डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : आपत्ति है तो केवल.. बस यही तुम्हें पिछले 75 वर्षों में सिखाया गया और आज भी सिखाने का प्रयास…
एक भिखारी था। वह भीख मांगने जा रहा था, तभी रास्ते में उसे आवाज सुनाई दी, जब वह निकट जाकर देखा तो एक सन्त गड्ढे में गिर गए थे और बहुत प्रयत्न करने के बाद भी बाहर नहीं निकल पा रहे थे। उसने उन्हें बाहर निकाला। संत बहुत प्रसन्न हुए और उसे अंगूठी देकर कहे कि इस अंगूठी में दिव्य शक्ति है। इससे तुम जो कुछ भी मांग करोगे वह तुम्हें प्राप्त होगा, लेकिन उससे दूना तुम्हारे पड़ोसियों को प्राप्त होगा।
वह घर आया पूरी घटना अपनी पत्नी को बताया, लेकिन अभाव में जीवन व्यतीत करता रहा, परन्तु उस अंगूठी से कभी कुछ नहीं मांगा, क्योंकि उसे पता था कि वह जो कुछ मांगेगा उससे दूना उसके पड़ोसियों को प्राप्त हो जाएगा। वह इस ईर्ष्या भाव के कारण गरीबी में ही जीवन बीताता रहा।
एक बार उसे कई दिनों तक भीख नहीं मिली। वह भूख के मारे तड़प रहा था, लेकिन अंगूठी का प्रयोग नहीं कर रहा था। उसकी पत्नी ने कहा, जब मर ही जाओगे तो यह अंगूठी रखने से क्या लाभ? पत्नी के बहुत कहने पर वह अंगूठी से मांगने के लिए तैयार हुआ। उसने अंगूठी का अह्वान करके कहा, धन-धान्य से परिपूर्ण हमारा एक तल का घर बन जाए। उसका तो एक तल का घर बना ही, उसके पड़ोसियों का उससे दूने धन से युक्त दो तल का घर बन गया। आगे भी वह जो कुछ भी मांगा उससे दूना उसके पड़ोसियों को मिलते गया। ईर्ष्या के कारण वह बहुत दुःखी हो गया और अपनी पत्नी से कहने लगा, इससे अच्छा तो हम गरीब ही ठीक थे। तभी उसके मन में एक विचार आया, वह अंगूठी सामने रखकर पुनः आह्वान किया और कहा, हम एक आँख से अंधे हो जाएं। पड़ोसी दोनों आँखों से अंधे हो गए। फिर उसने कहा हमारे दरवाजे पर एक कुआँ हो जाए, पड़ोसियों के दरवाजे पर दो कुंएँ हो गए। वे निकलते गए और गिरते गए।
ऐसी ही कुछ मानसिकता हमारे समाज के कुछ लोगों की विशेषता बन गई है। वे सोचते हैं कि भले ही हम कुछ न करें, भीख मांगते रहें, लेकिन हमारे देश के दूसरे लोग भी कुछ न कर पाएं, वे भी दरिद्र रहें।
देश में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कार्य चल रहा है, लेकिन उनके विषय में कोई चर्चा नहीं, क्योंकि उन्हें कोई जानता नहीं, लेकिन अम्बानी और अडानी इस देश के हैं, इसलिए उनकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी होनी गलत है। वे यहाँ पर कार्य करें यह गलत है।
अभी कल ही समाचार आया था, भारत के बैट्री उद्योग में चीन से सत्तर प्रतिशत बैट्री आयात की जाती है। उससे कोई परेशानी नहीं, लेकिन किसी भारतीय को इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ना चाहिए।
पूरे विश्व के औषधीय पौधों की पचास प्रतिशत प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं, लेकिन औषधि निर्माण में भारत बहुत पीछे है। पचास प्रतिशत औषधियाँ चीन में निर्मित होती हैं, लेकिन उससे किसी को परेशानी नहीं है, परेशानी है तो बाबा रामदेव से कि उन्होंने देश-विदेश में औषधियों का प्रचार और व्यापार कैसे कर लिया।
अब लोग कहेंगे कि जब इतनी बड़-बड़ी कम्पनियां होंगी तो हमारा क्या होगा? तुम्हारा तो उस समय भी कुछ नहीं हो रहा था जब अमेरिका से आयात किया हुआ एलोवेरा (घृतकुमारी) पन्द्रह सौ में खरीदते थे। तुमने एलोवेरा उत्पादन के विषय में नहीं सोचा, लेकिन वह आदमी साइकिल से बेचते-बेचते हवाई जहाज तक पहुंच गया और तुम ईर्ष्या ही करते रह गए। बस यही तुम्हें पिछले पचहत्तर वर्षों में सिखाया गया है और आज भी सिखाने का प्रयास हो रहा है
प्राॅक्टर एण्ड गैम्बल, हिन्दुस्तान लीवर के विषय में कभी आपत्ति नहीं की जाती, आपत्ति है तो केवल और केवल भारतीय कम्पनियों से।
हमारी संस्कृति में दरिद्र को नारायण मानकर उसकी सेवा का विधान तो है, लेकिन दरिद्रता की उपासना का विधान नहीं है। दरिद्र को भले ही कोई दूसरा नारायण माने, लेकिन दरिद्रता स्वयं के लिए एक अभिशाप है। कटोरा लेकर खड़ा रहने वाला समाज बनना किसी का आदर्श नहीं हो सकता, जो भी उद्यमी, स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर और देश का आर्थिक उत्कर्ष करने वाला है उसका सम्मान होना चाहिए, तभी समाज की उन्नति हो सकती है।
साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह