समर प्रताप : सैनिकों के मैडल.. पहलवानों के मैडल…
मेरे दादा जी 1965 मे 1st आर्म्ड से रिश्लदार रिटायर हुवे थे।जब मैं संसद हमले के बाद OP पराक्रम में था तब खत्म हो गए थे बड़ी मुश्किल से छुट्टी आ पाया था।उनके सब क्रियाकर्म होने के बाद जब उनका पर्सनल रूम खोला तो सबने अपनी मर्जी के समान लिये।
हमने उनके आर्मी के मैडल और उनका शेविंग बॉक्स लिया।
मेरे पापा आज भी उसे ही यूज करते है।
उन मैडल्स को मैन एक गत्ते पर चिपका के शो केस में रखा।
दूसरे वर्ल्ड वार में कम से कम 4या 5 देशों में लड़े थे अलग अलग मैडल थे।
नीचे फोटो में मेरा सेना में 9 साल पूरे होने का मैडल मेरी vrs के वर्षो बाद दो या तीन महीने पहले पहुंचा है।
लड़के ने संभाल के रख दिया है।
बाजार में इसकी कीमत 15 ही रुपये होगी लेकिन मेरे लिये इसकी कोई कीमत नही है।
वर्दी छोड़ आये फौजी सब छोड़ देते है लेकिन अपने मैडल्स को छाती से लगाये रहते है।
किसी को सही पेंशन नही मिलती।
किसी को साजिश के तहत कोर्ट मार्शल भी कर देते है।
लेकिन वो अपने मैडल्स को फेंक देंगे नही बोलते है।
मैडल्स हमारी मेहनत का फल है,पसीने की खुशबू है।
मैडल आत्म सम्मान है।आत्मसम्मान के लिये लड़ने वाले योद्धा होते है।
पहलवानों तुम किसके लिये लड़ने की बात करते हो तुम अपने गौरव को ही नही सम्भाल पाये हो।
उसे ही हर रोज फेंकते घूम रहे हो।फुटपाथ पर रख रहे हो ।
तुम्हारी जिद और अकड़ या कोइ भी इच्छा उन मेडल और सम्मान से बड़ी नही है।
लेकिन इतना सोचेगा कौन,नारे लगाओ,देश के लिये अच्छा नही होगा कि धमकी दो।
तुमने न केवल मैडल्स फेंके है बल्कि अपनी इज़्ज़त भी नीलाम कर दी है।
और गई हुई इज़्ज़त की कोई कीमत नही होती।
जयहिंद