डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : विदेशी कंपनियां भी आयुर्वेद के सहारे बेच रही उत्पाद
यह अलग बात है कि कुछ लोग पतंजलि की औषधियों के प्रतिबंध पर प्रसन्न हो रहे हैं, लेकिन यह बाबा रामदेव के साथ लड़ाई नहीं है, यह आयुर्वेद के साथ लड़ाई हो रही है।
स्वराज के बाद सरकार द्वारा चिकित्सा क्षेत्र में आयुर्वेद को उपेक्षित करना नेहरू के भारत और उसके ज्ञान-विज्ञान के प्रति हेय दृष्टि का परिणाम था। आज आयुर्वेद को पूरी दुनिया में सम्मान प्राप्त होने लगा है। विदेशी कम्पनियों को भी अपने उत्पाद को बेचने के लिए आयुर्वेद का सहारा लेना पड़ रहा है। ऐसे समय में बाबा रामदेव को लक्ष्य करके आयुर्वेद के विरुद्ध एक अभियान प्रारम्भ किया गया है।
आयुर्वेद की औषधियों का मानक आयुर्वेद द्वारा ही निर्धारित किया जाना चाहिए। आयुर्वेद का क्लिनिकल ट्रायल आयुर्वेद के मापदण्डों पर किया जाना चाहिए। आयुर्वेद का मापदण्ड निर्धारित करनेवाला इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन कौन होता है?
मान लीजिए यदि विज्ञापन गलत भी हो तो आप औषधि पर प्रतिबंध कैसे लगा सकते हैं। क्या इसका परीक्षण नहीं होना चाहिए कि देश में कितने उत्पादों के विज्ञापन यथार्थ प्रदर्शित किए जा रहे हैं? विज्ञापन ध्यानाकर्षित करने के लिए होते हैं न कि सौ प्रतिशत उसके सत्य होने के प्रमाण होते हैं। यदि ऐसा होता तो पता नहीं कितने लोग अब तक ठण्डा पीकर पहाड़ से कूद गए होते।
क्या आईएमए अपनी औषधियों के प्रति आश्वस्त कर सकता है कि वह जिस रोग के लिए दी जाती हैं उसे पूरी तरह ठीक करने में सक्षम हैं? क्या इन औषधियों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता? एलोपैथ के पूरे इतिहास में इन औषधियों द्वारा मानव समाज ही नहीं प्रकृति और पर्यावरण का कितना नुकसान हुआ है क्या इसका विश्लेषण नहीं होना चाहिए? पशुओं को दी जानेवाली दर्द निवारक दवा डिक्लोफेन के कारण गिद्धों की पूरी प्रजाति ही समाप्त हो गई, इसका जिम्मेदार कौन है?
जबकि यह पूरी दुनिया जानता है कि एलोपैथ की नकली दवाओं का सबसे बड़ा बाजार भारत में है। इन दवाओं की मनमानी कीमत वसूली जा रही है, क्या न्यायालय ने कभी इस पर संज्ञान लेना उचित समझा?
गुलाम मानसिकता का हमारा संवैधानिक तंत्र आईएमए के इसारे पर जो दुराग्रह पूर्ण कृत्य कर रहा है यह केवल पतंजलि का विषय ही नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय चिकित्सा प्रणाली पर प्रहार है। वास्तविकता यह है कि न्यायालय में रामदेव की बखिया उधेड़ने के बहाने आयुर्वेद की ही बखिया उधेड़ने की बात कही गई थी।
साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह