नितिन त्रिपाठी : भंडारे की इकॉनमी

जेठ माह के सारे बड़े मंगल में लखनऊ शहर में लोग भंडारे करवाते हैं. यह इस लेवल पर होता है कि शायद ही कोई थोड़ी भी सामाजिक क्षमता वाला व्यक्ति हो जो किसी न किसी भंडारे में सहयोगी न होता हो.

अब इस भंडारे के इर्द गिर्द एक बड़ी इकॉनमी पल्लवित हो गई है. इस दिन शायद ही कोई हलवाई, टेंट आदि ख़ाली मिले. यहाँ तक कि अग़ल बग़ल के टाउन से भी हलवाई बुला लिये जाते हैं. रेस्टोरेंट / शादी बारात वाले कैटर / हलवाई अलग होते हैं, भंडारे के लिए अब भंडारा स्पेसिफ़िक हलवाई बन गये हैं जिनकी स्पेशलिटी है फटाफट अंडर प्रेसर पूड़ियाँ तलने की, कद्दू आलू की सब्ज़ी बनाने की, अकस्मात् भीड़ बढ़ जाये / कुछ कम पड़ जाये तो भी नाक न कटने पाये.

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अब समय के साथ और अपग्रदेशन हुआ है. अब कांट्रैक्टर आ गये हैं. आप बता दो एक कुंतल का भंडारा करना है. अर्थात् एक कुंतल आटे की पूड़ियाँ होनी है, साथ में सब्ज़ी / मीठा. डिपेंडिंग अपॉन बजट बिलकुल फ़ुल कैटरिंग होने लगी है. आपको नियत समय बस जाकर बैठ जाना है. वहाँ टेंट, कुर्सियाँ, प्लेट, ग्लास सब पहले से मौजूद होगा. भजन चल रहे होंगे. पानी की बोतलें / ग्लास होंगे. वेटर्स होंगे सर्व करने के लिए. बिलकुल जैसी फ़ुल कैटरिंग होती है वैसी भी सेवाएँ उपलब्ध है.

तो जिसका जैसा बजट है मैन पॉवर है उस हिसाब से आयोजन करता है.

अगले मंगलवार हमारे यहाँ भी कॉलोनी में शाम को सुंदर कांड और फिर भंडारे का आयोजन है, जो भी मित्र आना चाहें सबका स्वागत है.

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