सुरेंद्र किशोर : सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे !!?

सन 1977 में पंजाब के मुख्य मंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि ‘‘मुख्य मंत्री को एक हाथ से अपनी कुर्सी पकड़नी पड़ती है और दूसरे हाथ से पगड़ी।
काम करने के लिए कोई हाथ बचता ही नहीं।’’

उन्हीं दिनों एक अन्य मुख्य मंत्री ने कहा था कि
‘‘दोनों हाथों से कुर्सी ही पकड़नी पड़ती है।
पगड़ी जाए तो जाती रहे।’’

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उपर्युक्त बातें तो अब पुरानी पड़ चुकी हैं।
अब तो लोक सभा,राज्य सभा, विधान सभा और विधान
परिषद की अनेक सीटें (शुक्र है कि अभी सारी सीटें नहीं बिकतीं !!)बिक जाती हैं।
स्थानीय निकायों से बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं।
इस चुनाव के अधिकतर उम्मीदवारों के ‘प्रोफाइल’ पर गौर कर लें।पता लगा लें।
लोकतंत्र का अब यही है चेहरा …….!
ऐसे में ‘पगड़ी’ की चिंता अब किसे है ?
‘गठरी’ मजबूत होती रहनी चाहिए।
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कई साल पहले की बात है।
राज्य सभा के एक सदस्य ने दिल्ली में अपने सरकारी आवास के सुंदरीकरण में करीब दो या तीन करोड़ रुपए लगा दिए।
किसी ने उनसे पूछा कि आप तो छह साल के लिए ही चुने गए हैं।
इसलिए इस मकान में इतने पैसे लगाने की क्या जरूरत थी ?
उनका जवाब था–आप मेरे चुनाव क्षेत्र को नहीं जानते।
उसका नाम है–‘मनीपुर।’’यानी पैसा पुर ।
मैं जब तक जीवित रहूंगा, मनी यानी रुपयों के बल पर उस
क्षेत्र में चुनाव जीतता रहूंगा।
उनकी बात सही साबित हुई।वे अब इस दुनिया में नहीं रहे।
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आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ गंवा देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन अपने देश के लोकतंत्र का स्वरूप इस तरह का बन जाएगा !!
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कुछ बातें इससे भी अधिक गंभीर हैं।
इस देश के कुछ दलों व नेताओं ने टुकड़े-टुकड़े गिरोहों और राष्ट्र विरोधी तत्वों से स्थायी ‘सौदा’ कर लिया है।
राष्ट्रविरोधी तत्वों को उन दलों -नेताओं की ओर से पूरी छूट है।वे दल चुनावों में भी उन राष्ट्रविरोधी तत्वों के गंभीर कारनामों की कोई चर्चा तक नहीं करते।
सौदा यह भी है कि वे अपनी ताकत को इसी तरह मजबूत करते जाएं।
एक दिन इस देश में एक बार फिर ‘‘मध्यकालीन भारत’’ का पुनरावृति कर लें।
पर,सिर्फ एक काम करते रहें ।
जब तक हम जिंदा हैं,हमें अपना वोट देते जाएं।
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एक समय था जब राजनीति सेवा का दूसरा नाम था।
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इमरजेंसी में सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान करके इंदिरा गांधी ने इसे ‘नौकरी’ बना दिया।
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नरसिंह राव ने सांसद फंड का प्रावधान करके इसे व्यापार बना दिया।
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2004- 2014 में मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी ने राजनीति को ‘उद्योग’ बना दिया।
उस काल के कई राजनीतिक -गैर राजनीतिक घोटालेबाजों की कमाई क्या उद्योगपतियों जितनी नहीं है ?
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पहले लिखा गया दुबारा प्रस्तुत

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