डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : धर्म नाश पर बिना पूछे भी यथार्थ स्वरूप को बतलाने वाला वक्तव्य ( कथन) अवश्य करें

मौन वाणी से अधिक मुखर होता है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए नहीं। मौन उन्हीं के लिए मुखर होता है जो मौन की भाषा समझ सकें वरना दूसरे के मौन को लोग अपनी विजय समझ लेते हैं।

मौन को समझने के लिए हृदय की निर्मलता आवश्यक है, जिसके अंतःकरण में मल है वह मौन की भाषा नहीं समझ सकता। मौन संवेदना की भाषा है, इसलिए असंवेदनशील धूर्त, कपटी के लिए मौन का कोई अर्थ नहीं है।

मौन सदैव स्वीकृति को नहीं प्रदर्शित करता। कभी-कभी मौन में मार्मिक विरोध भी अन्तर्निहित होता है, लेकिन चालाक व्यक्ति उसकी व्याख्या “मौनं स्वीकृतिः लक्षणं” के रूप में करता है।

इसलिए शास्त्र कहता है।

धर्मनाशे क्रियाध्वंसे
स्वसिद्धान्तार्थविप्लवे।
अपृष्टैरपि वक्तव्यं
तत्स्वरूपप्रकाशने ।। (ज्ञानार्णव/545)

जब धर्म का नाश हो रहा हो, सम्मत क्रिया नष्ट हो रही हो, सिद्धांत का गलत अर्थ लगाया जा रहा हो तब बिना पूछे भी यथार्थ स्वरूप को बतलाने वाला वक्तव्य ( कथन) अवश्य करना चाहिए।

साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह

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