डॉ. पवन विजय : वामपंथ-दक्षिणपंथ.. पहला प्रहार वही करते हैं और…
भारत, इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका के चुनाव में वामपंथियों का एक पैटर्न दिखाई दे रहा है, एक हो जाओ, चुनाव न जीत पाओ तो नाम वापस लो और अपने जिताऊ साथी को जगह दो, अपना वोट उसे दिलवाओ।
भारत के चुनाव में आपस में गाली गलौज करते, एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले लेफ्ट लिबरल ने एक दूसरे को जिताने में धरती आसमान एक कर दिया। यह सब कुछ योजना बनाकर किया गया, अपने व्यक्तिगत हितों को पीछे कर वैचारिक हितों को आगे रखा गया। चुनाव के दौरान जीत को धर्म मानकर उसके लिए अपने उम्मीदवारों को वापस लिया गया, साथी पार्टी को वोट ट्रांसफर करवा गया।
फ्रांस चुनाव के दौरान जब वामपंथी अपने उम्मीदवारों के नाम वापस ले रहे थे तभी मुझे खटका हुआ कि ये कुछ खेल कर रहे हैं लेकिन उस खेल को दक्खिन टोले में भागने के तौर पर देखा गया और जश्न मनाया जाने लगा। यह वह समय था जब वामपंथी जीत के लिए आपस में हाथ मिला कर योजना बना रहे थे जिसका परिणाम आज देखने को मिला।
अमेरिका और इंग्लैंड में भी यही पैटर्न लागू किया गया, और शायद भविष्य में यही पैटर्न दुनिया के विभिन्न देशों में लागू किया जाएगा।
वामपंथी फील्ड बहुत अच्छा सेट करते हैं, वे दक्षिणपंथियों के लिए प्रतिक्रिया देने के अलावा कोई स्थान नहीं छोड़ते। पहला प्रहार वही करते और राइट विंगर का एक बड़ा खेमा उसी की प्रतिक्रिया देने में लग जाता है तब तक वामी रणनीतिकार अपनी तकनीक बदल देते हैं उसके बाद राइट कैंप आपस में ही ब्लेम गेम करने लगता है।
एक बात और गौर करने वाली है, वामपंथी अपने विरोधी खेमे के कमजोर समूहों को टारगेट करते हैं, सहलाते हैं और उसे अपने पाले में लाकर अपना मुखौटा बनाते हैं। यह मुखौटा बड़े काम का होता है, राइट विंगर की नैतिकता को ध्वस्त करने वाला होता है। भारत में पारंपरिक धार्मिक पीठ के कुछ संतों के वक्तव्यों को इसी क्रम में समझा जाना चाहिए।
आने वाले दिन न केवल फ्रांस बल्कि दुनिया के लिए और अधिक हिंसक होने जा रहे हैं ।