डॉ. भूपेंद्र सिंह : कुंभ.. ऐसे बेवक़ूफ़ों को उनके घर वाल नहीं सुनते, आप क्यों इतना पेन ले रहे हैं ?

नदी के बीच से पानी लीजिए, उसे चेक करिए, बैक्टीरिया भी कम मिलेगा और ऑक्सीजन लेवल भी चकाचक रहेगा।
आप नदी के किनारे के धीमे बहाव वाला और अधिक उपभोग वाला पानी लीजिए, बैक्टीरिया खूब रहेगा और ऑक्सीजन भी कम होगा।
इसी तरह जब पीछे से पानी छोड़ा गया है और उस पानी के पहुँच के समय सैंपल लेंगे तो क्वालिटी अच्छी रहेगी लेकिन पानी जब बंद कर दिया गया और रफ़्तार कम हो गई तब सैंपल लेंगे तो क्वालिटी ख़राब रहेगी।
ये सब एक खेल होता है। आपकी जैसी नीयत रहेगी वैसा रिपोर्ट पैदा हो जाएगा। इसमें इतना न साज़िश है और न ही रॉकेट साइंस।
जिसको आस्था है वह दिल्ली के यमुना में छठ पूजा कर ले रहा है और जिसको नहीं है, वह कहीं नहीं करने वाला। जो विरोधी है उसको अच्छाई ले बुराई खोजना है और जो पक्ष में है वह बुराई में भी अच्छाई खोज लेगा।
कुल मिलाकर इस बार कुंभ मेले में अधिकाधिक हिंदू समाज का प्रतिभाग हुआ। यह उत्तर प्रदेश के आध्यात्मिक स्थली में बड़ा आर्थिक बूम लेकर भी आया है। समाज ने जुड़ाव महसूस किया है। भाषा, प्रांत और बोली की दीवार टूटी है। आर्थिक रूप से भी इन स्थानों पर बड़ा लाभ हुआ है। इसी कारण उत्तर प्रदेश के इस बार के बजट में अन्य कई स्थानों के विकास के लिए भी धन का आवंटन हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अच्छे नीयत से योजना बनाई, खूब प्रचार प्रसार किया और आशा से अधिक लोगों ने भाग लिया है और ले रहे हैं। काशी और अयोध्या को भी इसका लाभ मिला है। स्थानीय नागरिक जो इससे प्रत्यक्ष लाभान्वित नहीं होते, वह जरूर कष्ट उठाए हैं और उससे थोड़े दुखी हैं लेकिन 12 वर्ष में एक बार होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। इसके कारण अंततः लाभ प्रत्येक नागरिक को मिलेगा, अन्यान्य कारणों से।
फेसबुक पर आपको तमाम झोलाछाप बैक्टीरियोलॉजिस्ट, वैज्ञानिक इस समय दिख सकते हैं। संभल कर रहें, मस्त रहें। ऐसे बेवक़ूफ़ों को उनके घर वाल नहीं सुनते, आप क्यों इतना पेन ले रहे हैं?

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