जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा करो..
भारत के राष्ट्रपति डाक्टर सर्वोपल्ली राधाकृष्णन के विचार —
जैसी तुम्हारी इच्छा हो वैसा करो।
परमात्मा देखने में तटस्थ या निरपेक्ष दिखाई देता है, क्योंकि उसने चुनने का निर्णय अर्जुन के हाथ में छोड़ दिया है।
उसकी यह निरपेक्षता ही अर्जुन की चिंता का कारण है। वह किसी पर भी दवाब नहीं डालता। क्योंकि स्वतः स्फूर्त स्वतंत्रता बहुतमूल्यवान होती है। भगवान अपना आदेश ऊपर से नहीं थोपता। वह स्वतंत्र छोड़ देता है। परमात्मा की पुकार को स्वीकार करने या अस्वीकार कर देने के लिए हम हर समय स्वतंत्र हैं। हम लड़खड़ाने लगें तो वह सहायता देने के लिए सदा तैयार रहता है और प्रतीक्षा करने को तैयार है, जब तक हम उसकी ओर उन्मुख न हों।
आध्यात्मिक नेता हम पर शारीरिक तप, चमत्कार, प्रदर्शन के जरिए प्रभाव नहीं डालते। सच्चा शिष्य यदि कोई गलती कर भी बैठे,तो वह उसे केवल सलाह देगा। यदि शिष्य की चुनाव करने की स्वतंत्रता पर आंच आती हो, तो वह उसे गलत रास्ते से भी वापसलौट आने के लिए विवश नहीं करेगा। गलती भी विकास की एक दिशा है।
कृष्ण केवल सारथी हैं वह अर्जुन के आदेश का पालन करेंगे। उन्होंने कोई शस्त्र धारण नहीं किया हुआ है। यदि वह अर्जुन पर कोई प्रभाव डालते है तो वह उसे अपने उस सर्वजयी प्रेम के जरिए डालते है। जो कभी समाप्त नहीं होता।
अर्जुन को अपने लिए स्वयं विचार करना चाहिए। और अपने लिए स्वयं ही मार्ग खोज करना चाहिए। अस्पष्ट मान्यताओं को अनिवार्य रूप से और भावुकता पूर्वक अपना लिए जाने के कारण कट्टर धर्मांधता उत्पन्न हुई हैं और उनके कारण मनुष्यों को अकथनीय कष्ट उठाना पड़ा है।
इसलिए यह आवश्यक है कि मन और विश्वासों के लिए कोई तर्क संगत और अऩुभावात्मक औचित्यढूंढे।
अर्जुन को एक वास्तविक अखंडता की अऩुभूति प्राप्त करनी होगी लेकिन उसके विचार अपने हैं। और गुरु के जरिए उस पर थोपे नहीं गए हैं। दूसरों पर अपने सिद्धांतों को थोपना शिक्षण नहीं है।
-डा. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन्
