नितिन त्रिपाठी : कुकर्मी है ये इंपोर्टेंट नहीं, इंपोर्टेंट ये है कि हमारा कुकर्मी है..
एक समय था उत्तर प्रदेश में मायावती को हटा पाना लगभग असंभव दिखता था. मायावती हर वह काम करती थीं जिसे देख बच्चा भी समझ सकता है कि एक्सट्रीम भ्रष्ट हैं. नोटों की माला पहनना, सैंडिल की डिलीवरी लेने प्राइवेट जहाज़ विदेश भेजना, शहर की प्राइम लोकेशंस पर बंगले, सैंकड़ों करोड़ के घोटालों का आरोप. किसी भी अन्य लोकतंत्र में कोई नेता ऐसा सार्वजनिक भ्रष्टाचार का प्रदर्शन कर जनता से वोट नहीं माँग सकता.
विरोधियों का कहना होता था कि इनके समर्थक जो प्रायः समाज के सबसे निचले वर्ग से थे वह इसी में ख़ुश रहते थे कि चलो हम जैसे हैं तो हैं कम से कम हमारी जाति का कोई तो ऐश कर रहा है.
वैसे यह सचाई केवल मायावती के वोटर्स की नहीं, हर राजनीतिक दल के समर्थकों की है.
कोई रेपिस्ट पकड़ा जाए, आप तुरंत पायेंगे एक बड़ा वर्ग कुछ न कुछ उसके समर्थन में दलीलें निकाल लाएगा. और कुछ नहीं तो यही निकाल लाएगा कि अन्य रेप के केस में एक्शन नहीं हुआ तो इसमें क्यों.
कोई भ्रष्टाचारी पकड़ा जाए, वह भले अपना बचाव न करे, लेकिन करोड़ों लोग जो उसकी पार्टी को वोट देते हैं बचाव में कूद पड़ेंगे.
जीते हुवे असल स्पोटर्समैन को भले ही पुरुष्कार न मिले, लेकिन बग़ैर मेडल लाये एक एथलीट को भारत रत्न मिले क्योंकि यह उस राजनैतिक दल की समर्थक है जिसके हम हैं.
किसी नेता के बेटे के चमचे को वीआईपी व्यवस्था मिली हो उसके समर्थन में करोड़ों खड़े मिलेंगे – उनकी पार्टी के नेता के बेटे का चमचा है.
ख़ास बात यह है कि यह रेपिस्ट, यह भ्रष्टाचारी, यह वीआईपी इन समर्थकों को भी न छोड़ेगा मौक़ा पड़ने पर. जिनके कुकृत्यों का ये समर्थन करते हैं उसके साथ सेल्फ़ी की कोशिश में भी इन्हें तोड़ दिया जाये, पर समर्थन रहता है कुकर्मी है ये इंपोर्टेंट नहीं, इंपोर्टेंट ये है कि हमारा कुकर्मी है.
और फिर यही जनता नेताओं को गाली देती है कि नेता उसके लिए कुछ नहीं करते.
किसी भी लोकतंत्र में नेता उस जनता का आईना होते हैं. जैसी प्रजा वैसे नेता.
-साभार
