छिलका नहीं पन्नी छिलने के काम में लगा दिया…
बाज़ारवाद जब जब हावी हो जाता है तब बाज़ार बिलकुल विचार-विहीन हो जाता है और लोगों को इस तरह से गुमराह करने लग जाता है और लोगों को प्रतीत होने लगता है कि बाज़ार उन्हें ठीक वैसे सहूलियत प्रदान कर रहा है जैसे बाज़ार में उपलब्ध यह छिले हुए केले…
और इसे खरीदकर खाने वाले स्वयं को सहूलियत के लायक समझने वाले इस कदर गुमराही कें अंधेरे में धकेले जा रहे होते है और लोग समझ ही नहीं पाते…
इस तरह बाजार ने तीन काम किये, पहला तो यह कि आपसे सहूलियत के नाम पर ज्यादा पैसे वसूल लिया गया, दूसरा यह कि आपको शारीरिक व्यायाम से धीरे धीरे अलग करता हुआ आलसी बना दिया और तीसरा यह कि आपको बीमार सा बना दिया जिससे छोटे छोटे कारणों के लिए चिकित्सक के पास भेज आपकी भविष्य के लिए जमा पूंजी को अनावश्यक खर्च करवा दिया…
और लोग यह कभी समझ ही नहीं पा रही कि उन्हें केले छीलने के आसान कार्य से मुक्त कर प्लास्टिक की पन्नी को छिलवाने लिया जो कि केले के छिलके छीलने से भी बहुत ज्यादा मुश्किल है !!!
ठीक वैसे ही जैसे वामपंथी तथाकथित बुद्धिजीवी इतिहासकारों ने भारतीय सनातन हिन्दू सभ्यता और संस्कृति को बनाया…
क्योंकि सिर्फ केले का छिलका छीलना ही लोगों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं हो सकता…
इसलिए बाज़ारवाद और वामपंथी विचारधारा से बचिए…
आपका आने वाला पल व कल मङ्गलमय हो…
साभार -जागरूकता
