सुरेंद्र किशोर : हमारा भारत अस्सी के दशक का और आज का ! अमरीकियों की नजरों में
न्यूयार्क टाइम्स संवाददाता की, अस्सी के दशक कीे
पटना यात्रा के बारे में
यहां मैं बता रहा हूं।
भारत के बारे में उनकी तब की टिप्पणियां भी।
नरेंद्र मोदी की ताजा अमरीकी यात्रा के बारे में आप बताइए।
तब मैं दैनिक ‘आज’ (पटना) में काम करता था।
लेखक व पत्रकार माइकल टी.काॅफमैन ( 1938-2010)दिल्ली से पटना आने वाले थे।
न्यूयार्क टाइम्स के नई दिल्ली ब्यूरो प्रमुख काॅफमैन की उससे पहले दिल्ली में जार्ज फर्नांडिस से बात हुई थी।
जार्ज ने उनसे कहा था कि तुम ‘आज’ अखबार में सुरेंद्र किशोर से मिलना।
वह बिहार के बारे में तुमको सब कुछ बता देगा।
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पटना पहुंचकर माइकल ने मुझे फोन किया।
मैं पाटलिपुत्र अशोक में जाकर उनसे मिला।
मिलते ही उन्होंने पूछा कि बिहार में सुब्रह्मण्यम स्वामी का कितना जनाधार है ?
मैं कहा कि कोई खास नहीं।
मैंने उनसे पूछा,क्यों पूछ रहे हैं ?
क्योंकि वह सवाल मुझे अटपटा लगा।
दरअसल स्वामी को हम उनकी प्रतिभा व हिम्मत के कारण जानते रहे।
उनके जनाधार के कारण नहीं।
उन दिनों बिहार से सरयुग राय उनके साथ थे।
माइकल में कहा कि स्वामी हाल में न्यूयाॅर्क में थे।
वे जल्दीबाजी में लगे।
उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे तुरंत इंडिया फ्लाई करना है।
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की स्थिति डांवाडोल चल रही है।
मेरे पी.एम.बनने के ब्राइट चांस हैं।
(आज कई नेता यदि इस देश के पी.एम. बनना चाहते हैं तो कौन सा अन्याय किसके साथ कर रहे हैं !)
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खैर, माइकल की इस बात पर तब हंसने के सिवा और क्या किया जा सकता था !
मैं माइकल के साथ कई घंटे तक होटल में रहा।
भोजन भी उन्हीं के साथ हुआ।
मैंने एक बात गौर से देखी।
उन्होंने बहुत कम खाया–शायद मछली के एक -दो टुकड़े मात्र ।
मैं तो आदतन (अब वह मेरी आदत छूट गयी है।)
ओवर इटिंग करता रहा।
खैर, बाद में सोचा कि संपन्न देश के अधिकतर लोग स्वस्थ इसलिए भी रहते हैं क्योंकि वे भूख से कम खाते हैं।
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बहुत सारी राजनीतिक बातों के बाद मैंने माइकल से पूछा,‘‘अमेरिका के लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं?’’
उन्होंने नाटकीय ढंग से बगल की दीवाल पर लगे विश्व के नक्शे पर अपनी कलम घुमाई और विनोद की मुद्रा में पूछा–
‘‘कहा हैं भारत ?’’
मैंने कहा कि आप तो भारत में ही हैं।
उन्होंने कहा कि भइ्र्र अमेरिका के लोगों को भारत के बारे में सोचने की फुर्सत ही कहां है ?
फिर भी मैंने उन पर बहुत दबाव डाला और कहा कि बता ही दीजिए कि क्या सोचते हैं ?
उन्होंने कहा कि बताने पर आप बुरा मान जाएंगे।
मैंने कहा– कत्तई नहीं।
मैं भी पत्रकार ही हूं।
वस्तुगत ढंग से चीजों को देखने की आदत हो गई है।
माइकल ने हिचकते हुए कहा कि
‘‘यदि आप मेरे देश में होते तो सबसे पहले आपको नजदीक के अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता।
(तब मैं और भी दुबला-पतला था।
मरीज की तरह लगता था)
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माइकल के अनुसार–
‘‘हमारे यहां के कुछ लोगों की यह धारणा है कि भारत के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं।
अन्य एक तिहाई लोग अस्पतालों में।
बाकी एक तिहाई जिद्दी,अड़ियल और झक्की हैं।
मुझे याद है, उन्होंने ‘वेवर्ड’ शब्द का इस्तेमाल किया था।
इसका वही अर्थ होता है।
उन्होंने भारत के संदर्भ में वेवर्ड को परिभाषित नहीं किया।
मैंने पूछा भी नहीं।
शब्दकोष में वेवर्ड के कई अर्थ हैं।
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अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ताजा अमरीका यात्रा का आकलन करें।
अमरीकियों की दृष्टि में भारत कितना बदला है ?
मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि सिर्फ मोदी के कारण ही बदला है।
पर, मोदी के कारण सबसे ज्यादा बदला है।
अमेरिका में बसे भारतीय बहुत अच्छा कर रहे हैं।वे हमारे एम्बेसडर हैं।