प्रसिद्ध पातकी : वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि
योग का अर्थ सिर्फ देहयष्टि नहीं है। शरीर के साथ साथ अपने मन और अहंकार में इतनी लोच लाना भी है कि वह कुसुम की तरह मृदु हो जाए और तृण की तरह अभिमान शून्य बन जाए। यह अवस्था किसी एक लक्ष्य पर अपना समूचा जीवन झोंक देने से आती है।
मैं बहुत प्रसन्न हूं कि हमारे देश में राजसत्ता ऐसे निरभिमानी महापुरुषों का सम्मान करती है। विगत में कुछ नितांत नक्कारा फिल्मी हस्तियों और चापलूस पत्रकारों को सम्मानित कर पद्म पुरस्कारों पर जो तुषारापात हुआ था, उसे इन जैसे नैष्ठिक मनीषियों की कालजयी कांति ने लोकतंत्र के मुक्तांगन में पुन:भासित एवं पुन: प्रतिष्ठित किया है।
