प्रसिद्ध पातकी : प्राणप्रतिष्ठा में जाना, कांग्रेस के लिए छद्म सेक्युलर लक्ष्मणरेखा को लांघने जैसा

अब लों नसानी…
मैं जब पिछली बार अयोध्या गया था तो तंबू में बैठे राम लला के समक्ष जाकर मेरे आंसु निकल आए. वहां लोहे के पाइपों के बीच इतनी भी जगह नहीं थी कि भगवान के समक्ष साष्टांग दंडवत किया जा सके. यह मेरी हीं नहीं मुझ जैसे लाखों आस्तिकों की पीड़ा रही होगी. उसी समय मेरे मन में यह प्रश्न उठा था कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यथास्थिति बनाए रखने को कहा था, यह नहीं कहा था कि भक्तों के लिए इतनी जगह भी ना छोड़ी जाए कि वह साष्टांग दंडवत कर सके.


आज बहुतेरे सेक्यूलर वादियों की त्योरियों इसलिए चढ़ी हुई हैं कि मोदी और योगी सरकार अयोध्या पर इतना पैसा क्यों फूंक रही है? अब इन मूर्खों को कौन समझाए कि मोदी और योगी सरकार अभी तक कि ये तथाकथित जितनी सेक्युलर सरकारें हुई हैं, उनका समवेत प्रायश्चित कर रही है. दुनिया भर में सेक्युलर की कहीं भी यह परिभाषा नहीं है कि बहुसंख्यकों की धार्मिक आस्थाओं के स्थल का तनिक भी विकास ना किया जाए और उन्हें नागरिक सुविधाओं के मामाले में नरक से बस एक फर्लांग दूर रखा जाए.

मेरा बचपन काशी और मथुरा में बीता तथा अयोध्या गुरु गृह है. जो भगवान रघुनंदन और माता जानकी घनघोर वन मेंं भी सुरुचिपूर्ण पर्णकुटी में रहते थे, उनकी जन्मभूमि की क्या स्थिति थी, किसी से छिपी नहीं. मथुरा तो एक समय सुख सुविधा के मामले में मानों कंस की साक्षात् नगरी थी. काशी भी कमोबेश ऐसी ही थी. ये तीनों तीर्थनगरी भले ही हमारी आस्थाओं में सदा सुहागिन रहती हैं पर एक के बाद एक, सरकारों ने इन्हें मणिकर्णिका बनाने में कोई कोर-कसर छोड़ नहीं रखी थी.
अयोध्या में रामनवमी, मथुरा में जन्माष्टमी और काशी में महाशिवरात्रि पर तो अपार भीड़ उमड़ती है. पर तमाम ऐसे अवसर हैं जब श्रद्धालुओं की भीड़ संभालने में प्रशासनिक मशीनरी की सांस फूल जाती है. बरसाने की लठामार होली, गोवर्धन की मुड़िया पूनो, बृदावंन में अक्षय तृतीया, अयोध्या की परिक्रमा ऐसे ही कुछ अवसर हैं.

अब प्रश्न उठता हैं कि एक के बाद एक सरकारों ने इन तीर्थ नगरियों को पर्यटन के नजरिए से कभी क्यों नहीं देखा. और की जाने दीजिए, मुस्लिम बहुल कश्मीर को देख लीजिए. पाक परस्त अब्दुल्ला, मुफ्ती और कांग्रेस सरकारों ने अमरनाथ तीर्थयात्रा और वैष्णों देवी मंदिर की सुविधाओं में कोई कमी नहीं आने दी और सारी विघ्न बाधाओं को दूर किया..कारण पर्यटन।

किंतु ब्रिटेन में पढ़े और समाजवाद की ओर झुके गुलाबचंद ने सोमनाथ मंदिर पुनरुद्धार के समय हिंदुओं के आस्तिकता स्थलों और भावनाओं को लेकर निषेध और ठंडी भावनाओं की ऐसी गाढ़ रेखा खींच दी कि परवर्ती सभी कांग्रेस सरकारों ने उसे संविधान की प्रस्तावना से भी पवित्र मान लिया और तदनुरूप आचरण शुरू कर दिया.

आज अयोध्या में राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा में जाना, कांग्रेस के लिए छद्म सेक्युलर लक्ष्मणरेखा को लांघने जैसा ही प्रतीत हो रहा है. उसके स्वप्न में सोमनाथ मंदिर पुनरुद्धार के समय वाला बाबू गुलाबचंद आ रहे हैं.कस कस कर बरज रहे हैं. वह आजकल रात में नींद से भड़भड़ाकर उठ जाती है. खैर क्या किया जा सकता है? कुछ लोगों ने रामजी की “विनय पत्रिका” में “सही” के स्थान पर “गलत” स्वयं अपने हाथों से लिखा है.
राम राम

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