कौशल सिखौला : विश्वप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड और हावर्ड विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय के 700 साल बाद खुले

विश्व के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा और तक्षशिला थे । नालंदा का निर्माण 1600 वर्ष पूर्व हुआ । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज के विश्वप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड और हावर्ड विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय के 700 साल बाद खुले । तक्षशिला विश्वविद्यालय तो उससे भी पहले ईसा पूर्व से चला आ रहा था । तब तक समूचे संसार से ज्ञान के अभिलाषी भारत आते रहे।

विश्व को शून्य का ज्ञान नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य आर्यभट्ट ने ही दिया । छठी शताब्दी में दिया गया यह ज्ञान न आता तो अंक और बीजगणित के कईं सूत्र मिल ही न पाते कंप्यूटर का आविष्कार भी मुश्किल हो जाता । नालंदा के पुस्तकालय में ताड़ और भोजपत्र पर लिखी गई 90 लाख पुस्तकें थी । लकड़ी की तख्तियों पर लिखे दो लाख फार्मूले और चित्र थे । खगोल शास्त्र का ज्ञान लकड़ी से उतारे पन्नों पर लिखा गया था।

बात बारहवीं शताब्दी सन 1190 की है । तुर्क अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में भारत पर शासन करने आई एक सैन्य टुकड़ी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया । पर इसमें क्या खास बात हुई ? आक्रांता तो आए ही थे सोने की चिड़िया के नाम से मशहूर हिन्दुस्थान आर्यावर्त भारतवर्ष को लूटने ? उन्होंने तोड़फोड़ , आगजनी , हत्याओं के माध्यम से भारत की संपदा लूटकर ले जानी थी और तेरह देशों के समूह आर्यावर्त का आत्मसम्मान नष्ट करना था । यह सिलसिला यूं तो आठवी शताब्दी से शुरू हो गया था , परन्तु तेजी 11 वीं शताब्दी में शुरू हो गई थी।

बात तब की है जब हिन्दू शब्द तक से घोर नफरत करने वाला खिलजी गंभीर बीमार पड़ा । उसके हकीमों ने बहुत इलाज किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । किसी ने खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभागाध्यक्ष महान चिकित्सक आचार्य राहुल शीलभद्रजी से इलाज कराने का सुझाव दिया । शीलभद्रजी को बुलाया गया तो उन्होंने देखकर कहा कि इलाज हो जाएगा । इस पर खिलजी अड़ गया कि वह किसी काफिर की बनाई दवा को नहीं खाएगा । आचार्य शीलभद्रजी ने उसकी यह शर्त मान ली । वे वहां कुछ देर बैठे रहे और यह कहते हुए चले गए कि कुरान पढ़ने से उसकी बीमारी ठीक हो जाएगी । पर कुरान वे नालंदा की लाइब्रेरी से भेजेंगे।

कुरान भेजी गई और उसे रोजाना पढ़कर खिलजी दो महीनों में पूर्ण स्वस्थ हो गया । खिलजी को आश्चर्य हुआ कि कुरान तो वह रोज पढ़ता है , पर नालंदा की कुरान पढ़कर वह स्वस्थ कैसे हुआ । दरअसल शीलभद्रजी ने देख लिया था कि कुरान के पन्ने पलटते हुए खिलजी जीभ पर हाथ लगाता है । उन्होंने पन्नों पर दवा लगा दी जो उसकी जीभ के रास्ते उसके पेट में पहुंच गई । यह पता चलते ही खिलजी भारतीय ज्ञान से आगबबूला हो गया । उसने जीवन देने वाले नालंदा को ही जलाकर राख कर दिया । 90 लाख दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ तीन महीने तक जलते रहे । वहां से भागते हुए कुछ छात्र थोड़े बहुत ग्रंथ बचा लाए । वही आज भारत की निधि हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की योजना तो 2007 में बन गई थी । 2014 में नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कार्य सुषमा स्वराज ने शुरू किया । कल पीएम मोदी ने उसका उदघाटन किया । नालंदा में विशाल पुस्तकालय का निर्माण फिर किया जा रहा है । पुरातन निधि का नया इतिहास फिर से लिखा जा रहा है । कामना करते हैं कि अब कोई खिलजी इस मातृभूमि पर न आए । और हां नालंदा जैसा ही ज्ञान का दूसरा प्रमुख केंद्र तक्षशिला पाकिस्तान में चला गया उसका क्या हाल किया गया , फिर कभी।

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