अमित सिंघल : सोनिया-केजरीवाल-ममता-उद्धव-स्टालिन सरकार के विरूद्ध कभी भी ऐसी अपील नहीं की क्योकि…

प्रधानमंत्री मोदी हर व्यक्ति के मन में प्रवेश कर गए है।
राजनीति शास्त्र में ऐसा माना जाता है की राज्य (राष्ट्र) की उत्पत्ति और उसकी वैधता का आधार प्रत्येक व्यक्ति के मध्य social contract या सामाजिक अनुबंध है।

सभी व्यक्तियों ने अपनी स्वयं की और सम्पति की सुरक्षा, एवं अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए आपस में अपनी स्वेच्छा या वास्तविक इच्छा से यह करार किया कि हर व्यक्ति एक दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं करेगा, एक दूसरे की जान नहीं लेगा और इस करार को लागू करने ले लिए वह अपने कुछ अधिकारों का त्याग कर देगा। इसी कॉन्ट्रैक्ट ने संविधान का रूप लिया।

और यह कोई बाज़ारू या लेन-देन का कॉन्ट्रैक्ट नहीं है; बल्कि इस कॉन्ट्रैक्ट का आधार नैतिक है।

प्रसिद्द फ़्रांसिसी विचारक जाँ जाक रूसो का मानना था कि लोगों को अक्सर अपनी “वास्तविक इच्छा” पता नहीं होती और कहा कि एक यथोचित समाज तब तक नहीं बन सकता जब तक एक महान नेता जनता के मूल्यों और प्रथाओ को बदलने के लिए तैयार नहीं होता।

कई सौ वर्षो की गुलामी, और विदेशी मूल्यों में पले-बड़े कांग्रेस के नामदारो के शासन के बाद हमारा सामाजिक अनुबंध, हमारे मूल्य, हमारी “वास्तविक इच्छा” भ्रष्ट हो गयी थी। स्वतंत्रता के बाद के कई दशकों में हमारे यहां एक ऐसा सिस्टम बना जिसमें निर्धन को बहुत छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।

उस गरीब को बैंक अकाउंट खुलवाना है, तो सिस्टम आड़े आ जाता था, उसे गैस कनेक्शन चाहिए, तो दस जगह चक्कर लगाना पड़ता था। अपनी ही पेंशन पाने के लिए, स्कॉलरशिप पाने के लिए यहां-वहां कमीशन देना होता था।

कैसे हमारे नवयुवक और नवयुवतियां इस अभिजात्य वर्ग के जमे-जमाये युवाओ से मुकाबला करेंगे? उनकी माता और पिता जी ने तो भ्रष्टाचार और पहचान के बूते पे ना केवल उद्यम खड़े कर दिए, बल्कि नए लोगो के सामने अनगिनत बाधाएँ खड़ी कर दी जिससे उनके निकम्मे लालो को कोई चुनौती ना दे सके।

एक तरह से “सब चलता है” और “मुझे क्या” और “इसमें मेरा क्या” हमारे मूल्य हो गए थे। अपनी संस्कृति और मूल्यों के अपमान को स्वीकार करना सीख लिया था। आतंकी हमला करने वालो के घर के बाहर मोमबत्ती जलाना हमारा “कर्तव्य” बन गया था। ऐसे हमलो करने वालो की पैरवी करना मानवाधिकारों का संरक्षण माना जाता था।

अब यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी हम भारतीयों के मूल्यों, प्रथाओ, और “वास्तविक इच्छा” को बदल रहे है। इसी बात से ही तो छुटभैये नेता और बुद्धिजीवी डरते है। उनका अपने अरबो के काले धन को खोने का डर नहीं है। उन्हें सत्ता और प्रभाव खोने का डर नहीं है। अगर सत्ता बानी हुई है तो गैरकानूनी तरीके से धन भी कमा लेंगे।

उन्हें भय इस बात का है कि प्रधानमंत्री मोदी हर व्यक्ति के मन में प्रवेश कर गए है, हर व्यक्ति को उन्होंने अपनी “वास्तविक इच्छा” या real will का प्रयोग करने को प्रोत्साहित किया। उन्होंने हमें अपनी और राष्ट्र के मूल्यों और प्रथाओ को बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। अब हमारे राष्ट्र कि नींव एक ऐसे सामाजिक अनुबंध पे रखी जा रही है, जो नैतिक है क्योकि उसमे हम सब की पहली बार सौ प्रतिशत भागीदारी है।

तभी अभिजात वर्ग, जिसमे बिकाऊ बुद्धिजीवी शामिल है, इतना विरोध कर रहा है …! पता ही नहीं था कि दर्ज़नो “निष्पक्ष”, तथाकथित लुटियंस पत्रकार कांग्रेसी थे और इस समय भाजपा के विरूद्ध वोट करने की अपील कर रहे है। सोनिया-केजरीवाल-ममता-उद्धव-स्टालिन सरकार के विरूद्ध कभी भी ऐसी अपील नहीं की क्योकि उनकी “दुकाने” आम जनता के पैसो की चोरी से चल रही थी।

हम अपने सामाजिक अनुबंध का नवीकरण या पुनः “हस्ताक्षर” चुनाव के समय करते है। अतः यह आवश्यक है कि हम सभी अधिक से अधिक संख्या में मतदान करके अपने सामाजिक अनुबंध पे “साइन” करे और प्रधानमंत्री मोदी के विज़न को विजयी बनाये।

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