नीलेश कुमार शुक्ला : संयम अर्थात् एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध
स्वयं द्वारा स्वयं के विरुद्ध छेड़ा जाने वाला संग्राम ही संयम कहलाता है और सरल करें तो संयम की परिभाषा मात्र इतनी कि-
“संयम अर्थात् एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध”।
संयम मानवीय गुणों में एक प्रधान गुण है। पशुओं में स्वयं के विरुद्ध कोई युद्ध देखने को नहीं मिलता। पशुओं में इन्द्रिय निग्रह देखने को नहीं मिलता अर्थात् पशुओं में संयम नहीं होता है। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि जिस जीवन में संयम नहीं वह जीवन पशु भले न हो मगर मगर पशुवत जरूर हो जाता है।
असंयमितता जीवन को पतन की ओर ले जाती है। असंयमित जीवन एक असंतुलित वाहन की तरह होता है, जिसमें चालक वाहन के ऊपर से अपना नियंत्रण पूरी तरह खो चुका होता है।अब थोड़ी देर से सही मगर वाहन का दुर्घटनाग्रस्त होना सुनिश्चित हो जाता है।
जीवन में संयमी और शुभ कार्यों में अग्रणी, ये श्रेष्ठ व्यक्तियों के लक्षण होते हैं।