डॉ. पवन विजय : देश में आग लग जाए पर…
बहुत से लोग हैं जो देश में किसी भी आपत्ति के समय बिल में घुस जाते हैं, विवादित मुद्दों या कहें असुविधाजनक बातों पर लिखना नही चाहते। वह बड़े पोशीदा लोग हैं, डिज़ाइनर लोग हैं अपनी रीच और क्रीच पर बड़ा ध्यान देने वाले लोग हैं। वह लिखेंगे दुनियाँ भर की बातों पर, उनके पास लीपने की अद्भुत कला होती है। देश में आग लग जाए उनकी लेखनी साग भात से लेकर चाँद के इकसठवें गड्ढे के निरुपण में ही लगी रहेगी।
देश में आग लग जाए पर तमाम महिला लेखकों को अपनी नेल पॉलिश पर, अपनी कलाकारी बीघा भर लीपना ही है, पुरुष लेखकों को उस पर अहा रुपम अहा धूपम लिखना ही लिखना है।
देश में आग लग जाए बड़का लेखक/लेखिका के अपने दुःख खत्म ही नही होते।
देश में आग लग जाए पर टॉमी पर लिखी कविताओं पर सेमीनार होकर रहेगा।
देश में आग लग जाए पर जन्मदिन/सालगिरह की अवतारी विरुदावली चलती रहेगी।
ऐसे लोगों को किसी के दुःख, पीड़ा से कोई मतलब नहीं, ये सब केवल किताबी बातें और बुक सब्जेक्ट हैं।
देश में आग लगती है तो उसे बुझाने वाले, देश और संस्कृति का जब अपमान होता है तो उसका प्रतिरोध करने वाले लोगों को ये लोग बड़े हीन भाव से देखते हैं। ये चाहते हैं कि इनकी तारीफ़ में लोग धरती आकाश नाप दें पर इनके मुख से भला किसी के लिए शुभ वचन निकल जाएं मजाल है! अगर निकलेंगे भी तो स्वार्थ के लिए।
देश के लिए,संस्कृति के लिए लिखने पर रीच घटती है, रोज लिखने पर रीच घटती है, राष्ट्रवाद पर लिखने से आप अलग थलग पड़ जाते हैं।यह सब जानते हुए जो बिना परवाह किये एक पंक्ति ऐसा लिखते हैं कि राष्ट्र, संस्कृति, समाज, धर्म उससे पुष्ट होता है तो वह लिखा मेरे लिए शब्दों के मदारियों से लिखे का सौ गुना आदरणीय होता है।
उन लोगों का आदर करिये जो निरंतर अपनी संस्कृति सभ्यता के लिए न केवल लिख रहे बल्कि जमीन पर काम कर रहे।
महादेव।।
