डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : विश्व जल दिवस और मां गंगा

आज विश्व जल दिवस। यह दिवसों का युग है। इस व्यस्त युग में कौन इतना खाली है कि किसी की प्रतिदिन चिन्ता करे। तीन सौ चौसठ दिन जल की चिन्ता किए बिना यदि आज के इस पुण्य दिवस पर जल के विषय में कुछ अच्छा बोल या लिख दिया जाए तो वही पुण्य मिलता है जो सौ योजन दूर गंगा के स्मरण करने से प्राप्त होता है। अब गंगा के विषय में तो सौ योजन की बात भी नहीं रही। यदि धरती पर गंगा न भी रहें तब भी उनका स्मरण कर लेने से वही पुण्य प्राप्त होगा। लोगों को गंगा से क्या मतलब उन्हें तो गंगा के पुण्य से मतलब है। गंगा रहें या न रहें लेकिन गंगा वाला पुण्य मिलना चाहिए।

प्रयागराज में रहने के कारण माँ गंगा का सहज सानिध्य प्राप्त होता है। गंगा का दर्शन और स्पर्श का अवसर भी प्राप्त होता है। निःसंदेह गंगा के तट पर अच्छा विकास हो रहा है। कुछ दिनों पूर्व गंगा दर्शन की इच्छा हुई। नागवासुकी मंदिर के नीचे से बहुत चौड़ी और सुंदर सड़क का विकास हुआ है। उसी रास्ते जा रहा था। बगल में कल-कल छल-छल की ध्वनि हो रही थी। मन में आया कुछ देर यहाँ रुका जाए। यह ध्वनि गंगा की नहीं बल्कि गंगा में विसर्जित होने वाले नाले की थी। कुछ देर वहाँ रुकना कठिन हो गया, क्योंकि उस नाले से भीषण दुर्गंध आ रही थी। वह दुर्गंध इतनी तीव्र थी कि कई घण्टों तक उसी गंध का आभास होता रहा है।

एक तरफ गंगा के तट का विकास था और दूसरी तरफ गंगा में प्रवाहित होने वाला नाला था। वास्तव में एक सराहनीय था, लेकिन दूसरे को क्या कहा जाए?

गंगा के तट भी सुंदर हो रहे हैं, स्थान-स्थान पर आरती भी हो रही है, आने वाले श्रद्धालु भी बढ़ रहे हैं, लेकिन गंगा के अस्तित्व का आधार क्या है? क्या गंगा जल की महत्ता के बिना यह सब कुछ हो सकेगा?

साभार – डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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