ध्रुव कुमार : वीर सावरकर.. यही सारा काम बाबा साहेब अंबेडकर भी कर रहे थे..
मेरे लिए बाबा-साहेब अंबेडकर वीर-सावरकर की तरह ही आदर्श हैं ….
मैने बाबा साहेब अंबेडकर को लगभग समग्रता में और बिना किसी पूर्वाग्रह के साथ पढ़ा है। क्योंकि मुझे लगता है कि हमें बाबा साहेब के विचारों को हिंदुत्व के साथ साथ ‘दलित हिन्दू भाई बहनों’ के नजरिए से भी देखना होगा। मैंने बाबा साहेब की लिखी ज्यादातर महत्वपूर्ण किताबों को पढ़ा है।
जिनमें प्रमुख हैं …..
“वेटिंग फ़ॉर वीजा”
‘Pakistan or The Partition of India’
“Annihilation of Caste”
The Untouchables: Who Were They and Why They Became Untouchables?
Riddles in Hinduism ….
इसके अलावा कांग्रेस और नेहरू की भीमराव अंबेडकर से कितनी नफरत थीं उसे भी पढ़ा है।
उन्होंने हिंदू धर्म की जो आलोचना की उसे भी गहराई से पढ़ा और समझा है। उनके अंदर जो आक्रोश था उसे भी समझा है।
वास्तव में भीमराव अंबेडकर हिन्दू धर्म की उन बुराइयों को दूर करना चाहते थे जिसके चलते हिन्दू धर्म की ही कई जातियों को सैकड़ों वर्षों तक भेदभाव का सामना करना पड़ा।
और हमें यह मानना पड़ेगा कि हमने अपने ही कुछ हिन्दू भाईयों के साथ भेदभाव किया। और हां यह कहने से काम नही चलेगा कि ये सारी कमियां मध्यकाल से आई जब हिन्दू पराजित हो गए।
मैं भी जानता हूँ कि हिन्दू धर्म के मूल ग्रथों में इस तरह के भेदभाव की कोई बात नही है और जिन परिवर्ती ग्रथों में ये सन्दर्भ मिलते हैं वो सारे सन्दर्भ पूर्व मध्यकाल में जबरन जोड़े गए हैं।
लेकिन यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने हिन्दू समाज के उन भाई बहनों की समस्याओं और आक्रोश को दूर करते ….
इन्ही समस्याओं को दूर करने के लिए और हिन्दुओं को एकजुट व मजबूत करने के लिए स्वामी विवेकानंद और दयानंद सरस्वती से लेकर सावरकरजी और संघ तक ने प्रयास किया था।
सावरकरजी ने विट्ठल देव मंदिर में दलित हिंदुओं को प्रवेश दिलाने के लिए आंदोलन किया था, धरना दिया था और अंत में उन्हें सफलता मिली।
सावरकर ने कहा था “जब एक हिन्दू धर्म परिवर्तन करता है तो एक दुश्मन बढ़ता है इसीलिए अपने सभी हिन्दू भाइयों को गले लगाओ।”
यही सारा काम बाबासाहेब अंबेडकर भी कर रहे थे। वो भी हिन्दुओं के कमजोर वर्गों को बराबर का अधिकार दिलाकर समाज को मजबूत करना चाहते थे। उन्होंने मंदिर प्रवेश, महार सत्याग्रह इसी उद्देश्य से चलाया था ताकि उन्हें बराबर का अधिकार मिले …
वास्तव में तो कांग्रेस ने हिन्दुओं को एकजुट करने, दलितों को साथ लेने का कोई प्रयास नही किया बल्कि नेहरू उससे ज्यादा खुशामद करने और उनके तुष्टिकरण में लगे रहे।
बाबा साहेब के जो विचार थे उसके चलते नेहरू तो उन्हें कट्टर हिन्दूवादी और मुस्लिम विरोधी तक कह चुके थे ।
BBC को दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था “नेहरू और गांधी को हिन्दू दलितों की उतनी चिंता नही है जितनी मुसलमानों की है।”
इसी सबके चलते नेहरू और कांग्रेस के कुछ नेता बाबा साहेब को “देशद्रोही और कट्टर हिन्दूवादी तक कहते थे।”
उनकी जीवनी “वेटिंग फ़ॉर वीजा” में कई ऐसे उदाहरण हैं जब उन्होंने बताया है कि उनके साथ विधर्मियों ने बहुत ही गन्दा बर्ताव किया।
उनके साथ 1934 में उनके साथ औरंगाबाद में मारपीट तक करने की कोशिश की गई थी।
इसके अलावा कांग्रेस और नेहरू के द्वारा अंबेडकर से नफरत का कारण यह भी था कि वे “आर्य आक्रमण की अवधारणा को नकारते थे। उन्होंने स्प्ष्ट कहा था ये सारी बातें तथ्यहीन है। ….
आर्य और द्रविण जैसी कोई अवधारणा नही थी। शूद्र हिन्दू भी आर्य ही थे। परिवर्ती काल में जातिवाद की बुराइयों के चलते उनके साथ भेदभाव हुआ। जिसे खत्म होना चाहिए।”
और यह बात सच भी हैं हिन्दू ग्रथों में कहीं भी आर्य द्रविण का नस्लीय विभाजन नही है, जो भी बुराइयां हैं वो सारी पूर्व मध्यकाल में पैदा हुई जब हिन्दू समाज कमजोर होकर गुलाम हो गया।
कई ऐसे हिन्दू राजाओं का वर्णन हैं जो शूद्र वर्ण से आते थे और जिन्होंने अरबों और तुर्कों के खिलाफ युद्ध किया । सुहेलदेव के साथ उत्तर पश्चिम भारत मे कई ऐसे राजाओं का वर्णन हैं जिन्हें वामपंथी इतिहासकारों ने दबा दिया …
क्योंकि वो चाहते ही नही थे कि सच्चाई सामने आए और हिन्दू एकजुट हो। भीमराव आंबेडकर हिन्दू समाज की इन्ही बुराइयों को दूर करना चाहते थे और मैं उनका पूरा समर्थन करता हूँ।
उन्होंने बौद्ध धर्म भी कांग्रेस से चिढ़कर अपनाया क्योंकि कांग्रेस उनका साथ नही दे रही थीं। और यह भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने भारतीय धर्म और सनातन धर्म की एक शाखा को अपनाया न कि विदेशी मजहब को।
कहते तो यह भी है कि हैदराबाद के नवाब ने उन्हें इस्लाम अपनाने के लिए बहुत लालच दिया था लेकिन बाबा साहेब ने कहा कि “ये हमारी समस्या है, इस्लाम अपनाने का मतलब होगा देशद्रोही हो जाना।”
इसके अलावा नेहरू ने उन्हें दो बार चुनाव इसीलिए हराया क्योंकि वो कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण और दोगलेपन से नफरत करते थे, नेहरू की विदेशनीति और चीनी के प्रति बेवकूफी से चिढ़ते थे।
बल्कि बाबा साहेब तो देश की आजादी का श्रेय भी कांग्रेस को नही देते हैं।
BBC के इंटरव्यू में उन्होंने कहा है “देश की आजादी कांग्रेस के बिना ज्यादा अच्छी मिलती और देश की आजादी में सर्वाधिक योगदान क्रांतिकारियों और नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सेना का था।”
ऐसे में अगर हिन्दुओं का एक वर्ग बाबा साहेब को आदर्श मानता है तो बिल्कुल सही है उन्होंने बहुत कुछ किया है मैं तो बाबा साहेब को एक ऐसे महापुरुष और चिंतक के रूप में देखता हूँ जिन्होंने हिन्दुओं को उनकी कमजोरियों को बताया। बुराइयों को दूर करने के लिए प्रेरित किया ताकि विशाल हिन्दू समाज एकजुट हो सके और हिंदुत्व मजबूत हो सके।
अतः आज यह जरूरी है कि बाबा साहेब के साथ कांग्रेस और वामपंथियों ने क्या क्या कुकृत्य किए, उन्हें कैसे अपमानित किया, चुनावों में उन्हें हराने के लिए कैसे धांधली की ये सारी बातें सभी तक पहुँचनी चाहिए।