टीशा अग्रवाल : अर्जुन तो बहाना था श्रीकृष्ण को गीता हनुमानजी को सुनाना था

हनुमानजी अजर अमर हैं। हनुमानजी हर युग में थे, हैं और रहेंगें। सुंदरकांड में एक बहुत सुंदर चौपाई हैं;

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥

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कथावाचक रसराज जी को सुनती हूँ, हनुमानजी के लिए उनका प्रेम इतना हैं, कि जब वह अपनी वाणी से हनुमानजी के बारे में बातें करते हैं, उनकी चौपाइयां सुनाते हैं तो बहुत रस आता हैं।
रसराजजी हनुमानजी के अजर अमर होने को बहुत सुंदर तरीके से कहते हैं कि;

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥

अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम सप्त चिरंजीवी हैं। इनके साथ एक और चिरंजीवी हैं, ऋषि मार्कण्डेय। ऋषि मार्कण्डेय अष्टम चिरंजीवी कहे जाते हैं।

महाभारत के युद्ध के तो दृष्टा ही हनुमानजी थें। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध मे स्वयं हनुमानजी अर्जुन की ध्वजा पर बैठे थें।

अर्जुन की क्या बिसात जो स्वयं लक्ष्मीनारायण उन्हें गीता सुनाएं! वो तो उनके परम भक्त जो बैठे थे ध्वजा पर…वो गीता तो उनके लिए बोली गई थी।

अर्जुन के मोह का तो बहाना था,
भगवान श्री कृष्ण को
गीता तो हनुमानजी को सुनाना था!

रसराज जी बताते हैं कि, जब हम रामायण की बात करते हैं तो राम रावण की बात करते हैं। जब भी नाम लेते हैं राम का नाम सर्वप्रथम आता हैं, हम कभी भी रावण राम कर के कथा नहीं कहते।

हम यह भी जानते हैं कि जहाँ जहाँ राम कथा होती हैं, वहाँ हनुमानजी अवश्य पधारते हैं। अब जब कालनेमि कथा कहते हैं तो हनुमानजी को पता चलता है कि कहीं राम कथा हो रही हैं, और वो चल देते हैं सुनने…

वे किस्सा बताते हैं कि जब कालनेमि कथा कह रहे थे तो कहते हैं कि

होत महारण रावण राम ही…मतलब की रावण और राम का रण रामायण हैं।

अब हनुमानजी कहते हैं कि कथा हो तो रही है पर उल्टी पुल्टी सी कथा हो रही हैं। अब जब कालनेमि बोले जाएं तो उनका मन न लगें, वो बेचैन हो गए !

अब सोचिए कि जब हनुमानजी का मन रामकथा में मन न लगे, यह कैसे सम्भव हैं?

जब कथावाचक कालनेमि होते हैं तो हनुमानजी जैसे भक्त का भी कथा मे मन नहीं लगता। इसलिए जो राम कथा कहता हैं, उनकी बातें करता हैं, उनके बारे मे लिखता हैं…उसमे भाव अवश्य होने चाहिए, उसमे भक्ति होनी चाहिए, समर्पण होना चाहिए, प्रेम होना चाहिए। श्री राम पर विश्वास होना चाहिए।

मात्र पैसे और प्रसिद्धि के लिए की गई कथा या लेखन कालनेमि की कथा के समान हैं…जो स्वयं हनुमानजी भी नहीं सुन सकते।

इसलिए ईश्वर सबसे पहले आपसे समर्पण एवम प्रेम मांगते हैं, अगर आप यह नहीं कर सकते तो आप कभी उनके निकट भी नहीं जा सकते।

जय हनुमान
जय श्रीराम

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