देवांशु झा : बौद्ध राजाओं ने जिन विशाल मंदिरों के निर्माण करवाए वहां कौन से धार्मिक अनुष्ठान प्रचलित थे?

बौद्ध भारत से इतर जिन देशों में पनपे या टिके उन देशों में उन्होंने धर्म अधर्म के सनातनी दर्शन को ही अपनाया। अधर्मियों को उन्होंने सबक सिखाया। तभी टिके रह सके। उन देशों और संस्कृतियों के लोक में भी उनकी गहरी पैठ बनी तो वे रहे। भारत में बौद्धों की पूरी उपस्थिति बड़ी अकादमिक और मठीय प्रतीत होती है। वह उपस्थिति केवल मठों,विहारों और मंदिरों से नहीं बचने वाली थी।

देवांशु झा

आश्चर्य इस बात का भी है कि भारत में हिन्दुओं और बौद्ध जैन मतावलंबियों को परम शत्रु के रूप में चित्रित किया गया लेकिन इन तीनों ही पंथों के असल शत्रु को महान समावेशी और परिवर्तनकारी सिद्ध कर दिया गया। हिन्दू और इन दो पंथों के बीच का संघर्ष एक साधारण राजनैतिक संघर्ष रहा हो, धार्मिक तो कदापि नहीं था। अपवाद स्वरूप कुछ उदाहरण मिल सकते हैं परन्तु वे उदाहरण भी अंततः विराट सनातनी जीवनधारा में गौण हो गए। शास्त्रार्थ तो सामान्य चलन था लेकिन एक दूसरे के विश्वासों और मान्यताओं का हिंसक ध्वंस नहीं होता था। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण इस देश के हजारों मंदिर हैं। हिन्दू बौद्ध और जैन मतावलंबियों ने तीनों धर्मों के मंदिर बनवाए। एक ही क्षेत्र में आप हिन्दू और बौद्ध जैन देवालय देख सकते हैं। मैंने स्वयं चंबल और बुंदेलखंड में सैकड़ों देवालय देखे। ध्यातव्य है कि वे सभी देवालय एक ही विश्वास के उन्मादियों ने ढहाए।


बुद्ध ने जिस मत का प्रतिपादन किया, क्या वह हिन्दू मत से सर्वथा भिन्न था? बौद्ध राजाओं ने जिन विशाल मंदिरों के निर्माण करवाए वहां कौन से धार्मिक अनुष्ठान प्रचलित थे? क्या वे निराकार, अदृश्य अधिनायकवादी ईश्वर को पूजने के अनुष्ठान थे? क्या वहां अन्य मतावलंबियों को समाप्त कर देने के आवाहन होते थे? क्या बौद्धों ने अहिंसा, अपरिग्रह, परदुखकातरता करुणा के भाव हिन्दू धर्म से ही नहीं लिए थे? बुद्ध क्यों गौरव के साथ कहते थे कि राम उनके पूर्वज हैं! बुद्ध के प्रति लगभग सभी हिन्दुओं में अपार आदर का भाव है। वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। तब फिर सीखने की आवश्यकता किसे है? हिन्दुओं को या बौद्धों को? या उनके मूढ़ अनुयायियों को? जिन इतिहासकारों अथवा लेखकों ने बौद्ध धर्म को परिवर्तनकारी, महान और समावेशी कहकर हिन्दू धर्म का उपहास किया वह इस प्रश्न पर क्यों नहीं विचार करते कि भारत में इस्लामिक आक्रमण से पूर्व उतने विशालकाय बौद्ध मठ क्यों फल-फूल रहे थे? अगर उन मठों पर हिन्दू वरदहस्त नहीं था तो वे ढहाए जाने के साथ ही क्यों समाप्त होने लगे? क्यों बौद्धों ने सामाजिक रूप से उन आक्रमणों का प्रतिकार किया? अगर वे सामाजिक और लौकिक रूप से दृढ़ थे तो लड़ते जैसे हिन्दू लड़ते रहे।

-देवांशु झा जी के लेख का एक अंश।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *