विक्रम संवत कैलेण्डर भारत में सर्वाधिक प्रयोग…जबकि यह नेपाल का आधिकारिक कैलेण्डर है…
यह हिन्दू-वर्ष विक्रम-सम्वत ही भारतीय संवत्सर है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाने के अनेक कारण हैं। काल गणना से यह साबित होता है कि पृथ्वी का उदय इसी दिन हुआ था। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना रविवार को आरंभ की थी। भारतीय कालगणना के हिसाब से 02 अप्रैल को सूर्योदय के समय सप्तम वैवस्वत मनवंतर के 28वें महायुग में तीन युग सत, त्रेता और द्वापर बीत जाने के उपरांत कलियुग के प्रथम चरण में वर्तमान सृष्टि की आयु 1,96,58,85,123 वर्ष पूरी हो जाएगी। यह तथ्य विज्ञान के शोधों से भी पुष्ट हो चुका है।
ग्रेगोरियन (अंग्रेजी) कलेंडर की काल गणना मात्र 2000 वर्षों के समय को दर्शाती है जबकि यूनानी काल की गणना 3581 वर्ष दर्शाती है…रोम की 2758 वर्ष,….यहूदी 5769 वर्ष…मिस्र 28672 वर्ष….पारसी 198876 तथा चीन की 96002306 वर्ष प्राचीन है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सोमवार से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2079 आरंभ हो गया है। विक्रमी संवत का संबंध किसी व्यक्ति से न होकर प्रकृति और खगोलीय सिद्धांतों से है पंचांग विज्ञान के अनुसार प्लवंग नामक इस संवत्सर का राजा और मंत्री दोनों चंद्रमा हैं।
चंद्रगति पर आधारित भारतीय कैलेंडर की ही यह विशेषता है कि यह प्रकृति के साथ पूर्ण सामंजस्य रखता है। इसी के आधार पर गणना कर हम सूर्य-चंद्र और अन्य ग्रहों-नक्षत्रों के बारे में सही-सही स्थिति का ज्ञान होता है। यह केवल इसी कैलेंडर की विशेषता है जिसमें यह निश्चित है कि सूर्यग्रहण अमावस्या और चंद्रग्रहण पूर्णिमा को होगा। इसके माध्यम से हजारों वर्ष पीछे अथवा आगे की गणना सटीक ढंग से की जा सकती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाने के अनेक कारण हैं। काल गणना से यह साबित होता है कि पृथ्वी का उदय इसी दिन हुआ था। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना रविवार को आरंभ की थी। भारतीय कालगणना के हिसाब से 02 अप्रैल को सूर्योदय के समय सप्तम वैवस्वत मनवंतर के 28वें महायुग में तीन युग सत, त्रेता और द्वापर बीत जाने के उपरांत कलियुग के प्रथम चरण में वर्तमान सृष्टि की आयु 1,96,58,85,123 वर्ष पूरी हो जाएगी। यह तथ्य विज्ञान के शोधों से भी पुष्ट हो चुका है।
हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 119 वर्ष है, जिसे सृष्टि संवत्सर भी कहते हैं l लोक मान्य तिलक ने सप्रमाण सिध्द किया है कि वैदिक संवत्सर वसन्त सम्पात से प्रारम्भ होता है। गणना करने पर फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को वसन्त सम्पात लगभग 22,000 वर्ष पूर्व आता है, क्योंकि क्रान्तिवृत्त की एक परिक्रमा करने में 26,000 वर्ष लगते हैं।
भूगर्भशास्त्र के अनुसार उत्तरी ध्रुव में प्रत्येक 10,000 वर्ष पर पृथ्वी की केन्द्रयुति होने से हिमपात होता है। प्रथम हिमपात खरबों वर्ष पूर्व हुआ होगा। वेदों में प्रथम हिमपात का वर्णन है। तिलक ने यह स्वीकार किया है कि ट्टग्वेद के देवता ट्टषि, सूक्त सभी कम से कम प्रथम हिमपात के पूर्व के हैं, बाद के नहीं।
अविनाशचन्द्र दास ने अपने ट्टग्वैदिक इंडिया नामक ग्रन्थ में भूगर्भशास्त्र के आधार पर वेदों का रचनाकाल 25,000-50,000 ई. पू. माना है। नारायणराव भवानराव पावगी ने अपनी पुस्तकों 1. अार्यावर्तातील आर्याची जन्मभूमि (आर्यावर्त: आर्यों की आदि जन्मभूमि) और 2. द वैदिक फादर्स आफ जिओलाजी में भूगर्भशास्त्र के आधार पर वेदों का रचनाकाल 2.40 लाख वर्ष पूर्व माना है। डा. कृष्णवल्लभ पालीवाल (जन्म-1927 ई.) ने पौराणिक कालगणना के आधार पर वेदों को 1, 97, 29, 49, 109 (लगभग दो अरब) वर्ष प्राचीन सिध्द किया है।
आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री ने अपने ग्रन्थ ‘वैदिक युग और आदिमानव’ में भूगर्भ विज्ञान, ज्योतिष और वैदिक वांगमय के आधार पर वेदों का रचनाकाल मानव-सृष्टि के साथ माना है।
किन्तु वेदों में मनु की जल-प्रलय की कथा का कोई उल्लेख नहीं है। पुराणों में ही यह वर्णन है। अतएव वेद मानव-सृष्टि से भी प्राचीन हैं, यह सिध्द है।