प्रवीण कुमार मकवाणा : आप सत्ता के साथ नहीं चलते, तो अपने क्षेत्र को पांच बरस पीछे ले जाते हैं

जब बच्चा-बच्चा जानता है कि बीजेपी तीसरी बार केंद्र में अपनी सरकार बनाने जा रही है, ऐसे में जिन्हें लगता है कि उनके क्षेत्र के विकास के लिए बीजेपी सांसद के अतिरिक्त कोई और अधिक योग्य सिद्ध होगा, तो ऐसे लोग या तो बहुत ज्यादा क्यूट हैं या फिर महा धूर्त्त।

जब सारे मंत्रालय पीएमओ को रिपोर्ट करते हों, ऐसे में पार्टी से अलग-थलग आपका कोई सांसद बड़ा तीर मार लेगा, यह महज़ मन बहलाने वाली बात है। हां, आप इसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विकेंद्रीकरण की भूमिका के परिप्रेक्ष्य में आलोचना करते हो, यह अलग मसला है। लेकिन मैं प्रैक्टिकल फील्ड की बात कर रहा हूं।

मान लीजिए आपके बीजेपी सांसद ने गत पांच बरसों में अपेक्षित विकास कार्य नहीं करवाए, यह कुछ जगहों की सच्चाई भी है, लेकिन अब कोई दूसरी पार्टी का सांसद कैसे करवा लेगा, मेरी समझ से बाहर है। जितनी भी संभावना है, पार्टी के साथ है।

मैं अपनी जालोर-सिरोही लोकसभा का उदाहरण देता हूं। पिछले पंद्रह बरसों से बीजेपी के सांसद हैं, उन्होंने कहीं एक पत्थर तक नहीं लगवाया है। लेकिन अब, जब राज्य में बीजेपी सरकार है और केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, तब एक बीजेपी सांसद के अतरिक्त किसी की भूमिका को सोचने का अर्थ होगा अपने क्षेत्र को पांच बरस पीछे धकेलना।

अच्छा, मैंने एक गैर भाजपाई प्रत्याशी का मैनिफेस्टो देखा-सुना। उसने जो मुद्दे अपने क्षेत्र के लिए उठाए हैं, उसमें से अधिसंख्य केंद्र का विषय हैं और शेष राज्य सूची के विषय। बताएं, बीजेपी राज में कैसे करवाएंगे ??

आप सत्ता के साथ नहीं चलते, तो अपने क्षेत्र को पांच बरस पीछे ले जाते हैं। यह कड़वा है, पर सच है।

शेष, यदि आपको नेताओं की व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा को अपना मान समझकर अपने लिए विकास-विहीन पंचवर्षीय योजना का चुनाव करना है, तो इस राजनीतिक-आत्महत्या से आपको कौन रोक सकता है भला ?

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