NRI अमित सिंघल : कमांडो 50, फिर 30, फिर 15 मीटर तक आ गए थे.. और…

कुछ दिन पूर्व शिव अरूर एवं राहुल सिंह की लिखी पुस्तक India’s Most Fearless भाग 3 पढ़ी। पुस्तक पिछले कुछ वर्षो में भारतीय सैनिको के अदम्य शौर्य का सजीव चित्रण करती है।

उदाहरण के लिए, हमें गलवान के सैनिको की वीरता के बारे में पता है। लेकिन क्या हम जानते है कि गलवान मुठभेड़ में आर्मी के पैरामेडिक (नर्स/कम्पाउण्डर) नायक दीपक सिंह का क्या रोल था? नायक दीपक ने ना केवल 13000 फ़ीट पर युद्ध के दौरान घायल भारतीय सैनिको की मरहम-पट्टी की, पेनकिलर इंजेक्शन दिया, ऑक्सीज़न चढ़ाई, बल्कि चीनी कमांडिंग ऑफिसर की भी देख-भाल की। बाद में, अँधेरे एवं कन्फ्यूज़न का लाभ उठाकर चीनी साइड अपने क्षेत्र में घायलों की सेवा के लिए ले गया था और बाद में नायक दीपक की हत्या कर दी थी।

या फिर, 29 दिसम्बर 2018 को भारतीय सैनिको को बिहेड करने के लिए (गर्दन काटने के लिए) पांच पाकिस्तानी कमांडो भारतीय सीमा के अंदर स्थित करलकोट चौकी तक आ गए थे। पाकिस्तानी अपने ब्रिगेडियर एवं कर्नल को घायल किये जाने का बदला लेना चाहते थे। पाकिस्तानियों ने चौकी की फोन लाइन काट दी थी। पास की पहाड़ियों से पाकिस्तानी कवर फायर दे रहे थे। पोस्ट के कमांडर हवलदार जितेंद्र सिंह ने दो किलोमीटर दूर स्थित कर्नल देबाशीष को घुसपैठियों की जानकारी रेडियो पर दे दी थी। लेकिन तब तक पाकिस्तानी कमांडो करलकोट चौकी के फ्रंट बंकर से सौ मीटर दूर थे और इस बंकर में सिपाही कर्मदेव ओराओन अकेले थे।

हवलदार जितेंद्र सिंह एवं उनकी पलटन के बंकर पर भी भरी गोली-बारी हो रही थी। अतः वे लोग सिपाही कर्मदेव के बंकर तक मशीन गन की फायर के कारण नहीं जा सकते थे।

देखते-देखते पाकिस्तानी कमांडो 50, फिर 30, फिर 15 मीटर तक आ गए थे। सिपाही कर्मदेव को इन कमांडो का आंशिक व्यू मिल रहा था और वे एकदम चुप बैठे थे। कारण यह था कि अगर वे गोली चलाते, तो दूरी के कारण निशाना चूक सकता था या फिर कुछ पाकिस्तानी कमांडो बच सकते थे। फिर वे उन्हें भ्रम में रखना चाहते थे कि पाकिस्तानी फायर के कारण बंकर में कोई भी सैनिक जीवित नहीं बचा है।

पाकिस्तानी कमांडो के ऐसे ही तीन अन्य जत्थो ने भी अलग-अलग पहाड़ियों से करलकोट चौकी को घेर लिया था।

15 मीटर दूरी पर वे दो ग्रुप में विभाजित हो गए जिससे अगर कोई भारतीय सिपाही छुपा बैठा हो तो उसका ध्यान बट जाए।

तीन कमांडो 10 मीटर दूर आ गए थे। उनके पास गर्दन काटने वाली कटार स्पष्ट दिखाई दे रही थी। इन तीनो ने केवलर बॉडी आर्मर (बुलेट प्रूफ) पहना हुआ था; हेलमेट पर कैमरा लगा था। अन्य दो कमांडो कुछ मीटर दूर छुप गए थे।

और फिर सिपाही कर्मदेव ने मशीन गन से फायर कर दिया। यद्यपि दो कमांडो को गोली लग गयी थी, लेकिन वे बॉडी आर्मर के कारण बच गए और एक चट्टान के पीछे पोजीशन ले ली।

उनकी गोली सिपाही कर्मदेव के माथे पर लग गयी और वे नीचे गिर गए। लेकिन उन्होंने रियलाइज़ किया कि बुलेटप्रूफ हेलमेट के कारण वे बच गए।

उधर पाकिस्तानी उनके बंकर पर मशीन गन से गोलियां एवं रॉकेट फायर कर रहे थे।

सिपाही कर्मदेव समझ गए थे कि बंकर के अंदर से वे इन कमांडो को नुक्सान नहीं पंहुचा सकते थे। वे चिंतित थे कि अगर पाकिस्तानी कमांडो ने उन्हें मार दिया, तो उनके पीछे के भारतीय सैनिको को भी कमांडो मार डालेंगे।

अतः उन्होंने दस हैंड ग्रेनेड का बॉक्स उठाया एवं बंकर से रेंगते हुए बाहर निकले। गोली-बारी के बीच उन्होंने दस के दस हैंड ग्रेनेड चट्टान के पीछे छुपे पाकिस्तानियों पर फेंक दिया।

एकाएक चट्टान के पीछे से फायरिंग बंद हो गयी। जब कमांडो की अटैक टुकड़ी से फायरिंग बंद हो गयी, तो निकट पहाड़ियों पर छुपे कमांडो ने भी फायर रोक दी और वे वापस लौट गए।

इस अटैक का लाइव वीडियो 2 किलोमीटर दूर स्थित भारतीय बटैलियन मुख्यालय में देखा जा रहा था।

सिपाही कर्मदेव ने दोपहर साढ़े चार बजे पाकिस्तानी कमांडो को देखा था और 4:50 बजे तक, बीस मिनट में, उन्होंने खेल समाप्त कर दिया था। भारतीय सेना की टुकड़ी वहां पहुंच गयी थी।

बाद में पता चला कि पाकिस्तानी अटैक में 15-16 कमांडो शामिल थे।

राष्ट्र ने नायक दीपक को मृत्योपरांत वीर चक्र (युद्ध के समय दिया जाने वाला मेडल) एवं सिपाही कर्मदेव को शौर्य चक्र (शांति के समय वीरता के लिए दिया जाने वाला मेडल) से सम्मानित किया।

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