चंदर मोहन अग्रवाल : मोदी सरकार पर कर्ज का बोझ..! भाग-2
मोदी से पहले की सरकारों में और मोदी की सरकार में एक अंतर और है। मोदी जी पैसा भारत के अंदरूनी रिसोर्स से ब्याज पर ले रहे हैं जैसे बैंकों से आम जनता से लोन लिया जा रहा है जबकि पहले वाली सरकारें यह लोन वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ आदि से लेतीं थीं।
इन दोनों तरह से लिए गए कर्जों में क्या फर्क है उसको मैं एक उदाहरण से समझाता हूं। मान लो कि कोई बेटा अपने पिता से लोन लेता है तो वह अपने पिता को ब्याज देगा और पिता उस ब्याज को वापस परिवार पर ही खर्च करेगा।। लेकिन अगर वह बेटा इस लोन को अपने किसी पड़ोसी से लेता है तो ब्याज का वह पैसा पड़ोसी के पास जाएगा जो कि वापस परिवार में कभी भी नहीं आएगा।
एक्सटर्नल और इंटरनल डैप्ट में यही फर्क है। यानी कि जो लोन बाहर से लिया जाएगा उसका ब्याज का पैसा बाहर जाएगा और जो लोन हिंदुस्तानी सोर्सेस से लिया जाएगा उसका ब्याज भी भारत के अंदर ही रहेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता रहेगा।
अब यहां पर प्रश्न उठता है कि भारतीय सरकार ने इतनी बड़ी अमाउंट में लोन लिया ही क्यों। तो भाई इसका सीधा-साधा उत्तर है हम दुनिया में और देशों से लगभग सभी क्षेत्रों में बहुत पीछे रह गए थे अब अगर हमें अपने आप को दुनिया के समकक्ष खड़ा करना है तो हमें बहुत सा पैसा इंडस्ट्री में, इंफ्रास्ट्रक्चर में, डेवलपमेंट पर, विज्ञान पर, अनुसंधान पर खर्च करना होगा। जब इन सभी क्षेत्रों पर बड़ी मात्रा में खर्च करना होगा तो पैसा कहां से आएगा?
बस इसी पैसे का अरेंजमेंट मोदी सरकार ने भारतीय बैंकों से और भारतीय जनता को बॉन्ड इश्यू करके किया है। अगले चार-पांच वर्षों में यह सब प्रोजेक्ट पूरे हो जाएंगे और प्रत्येक प्रोजेक्ट अपने आप में ही दूध देने वाली गाय बन जाएगा कुछ प्रोजेक्ट्स तो (हाइड्रोजन फ्यूल, सोडियम आयन् बैटरी सेमीकंडक्टर चिप्स आदि) मुख्य रूप से भविष्य में कामधेनु गाय साबित होने वाले हैं जो अपने पर खर्च किए गए पैसों को कई गुणा करके वापस भारतीय जनता को देंगे। दूसरी तरफ सरकार द्वारा जनता से लिए गए पैसे का ब्याज भी जनता को मिलेगा जिससे उनकी क्रय शक्ति (परचेसिंग पावर) बढ़ेगी और भारतीय जीडीपी भी द्रुत गति से बढ़ेगी।
क्रमश: