सुधांशु तक : गाड़ी बुला रही है…

गाड़ी बुला रही है, सिटी बजा रही है :-

भारतीय फिल्मों का तो रेलगाड़ी से गहरा रिश्ता रहा है। जरा सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ का पहला सीन याद करिए। एक खाली से सूनसान प्लेटफार्म पर धुंआ उगलती ट्रेन रुकती है। एक शख्स उतरता है। इसके बाद से फिल्म के टाइटिल स्क्रीन पर उभरने शुरु होते हैं। निर्देशक बड़ी सहजता से हमें एक दूसरी दुनिया के भीतर लेकर जाता है। फिल्म खत्म होती है तो उसी सूनसान प्लेटफार्म से हम धर्मेंद्र को रामगढ़ से लौटते देखते हैं। घटनाओं की लंबी श्रृंखला के बाद दोबारा ट्रेन देखकर हमें अहसास होता है कि इस बीच कितना कुछ घटित हो गया। कितने नए रिश्ते बने, कितने बिछुड़े, किसी का प्रतिशोध पूरा हुआ, कोई अकेला रह गया।

दुलाल गुहा ने अब से तकरीबन तीन दशक पहले “दोस्त” फिल्म निर्देशित की थी जिसकी शुरूआत, नामावली से होती है और कैमरा नायक धर्मेन्द्र पर फोकस होता है जिसमें वो फादर फ्रांसिस का पत्र पढ़ रहे हैं। फादर फ्रांसिस की परवरिश से बड़ा हुआ नायक पत्र में उनका चेहरा देखता है। पत्र पढऩा शुरू होता है और नायक बचपन की यादों में चला जाता है। वो छोटी उम्र का बच्चा है, फादर फ्रांसिस उसे जाती हुई रेल के पास खिला रहे हैं और गाना गा रहे हैं, “गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है, चलना ही जिन्दगी है, चलती ही जा रही है……”।

किशोर कुमार ने यह गीत गाया भी बड़े वेग से है जो यकायक एकाग्र करता है, सुनने वाले हो। रेल, दोस्त फिल्म की फिलॉसफी में मुख्य भूमिका निभाती है। रेल के माध्यम से जीवन का दर्शन है। बहुत सारी घटनाएँ, दृश्य में रेल पाश्र्व में दिखायी देती है, कभी उसकी ध्वनि और सीटी भी।

हिन्दी फिल्मों में याद करने पर ऐसे कई अनूठे गीत याद आते हैं, जिनका अस्तित्व रेल के साथ ही घटित होता है। रेल में बैठकर, रेल के आसपास उसे देखते हुए, उसका आना-जाना, सीटी बजाना सब हमें प्रभावित करता है। उसकी छुक-छुक करती आवाज हम सबकी चेतना में बड़ी छोटी उम्र से ऐसी बसी है जो आज बिजली के इन्जनों के बावजूद भुलायी नहीं जा सकती है।

आज की देर रात्रि सुनिए फिल्म “दोस्त” का वही सुपरहिट गीत । इसे लिखा आनंद बक्शी साहब ने । संगीत से सजाया लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने । और आवाज है किशोर कुमार साहब की।

(सिने वार्ता/व्हाट्स ep/महेश जी भाईसाहब)

-साभार -सुधांशु तक

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