सतीश चंद्र मिश्रा : मुंबई 26/11.. भारतीय मीडिया के कुकर्म

वह एक संयोग मात्र था या पाकिस्तान के साथ
भयानक सांठगांठ का परिणाम…???
26/11 के आतंकवादी हमलों पर एक सुनवाई के दौरान लाइव कवरेज के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जमकर फटकार लगाते हुए कहा था कि, “ऐसा करके भारतीय टीवी चैनलों ने राष्ट्रीय हित को किनारे कर दिया।” सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि, “टीवी चैनलों द्वारा लाइव दिखाए जाने वाले दृश्यों को सभी आतंकवादियों के निष्प्रभावी होने और सुरक्षा अभियान समाप्त होने के बाद भी दिखाया जा सकता था। परंतु मीडिया ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें टीआरपी रेटिंग के बड़े शॉट लगाने थे। ऐसी परिस्थितियों में ही किसी संस्था की विश्वसनीयता की परीक्षा होती है। मुख्यधारा की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा मुंबई आतंकी हमले की कवरेज ने इस तर्क को मजबूत किया है कि मीडिया को भी रेगुलेट करने की आवश्यकता है।”
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई उपरोक्त टिप्पणी आज पुनः प्रासंगिक हो गई है क्योंकि आज यह सवाल सिर उठाए खड़ा हो गया है और जवाब मांग रहा है कि, सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज चैनलों की करतूत पर जो टिप्पणी की थी, वह करतूत अधकचरे, अपरिपक्व अति उत्साह की कोख से उपजा मात्र एक संयोग था या फिर एक सोची समझी साजिश के तहत की जा रही आतंकवादियों की सहायता थी.? याद करिए कि, किसी और ने नहीं बल्कि खुद लश्कर ए तैय्यबा के आतंकी सरगना ने बाकायदा टीवी इंटरव्यू में कहा था कि, भारत में सभी लोग खराब नहीं हैं, वहां बरखा दत्त सरीखी अच्छी पत्रकार और कांग्रेस सरीखी अच्छी पॉलिटिकल पार्टी भी हैं।
यही नहीं कुलभूषण जाधव के मामले में फरवरी 2019 में जिन दो भारतीय पत्रकारों की रिपोर्ट पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) को सौंपी थी उनमें से एक पत्रकार तो करन थापर था, जो गांधी परिवार का करीबी रिश्तेदार है. दूसरे पत्रकार का नाम था प्रवीण स्वामी. इन दोनों पत्रकारों ने अपनी रिपोर्टों में यह सिद्ध करने का कुकर्म किया था कि कुलभूषण जाधव भारत का जासूस है जो पाकिस्तान में जासूसी कर रहा था.
अतः मुम्बई हमले के समय पाकिस्तानी आतंकियों को कवरेज के बहाने सूचनाएं पहुंचाने का कुकर्म भारतीय मीडिया का एक वर्ग अनजाने में या जानबूझकर कर रहा था। इसे आसानी से समझा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि, 26/11 के मुंबई हमले के दौरान बरखा दत्त द्वारा की गई लाइव कवरेज पर बहुत गंभीर सवाल उठे थे। लेकिन उन सवालों की कभी कोई जांच नहीं की गई। वह अकेली नहीं थी। कम से कम आधा दर्जन और न्यूज़चैनलों के पत्रकार भी इसी कुकर्म में जुटे हुए थे। तब तत्कालीन यूपीए सरकार के संरक्षण के कारण पत्रकार भेष वाले आस्तीन के सांपों की जांच नहीं हो सकी थी। लेकिन आज जब मोदी सरकार लंबी लड़ाई के बाद तहव्वुर राणा को भारत लाने में सफल हुई है, तो इसकी जांच होनी ही चाहिए। तहव्वुर क्योंकि उन आतंकवादियों के हेडमास्टर की भूमिका में था इसलिए उसको इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि, 26/11 के मुंबई हमले के दौरान लगभग आधा दर्जन न्यूज़चैनलों के पत्रकारों का देशघाती आचरण मात्र एक संयोग था या पाकिस्तान के साथ भयानक सांठगांठ का परिणाम। उम्मीद है कि, 17 वर्ष बाद ही सही लेकिन देश को अब इस सवाल का जवाब अवश्य मिलेगा।

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