सुरेंद्र किशोर : दलों में तालमेल बैठाना यानी मेढ़क तौलना !

सन 1966-67 में गैर कांग्रेसी दलों के बीच चुनावी तालमेल करने की पहली बार गम्भीर कोशिश हुई थी।
उस कोशिश में लगे हुए थे डा.राममनोहर लोहिया और नानाजी देशमुख जैसे दिग्गज नेता।
न तो डा.लोहिया को कभी खुद सत्ता में आना था और न ही नाना जी को।यानी,उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं था।

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फिर भी उन्हें भी तालमेल में आंशिक सफलता ही मिल सकी।
बिहार में संसोपा और कम्युनिस्ट मिलकर 1967 का चुनाव लड़े थे।
उसका राजनीतिक लाभ हुआ।
नतीजतन, बिहार में भी पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बन गयी।
यदि 1967 में पूर्ण प्रतिपक्षी एकता हो गयी होती तो 1967 में ही केंद्र से भी कांग्रेस सरकार हट गयी होती।
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हां,1967 में एक अजूबी बात जरूर हुई ।
बिहार और उत्तर प्रदेश के गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडलों में जनसंघ और सी.पी.आई. भी एक साथ शामिल थे।
अन्य राज्यों में ऐसा हुआ या नहीं, यह मुझे याद नहीं।
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आपातकाल की पृष्ठभूमि में सन 1977 के प्रारंभ में लोक सभा चुनाव की घोषणा हुई ।
जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि गैर कांग्रेसी दल आपस में विलय कर लें।
कोई दल तैयार नहीं था।
इस काम में जब देरी होने लगी तो जेपी ने धमकी दी–
आपलोग विलय नहीं करेंगे,तो हम नया दल बना कर चुनाव लड़वाएंगे।
चूंकि जनता पूरी तरह जेपी के साथ थी,इसलिए डर कर चार राजनीतिक दलों ने आपस में मिलकर जनता पार्टी बना ली।
चुनाव के जरिए कांग्रेस केंद्र की सत्ता से पहली बार हटा दी गयी।
वह इसलिए संभव हो सका क्योंकि एक बड़ी हस्ती जेपी दलीय एकता के लिए काम कर रहे थे।उनका भी कोई निजी स्वार्थ नहीं था।
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आज नव गठित ‘‘इंडिया’’ में शामिल राजनीतिक दलों को सीटों के बंटवारे में दिक्कतें आ रही हैं।
स्वाभाविक है।
अधिकतर नेता ‘उम्मीदवार’ जो हैं।
आज तो वैसी कोई हस्ती नहीं जो दलों पर दबाव डाल कर जल्द से जल्द सीटों का तालमेल करवा दे।
दरअसल कांग्रेस पार्टी इस साल होने वाले विधान सभाओं के चुनावों के रिजल्ट देख लेना चाहती है।
यदि कांग्रेस ने एक या दो विधान सभा चुनावों में भी विजय हासिल कर ली तो उसकी ताकत बढ़ जाएगी।
साथ ही, गैर राजग दलों के साथ सौदेबाजी करने की उसकी क्षमता काफी बढ़ जाएगी।
ऐसे में प्रतीक्षा करने के अलावा गैर राजग -गैर कांग्रेस दलों के सामने अन्य कोई उपाय भी नहीं है।
हां,यदि कांग्रेस मजबूत होगी तो सन 2024 के लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के बीच ही मुख्य मुकाबला होता नजर आएगा।
वह स्थिति व उसकी खबर राजग के कानों में मधुर संगीत की तरह होगी।
दरअसल इस देश का अधिकांश राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेता,भले राहुल गांधी कांग्रेस के लिए जितना भी बहुमूल्य हों।
हां,यदि ‘‘इंडिया’’ नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के मुकाबले अगले लोक सभा चुनाव मैदान में उतारता तो
मुकाबले में थोड़ी गंभीरता आती।

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