सुरेंद्र किशोर : अगस्ता हेलिकाॅप्टर खरीद घोटाले की संवेदनशील फाइल इटली सरकार ने हाल में भारत सरकार को दे दी !

सोशल मीडिया में यह खबर है कि अगस्ता हेलिकाॅप्टर
खरीद घोटाले की संवेदनशील फाइल
इटली सरकार ने हाल में भारत सरकार को दे दी !
क्या उसमें दलाली के पैसों के वी.वी.आई.पी.
भारतीय प्राप्तकर्ता का नाम है ?
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क्या भारत सरकार को इटली सरकार ने 3600 हजार करोड़ रुपए के अगस्ता वेस्टलैंड वी वी आई पी हेलिकाॅप्टर सौदा घोटाले से संबंधित संवेदनशील फाइल हाल ही में दे दी है ?
क्या 2013 में हुए उस महा घोटाले के तहत भारत की बड़ी हस्ती को भारी रिश्वत मिली थी ?क्या उस फाइल में उसके सबूत हैं ?
सोशल मीडिया में ये बातें तैर रही हैं।खैर उस विषय पर मुख्य धारा के मीडिया में शायद बाद में खबर आएगी।

पर,इस बीच अलग से एक भूली-बिसरी याद पढ़ लें।
इस कहानी से यह पता चल जाएगा कि जो लोग आज नरेंद्र मोदी से 15 लाख रुपए की मांग कर रहे हैं,वे जब सत्ता में थे तो विदेशी बैंक में हमारे देश के लोगों के जमा अपार काले धन के सबूतिया विवरण लेने तक से मना कर दिया था।
जबकि उन सबूतों का भंडार भारत सरकार को मुफ्त में मिल रहा था।
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यह बात तब की है जब इस देश में मनमोहन सिंह
की सरकार थी।
स्विस बैंकों ने अमेरिका के भारी दबाव के कारण
अपने यहां के बैंकों के खातों की गोपनीयता से संबंंिधत नियमों में ढील देने का निर्णय किया।
यानी, बैंक गुप्त खातेदारों के नाम जाहिर करने लगे।
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इससे घबरा कर भारत सहित दुनिया भर के काला धन वालों ने पास के ही लाइखटेंस्टाइन देश के एल.जी.टी. बैंक की ओर रुख कर लिया।
वह बैंक वहां के राजा परिवार का है और वहां गोपनीयता की गारंटी थी।(ताजा हाल नहीं मालूम।)
एल.जी.टी. बैंक का एक कम्प्यूटर कर्मचारी हेनरिक कीबर कुछ कारणवश बैंक प्रबंधन से बागी हो गया।
उसे नौकरी से निकाल दिया गया।
वह बैंक के सारे गुप्त खातेदारों के नाम पते वाला कम्प्यूटर डिस्क लेकर फरार हो गया।
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इस तरह दुनिया के अनेक देशों के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों का विवरण कीबर के पास आ गया।
उसने उस पूरी सी. डी.की काॅपी को जर्मनी की खुफिया पुलिस को 40 लाख पाउंड में बेच दिया।
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ब्रिटेन ने सिर्फ अपने ही देश के गुप्त खातेदारों के नाम उससे लिए। इसलिए उसे सिर्फ एक लाख पाउंड में विवरण मिल गया।
जर्मनी भारत सरकार को भारत के लोगों के गुप्त खातों का विवरण मुफ्त देने को तैयार था।
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अमेरिका, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम और अन्य दूसरे देश कीबर से बारी -बारी से अपने -अपने देश के भ्रष्ट लोगों के गुप्त खातों के विवरण ले गए। ब्रिटेन ने कहा कि उसे मात्र एक लाख पाउंड लगे।
पर उस विवरण के आधार पर कार्रवाई करने पर सरकार को टैक्स के रूप में भारी धन राशि मिल गई।
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कीबर भारत सरकार को भी वह जानकारी बेचने को तैयार था।
इस संबंध में एल.के आडवाणी ने मनमोहन सरकार को पत्र लिखा।
पर, भारत सरकार ने नहीं खरीदा।
साथ ही,यह भी सनसनीखेज खबर आई कि भारत सरकार ने जर्मनी सरकार से अनौपचारिक रूप से यह आग्रह कर दिया कि भारत से संबंधित गुप्त बैंक खातों को जग जाहिर नहीं किया जाए।
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याद रहे कि लाइखटेंस्टाइन के उस बैंक में बड़ी संख्या में भारतीयों के भारी मात्रा में काला धन जमा थे।
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पर,यह खबर उजागर हो जाने के बाद भारत के धनपतियों व नेताओं ने अपने काला धन को किसी अन्य देश या देशों के बैंकों में
शिफ्ट कर दिया होगा जहां गुप्त रखने की अधिक गारंटी होगी।
अब कहां से आएंगे 15 लाख रुपये ???

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