लिए अपनी गाड़ी में खुद ड्राइव करते हुए जिस तरह निजी भोज के लिए अपने घर लेकर गए , भारत रूस संबंधों के लिए यह मील का पत्थर है । खास बात यह है कि चीन ने भी बयान जारी करते हुए भारत और रूस के बीच चल रहे नैसर्गिक संबंधों का स्वागत किया है । दस वर्षीय कार्यकाल में पुतिन और मोदी 17 बार मिले । यह मामूली बात नहीं है।

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कूटनैतिक जगत का जिन्हें अनुभव है , वे जानते हैं कि भारत ने पश्चिम और पूरब के बीच कूटनीति की ऐसी इमारत खड़ी की है कि किसी को गिला नहीं । दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका भी जानता है कि रूस ने भारत का उस समय साथ दिया था जब पाकिस्तान को सपोर्ट करने के लिए अमेरिका ने अपना सातवां नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया था।

लेकिन बंगलादेश निर्माण के समय अमेरिका के तब होश उड़ गए थे जब उसे पता चला कि उसके नौसैनिक बेड़े को नीचे ही नीचे रूस की पनडुब्बियों ने चारों तरफ से घेर लिया था । अमेरिका ने तब चुपचाप वापस लौटने में ही अपनी और पाक की भलाई समझी थी।

लेकिन तब से आज के हालात में जमीन आसमान का फर्क है । यह 21वीं सदी का भारत है जो दुश्मन को घर में घुसकर ठोकना जानता है । भारत आज ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुका है और दुनिया की तीसरी शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है । खुद दुनिया मान चुकी है कि वर्तमान युग में भारत को नकारना किसी भी ताकत के लिए संभव नहीं।

आपाधापी के दौर में कूटनीति के रास्ते दुनिया को जोड़ने और साधने की ताकत केवल भारत में है और यह पूर्ण सत्य है । यद्यपि रूस में मोदी और पुतिन के गले मिलने पर जेलेंस्ली ने नाखुशी जाहिर की है , तथापि साझा बयान में युद्ध को लेकर मोदी द्वारा पुतिन को दी गई नसीहत से यूक्रेन को भारत की कूटनीति समझ भी आ गई । भारत की कुछ मजबूरियां हैं जिन्हें अमेरिका और रूस दोनों जानते हैं । इसलिए दोनों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों का आर्थिक लाभ हमारे हिस्से आ रहा है । इसे ही कहा जाता है श्रेष्ठतम विश्व कूटनीति । हमें इस पर गर्व है।

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