डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : माँ गंगा’ कोई चुनावी नारा नहीं

‘माँ गंगा’ कोई चुनावी नारा नहीं है। आज समझने की आवश्यकता है कि गंगा माँ क्यों हैं और उनके साथ हमें कैसा व्यवहार करना है। यह भी समझना पड़ेगा कि हमें प्रकृति के साथ कैसा व्यवहार करना है। यथार्थतः इस व्यवहार की समझ ही धर्म है।

मानव प्रकृति के तत्वों को संसाधन मानता है यही उसकी भूल है। प्रकृति के साथ मानव का संबंध सह-अस्तित्व का है। आज के विकास की अवधारणा में सबसे बड़ी नासमझी यही है कि प्रकृति के साथ संबंध को सह-अस्तित्व के भाव से न देखकर संसाधन के भाव से देखा जा रहा है, जबकि वैदिक ऋषियों न सह-अस्तित्व के इस भाव का साक्षात्कार किया था। वे अनायास ही नदी, पर्वत, वृक्ष और पंच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) की स्तुति नहीं करने लगे थे। वैदिक वाङ्गमय में प्रकृति पर विजय की बात नहीं कही गई है, बल्कि प्रकृति के तत्वों को समझकर उनके साथ सामंजस्य के लिए उनकी स्तुति की गई, जिससे परस्पर एक दूसरे का संवर्धन हो सके।

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है-

सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा
पुरोवाच प्रजापति: ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ।।

सृष्टि की प्रारम्भ में, ब्रह्मा ने (यज्ञों) कर्तव्यों के साथ मानव जाति का निर्माण किया, और कहा, “इन यज्ञों (बलिदानों) से तुम इन्हें समृद्ध करो, ये तुम्हें इच्छित फल प्रदान करेंगे।” प्रकृति में निहित दिव्य शक्तियों (देवताओं) को तुम प्रसन्न करो ये देवता तुम्हें प्रसन्न करेंगे।

यही कारण है कि हिन्दू पर्वत, वृक्ष, नदी सभी को देवता मानता आया है और प्रकृति के तत्वों की माँ के रूप में पूजा करता है। यह केवल भावना और आस्था का ही विषय नहीं है यह सृष्टि के अस्तित्व से जुड़ा है।

कोई भी विकास जो प्रकृति के संतुलन को बिगाड़े वह विकास नहीं कहा जा सकता। विकास का उद्देश्य केवल सुविधा और पैसा नहीं होना चाहिए, विकास का उद्देश्य संतुलन होना चाहिए। जो संतुलन को भंग करे वह विकास नहीं हो सकता।

नदी सृष्टि की नैसर्गिक वरदान हैं, उनका बड़े से बड़ा पराक्रमी भी निर्माण नहीं कर सकता। उनके साथ संतुलन बनाए रखना ही सबसे बड़ा वरदान है। यदि नदियों को नष्ट कर कोई विकास हो रहा है तो वह विकास अनर्थकारी है और वह भी गंगा जैसी अद्वितीय नदी जिनकी महत्ता और दिव्यता को देखते हुए नदी शब्द से संबोधित करना भी अपराध है, उन्हें दिव्य साक्षात् माँ स्वरूपा माना गया है, यदि उनके अस्तित्व को संकट उत्पन्न हो जाए तो यह और भी अधिक चिन्ता का विषय है।

शोध के आधार पर समाचार पत्र में प्रकाशित यह रिपोर्ट गंगा की काशी में जैसी स्थिति प्रकट कर रही है यह चिन्ताजनक है। सरकार को गंगा पर स्थिति प्रतिवेदन (status report) प्रस्तुत कर जन सामान्य को वास्तविकता से अवगत कराना चाहिए।

साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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