कौशल सिखौला : 270 करोड़ वैक्सीन लगवाने वालों में से यदि 0.000001% लोग साइड इफेक्ट्स के शिकार हुए तो चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से यह विषय चर्चा के योग्य नहीं
मार्च 2020 में दुनियाभर के 800 करोड़ बेकसूर लोग अत्यंत भयावह महामारी कोरोना की चपेट में आ गए , जिसके बारे में पूरे संसार को कुछ भी नहीं पता था । चिकित्सा और विज्ञान जगत की बड़ी बड़ी हस्तियों को यह समझ नहीं आया कि एक साथ सर्वत्र फैल गई इस बीमारी का इलाज क्या है । कोरोना या कोविड 19 के इलाज की एंटीडॉट उस चीन के पास भी नहीं थी , जिसकी बुहान प्रयोगशाला में चमगादड़ों से यह खतरनाक रसायन दुश्मन देशों में कैमिकल वार के लिए बनाया जा रहा था।
कोरोना ने देखते ही देखते समूचे जगत के 194 देशों को लाकडाउन जैसे अत्यंत घोर आपातकाल में झोंक दिया । उस समय तमाम सरकारें एवं चिकित्सा जगत बेहद बेबस लाचार नजर आए । दुनिया के पास सौ साल बाद आई इस अज्ञात आपदा से मानवजाति को बचाने के लिए एक भी दवा मौजूद नहीं थी । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाथ खड़े कर दुनिया को घोर अन्धकार की ओर धकेल दिया । चारों तरफ मौत का मंजर फैलता जा रहा था । हर देश में लाखों लोगों को तड़फते और मरते हुए हम सभी देख रहे थे।
कोई भी नहीं चाहेगा कि ऐसे खतरनाक दौर पर एक बार फिर से चर्चा की जाए । करनी इसलिए पड़ रही है , चूंकि ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन अचानक चर्चा में आ गई है । भारत में इसी वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से लगाया गया । यह उसी दौर की सत्यकथा है जब पूरा जगत किसी भी तरह मनुष्य के वजूद को बचाने में जुटा हुआ था । फाइजर , जॉनसन आदि वैक्सीन उसी दौर में विकसित हुई और लगाई गई । भारत में कोविशिल्ड , कोवैक्सिन और बाद में स्पूतनिक लगाई गई । अब चौथे साल रिपोर्ट आई है कि कोविशील्ड खून में थक्का जमा सकती है।
जाहिर है यह भारत है , चुनाव चल रहे हैं अतः मौका तलाशने की जरूरत नहीं पड़ी । वैसे भी यहां हर बात की दोषी सरकार ठहराई जाती है । हर दवा के साइड इफेक्ट होते हैं , कंपनियां बताती भी हैं । उस दौर में प्रयोगों के बाद दुनिया की प्रत्येक वैक्सीन अधिकतम 80% कारगर ही पाई गई थी । सवाल करोड़ों लोगों का जीवन बचाना था , अतः वैक्सीन लगी , खूब लगी और अंततः मानवजाति बच गई । वैक्सीन ने एक बहुत बड़ी जंग जीत ली । उसी दौर में आयुष ने आयुर्वेद पर शोधकर कईं काढ़े तैयार किए जिनसे लाभ हुआ । बाबा रामदेव को कोरोनिल और प्राणायाम का लाभ भी करोड़ों देशवासियों ने उठाया । हालांकि उसी दौर के लिए उन्हें अब न्यायालय की चौखट पर पेश होना पड़ा है।
रामदेव हों या आधुनिक चिकिसविज्ञान ; सभी का मकसद धरती पर मनुष्य के अस्तित्व को बचाना था । तो अब रामदेव और बालकृष्ण कैसे दोषी हो गए ? कोविशील्ड से खून में थक्का जम सकता है तो चिकित्सा विज्ञान कैसे अपराधी हो गया ? अरबों रुपए खर्चकर मुफ़्त वैक्सीन अभियान चलाकर तीन तीन डोज लगाने वाली भारत सरकार कैसे दोषी हो गई ? दरअसल भारतीय राजनीति इतनी बेशर्म हो गई है कि उसे किसी रेप , किसी हत्या या किसी के भाग जाने से मतलब नहीं । मतलब विरोधी को किसी भी रूप से घेरने से है । यह बात सही है कि अचानक हार्ट अटैक के करीब 70 मामले सामने आए हैं।
लेकिन यह मत भूलिए कि इसी वैक्सीन की 270 करोड़ डोज लगाकर करोड़ों का जीवन बचाया भी गया है । 270 करोड़ वैक्सीन लगवाने वालों में से यदि 0.000001% लोग साइड इफेक्ट्स के शिकार हुए तो चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से यह विषय चर्चा के योग्य नहीं है । परंतु यह भारत है , मौसम चुनाव का है तो वही होगा जो आप देखेंगे । आखिर रुदालियों को भी अपना धर्म निभाना है , तथ्य रखने वालों को भक्त बताना है । सच कहें एक विघ्न राग है , जिसे बार बार गाना है।