अमित सिंघल : निःशब्द कर दिया.. वो एक-एक सीढ़िया बिना लड़खड़ाए चढ़ गयी
राष्ट्रीय रायफल्स के जवान हवलदार शहीद हंगपन दादा की आज पुण्य तिथि है। हवलदार दादा अरुणाचल के निवासी थे और वहां के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने एक ट्वीट के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
कुछ ही दिन पूर्व मैंने शिव अरूर एवं राहुल सिंह की पुस्तक India’s Most Fearless भाग 1 में हवलदार दादा की अद्वितीय वीरता की गाथा पढ़ी थी।
संक्षिप्त में, हवलदार दादा की टुकड़ी – कुल मिलाकर 10 सैनिक – ने घुसपैठ कर रहे 4 आतंकियों को कश्मीर के एक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में चुनौती दी। सभी चार आतंकियों को मिलिट्री कमांडो की ट्रेनिंग मिली थी। भारतीय सेना की ऊंचाई पर स्थित एक अन्य पोस्ट द्वारा गोलीबारी करने से आतंकियों ने दो ग्रुप में चट्टानों के पीछे पोजीशन ले ली थी। लेकिन उसी जगह हवलदार दादा अपने साथियों के साथ घात लगाकर बैठे हुए थे। आतंकियों ने हवलदार दादा की टुकड़ी को देख लिया था और दो आतंकियों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी।
एकाएक हवलदार दादा अपनी जगह से निकले और उन दो आतंकियों की ओर दौड़ते हुए अपनी AK-47 खाली कर दी। यह रिस्की मूव था, लेकिन दोनों आतंकी ढेर हो गए।
हवलदार दादा ने अपनी AK-47 में नयी मैगज़ीन (गोलियों का बॉक्स) घुसाया और तीसरे आतंकी की ओर दौड़ने लगे। अपने दो आतंकियों का परिणति वह देख चुका; अतः वह आतंकी चट्टान के पीछे से मशीन गन से गोलिया चलाते हुए निकला। हवलदार दादा ने अपने शरीर को मोड़ते हुए एक तरफ कूद गए। उन्हें एक खरोंच भी नहीं लगी थी। लेकिन अब हवलदार दादा को उस आतंकी की पोजीशन पता चल गयी थी। वे रेंगते हुए उस छुपे हुए आतंकी की ओर गए और उसके ऊपर कूद गए। राइफल के कुंदे से उसके चेहरे पर ताबड़तोड़ वार किया और फिर एक झटके से उस आतंकी की गर्दन तोड़ दी।
फिर हवलदार दादा चौथे आतंकी, जो ऊंचाई पर छुपा था, की ओर खुले में दौड़ने लगे। उस आतंकी ने गोलिया चला दी जिनमे से एक गोली हवलदार दादा की गर्दन के पार हो गयी थी। गिरते-गिरते हवलदार दादा ने गोलियों की बौछार कर दी जिससे चौथा आतंकी घायल हो गया। एक सैनिक ने चौथे आतंकी को भी मार गिराया।
26 मई 2016 के दिन हवलदार दादा ने उसी स्थल पर राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
हवलदार दादा को मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया था जिसे हवलदार दादा की पत्नी चेसेन लोवांग ने वर्ष 2017 की गणतंत्र दिवस परेड में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी से ग्रहण किया था।
शिव अरूर एवं राहुल सिंह बतलाते है कि उस समय चेसेन लोवांग ने वही नीली साड़ी एवं सफ़ेद ब्लेजर पहना था जो उसी वर्ष अंतिम होम विजिट में हवलदार दादा ने अपनी पत्नी को भेंट किया था।
उस अवसर पर मैंने यह लिखा था:
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मैं हर वर्ष गणतंत्र दिवस की परेड देखता हूँ; परदेस में अपने कंप्यूटर पे. जब राष्ट्रपति जी मरणोपरांत अशोक चक्र का सम्मान प्रदान करते है, तो हर बार मेरी आँख नम हो जाती है, जबकि मैं अपने आप को भावनात्मक रूप से काफी स्ट्रांग मानता हूँ. इस बार जब राष्ट्रीय रायफल्स के जवान हवलदार शहीद हंगपन दादा की पत्नी चेसेन लोवांग ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों यह सम्मान ग्रहण किया तो उनका – और उनके पूर्व के शहीदों की पत्नियों की – सौम्य, सम्मानित और गरिमापूर्ण आचरण कही न कही दिल को छू जाता है, एक ऐसा दर्द, एक ऐसी टीस सी छोड़ जाता है, जिसको मैं शब्दो में बयां नहीं कर सकता.
मैं सोचता हूँ कि शहीद हंगपन दादा अपनी पत्नी चेसेन लोवांग और अपने दो बच्चो के भविष्य का ध्यान रखते हुए स्वयं किसी चट्टान के पीछे छुप सकते थे. क्या जरुरत थी कि उन आंतकवादियो को मारने की, अपनी जान तो वह बचा सकते थे. लेकिन नहीं, देशभक्ति में सरोबार, कर्तव्य की पुकार ने उन्हें शायद सिर्फ लक्ष्य की याद दिलाई, परिवार की नहीं.
लेकिन उन से बढ़कर तो उनकी पत्नी का पराक्रम है. कैसे वो हज़ारो-करोड़ो कृतज्ञ, भीगी आँखों के सामने, राष्ट्र की एहसानमंद चुप्पी – कि एक तिनका भी हिले तो आवाज़ हो जाए – के मद्देनजर वो एक-एक सीढ़िया बिना लड़खड़ाए चढ़ गयी, राष्ट्रपति के सम्मुख खड़ी रही और सम्मान स्वीकार कर के राष्ट्र को कृतज्ञ कर दिया.
निःशब्द कर दिया.
