वेदों से कुछ ज्योतिष प्रमाण

यानि नक्षत्राणि दिव्यन्तरिक्षे अप्सु भूमौ यानि नगेषु दिक्षु।
प्रकल्पयंश्चन्द्रमा यान्येति सर्वाणि ममैतानि शिवानि सन्तु।। (अथर्व. 19/9/1)

जिन नक्षत्रों को चंद्रमा समर्थ करता हुआ चलता है, वे सब नक्षत्र मेरे लिए आकाश में, अन्तरिक्ष में, जल में, पृथ्वी पर, पर्वतों पर और सब दिशाओं में सुखदायी हों।


अष्टाविंशानि शिवानि शग्मानि सह योगं भजन्तु मे।
योगं प्र पद्ये क्षेमं च क्षेमं प्र पद्ये योगं च नमोऽहोरात्राभ्यामस्तु।। (अथर्व. 19/9/2)

अठाईस नक्षत्र मुझे वह सब प्रदान करें, जो कल्याणकारी और सुखदायक हैं। मुझे प्राप्ति-सामथ्र्य और रक्षा-सामथ्र्य प्रदान करें। दूसरे शब्दों में पाने के सामथ्र्य के साथ-साथ रक्षा के सामथ्र्य को पाऊँ और रक्षा के सामथ्र्य के साथ ही पाने के सामथ्र्य को भी मैं पाऊँ। दोनों अहोरात्र (दिवा और रात्रि) को नमस्कार हो।

इस अहोरात्र को पाराशरजी ने इस प्रकार कहा है –

अहोरात्राद्यंतलोपाद्धोरेति प्रोच्यते बुधै:।
तस्य हि ज्ञानमात्रेण जातकर्मफलं वदेत्।। (बृ. पा. हो. शा. अध्याय 3/2)

अहोरात्र पद के आदि (अ) और अंतिम (त्र) वर्ण के लोप से होरा शब्द बनता है। इस होरा (लग्न) के ज्ञान मात्र से जातक का शुभाशुभ कर्मफल कहना चाहिए।

तेज: पुज्जा नु वीक्ष्यन्ते गगने रजनीषु ये।
नक्षत्रसंज्ञकास्ते तु न क्षरन्तीति निश्चला:।।
विपुलाकारवन्तोऽन्ये गतिमन्तो ग्रहा: किल।
स्वगत्या भानि गृöन्ति यतोऽतस्ते ग्रहाभिधा:।। (बृ. पा. हो. शा. अ. 3/5-8)

रात्रि के समय आकाश में जो तेज: पुंज दिखते हैं, वे ही निश्चल तारागण नहीं चलने के कारण नक्षत्र कहे जाते हैं। कुछ अन्य विपुल आकार वाले गतिशील वे तेज: पुंज अपनी गति के द्वारा निश्चल नक्षत्रों को पकड़ लेते हैं अत: वे ग्रह कलाते हैं।

ऊपर तीन मंत्रों में नक्षत्रों से सुख, सुमति, योग, क्षेम देने की प्रार्थना की गयी। अब ग्रहों से दो मंत्रों में इसी प्रकार की प्रार्थना का वर्णन है। दोनों मंत्र अथर्ववेद के उन्नीसवें काण्ड के नवम सूक्त में हैं। इस सूक्त के सातवें मंत्र का अंतिम चरण शं नो दिविचरा ग्रहा: है, जिसका अर्थ है आकाश में घूमने वाले सब ग्रह हमारे लिए शांतिदायक हों। यह प्रार्थना सामूहिक है।

श नो ग्रहाश्चान्द्रमसा: शमादित्यश्च राहुणा।
शं नो मृत्युर्धूमकेतु: शं रुदा्रस्तिग्मतेजस:।।

चंद्रमा के समान सब ग्रह हमारे लिए शांतिदायक हों। राहु के साथ सूर्य भी शांतिदायक हों। मृत्यु, धूम और केतु भी शांतिदायक हों। तीक्ष्ण तेजवाले रुद्र भी शांतिदायक हों।

अब प्रश्न उठता है कि चंद्र के समान अन्य ग्रह कौन हैं? इसका उत्तर एक ही है कि पाँच ताराग्रह – मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि हैं जो चंद्र के समान सूर्य की परिक्रमा करने से एक ही श्रेणी में आते हैं। सूर्य किसी की परिक्रमा नहीं करता। इसीलिए इसको भिन्न श्रेणी में रखा गया है। राहु और केतु प्रत्यक्ष दिखने वाले ग्रह नहीं है इसलिए ज्योतिष में इसे छायाग्रह कहा जाता है परंतु वेदों ने इन्हें ग्रह की श्रेणी में ही रखा है। इस प्रकार सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु को ज्योतिष में नवग्रह कहा जाता है। कुछ भाष्यकारों ने चान्द्रमसा: का अर्थ चंद्रमा के ग्रह भी किया है और उसमें नक्षत्रों (कृत्तिका आदि) की गणना की है परंतु यह तर्कसंगत नहीं लगता। इस मंत्र में आये हुए मृत्यु एवं धूम को महर्षि पराशर ने अप्रकाश ग्रह कहा है। ये पाप ग्रह हैं और अशुभफल देने वाले हैं। कुछ के अनुसार गुलिक को ही मृत्यु कहते हैं। उपर्युक्त मंत्र में इनकी प्रार्थना से यह स्पष्ट है कि इनका प्रभाव भी मानव पर पड़ता है।

श्री पाराशरजी के अनुसार – पितामह ब्रह्माजी ने वेदों से लेकर ज्योतिष शास्त्र को विस्तार पूर्वक कहा है-

वेदेभ्यश्च समुद्धृत्य ब्रह्मा प्रोवाच विस्तृतम्।
(बृ. पा. हो. सारांश उत्तराखण्ड अध्याय 20/3)

कुछ और प्रमाण
‘बौधायन-गृह्य शेष सूत्र’ (3/10/1) – के विनायक कल्प में लिखा है –
मासि मासि चतुथ्र्यां शुक्लपक्षस्य पच्चम्यां वा अभ्युदयादौ सिद्धिकाम ऋषिकाम: पशुकामों वा भगवतो विनायकस्य बलिं हरेत्।

प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी अथवा पंचमी तिथि को अपने अभ्युदयादि के अवसर पर सिद्धि, ऋद्धि और पशु-कामना वाला पुरुष भगवान् विनायक (गणेश) के लिए बलि (मोदकादि नैवेद्य) प्रदान करें।

(अथर्ववेदीय पैप्पलाद शाखा का यह दीर्घायुष्य सूक्त से)

सं मा सिच्चन्तु मरुत: सं पूषा सं बृहस्पति।
सं मायमग्नि सिच्चन्तु प्रजया च धनेन च।।

मरुद्गण, पूषा, बृहस्पति तथा यह अग्नि मुझे प्रजा एवं धन से सींचें तथा मेरी आयु की वृद्धि करें।
(दीर्घायुष्य-सूक्त)

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यों अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। (सामवेद, 21/3/9)
विस्तृत यश वाले इन्द्र हमारा कल्याण करें, सर्वज्ञ पूषा हम सबके लिए कल्याणकारक हों, अनिष्ट का निवारण करने वाले गरुड हम सबका कल्याण करें और बृहस्पति भी हम सबके लिए कल्याणप्रद हों।

-साभार

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