नितिन त्रिपाठी : इस रोटी में वो प्यार कहां..!!
यह है रोटी मेकिंग मशीन. तीन चैम्बर हैं – आटा डालो तेल डालो पानी डालो. बटन दबा कर बता दो कितनी खरी चाहिए, कितनी मोटी हो, कितना तेल लगा हो, कितनी रोटियाँ चाहिए. आराम से बैठ जाइए गर्मा गर्म रोटियाँ तैयार.
प्रश्न आते हैं इन रोटियों में वो प्यार कहाँ होगा. कई लोगों ने प्यार की बड़ी sadistic परिभाषा बना रखी है. रोटी मेकर में रोटी है तो प्यार नहीं – गैस के चूल्हे पर बने तब ही प्यार है. बीस साल पहले था कि मिट्टी के चूल्हे पर बने तब प्यार है. प्रेमचंद की ईदगाह में था कि चिमटा न हो हाथ जल रहा हो तब प्यार है. उससे पचास साल पहले था कि माँ / पत्नी स्वयं न खाये बाक़ियों को खिला कर यदि बच जाये तो खा ले वही प्यार था.

प्रश्न होते हैं दुनिया का मशीनी करण ग़लत हो रहा है. मशीनी करण न हुआ होता तो आप ही इस धरती पर न होते. दुनिया की सबसे पहली मशीन थी पत्थर के हथियार. आम मनुष्यों के हाथ उन हथियारों को पकड़ने में सक्षम नहीं थे. मनुष्य ने स्किल डेवलोप की उन हथियारों को हाथ से पकड़ चलाने की. तभी उस मशीन से मनुष्य जंगली जानवरों का मुक़ाबला कर पाये. नदी सूख गई. पहिया नामक मशीन न बनाते तो सारी संस्कृति की बातें करने वालों के पूर्वज ही न जीवित बचते. और सबसे मज़ेदार जिस मोबाइल को हाथ में लेकर मशीनी करण का मातम मनाते हो वह भी मशीन ही है. मशीन से नफ़रत है एक महीने के लिये मोबाइल बंद करके देखिए समझ आ जाएगा कितना आवश्यक है.
मनुष्य और मशीन पर्यायवाची हैं. मशीन है तो मनुष्य है अन्यथा न मनुष्य बचता न मशीन बनती.
