कौशल सिखौला : बेशर्म आदत.. संविधान बदल देंगे..!

एक ही बात का रट्टा लगाने की बड़ी बेशर्म आदत है उन्हें । एक तरह से कहें तो पक्की आदत पड़ गई है । थोड़े थोड़े दिनों बाद विषय बदल देते हैं और नए विषय की रटन्त लग जाती है । आजकल पाठ पढ़ लिया कि वे चुनाव के बाद आते ही संविधान बदल देंगे । भाई हो या बहन , प्रत्येक भाषण में एक ही बात कि वे संविधान बदल देंगे । खास तौर से मुस्लिम मतदाताओं को बता रहे हैं कि सावधान , ये संविधान बदल देंगे।

यह लाल किताब तो नहीं है , पर लाल रंग की एक किताब भी साथ लेकर चलते हैं । भाषण देते हुए दिखाते हैं कि देखिए साहिबान यह है संविधान जिसे मोदी बदलना ” चाहता है ” । हमें वोट दीजिए , हम इन्हें संविधान नहीं बदलने देंगे । अब उनका नादान भाषण सुनकर कोई तो खुश होता होगा । अधिकांश तो एक दूसरे से पूछते होंगे कि भाई किसी को संविधान बदलने की क्या जरूरत आ पड़ी।

क्या कोई व्यक्ति संविधान बदल सकता है ? जो कह रहे हैं कि ये सत्ता में आए तो संविधान बदल देंगे , वे बताएं कि उन्हें क्या क्या बदलने की संभावना है ? संविधान में संशोधन होते हैं । आज नहीं , जिन लोगों ने संविधान बनाया , उन्हीं डाक्टर राजेंद्र प्रसाद और डाक्टर अंबेडकर के जीवन काल से होते आए हैं । पंडित नेहरू सरकार से लेकर मोदी सरकार तक सभी ने संविधान की कुछ धाराओं में संसद में संशोधन किए हैं । यह आम बात है।

पूरी दुनिया में संशोधन होते हैं । भारत के संविधान में सौ से अधिक बार संशोधन हुए हैं । संशोधन कोई पीएम नहीं करता , सर्वोच्च संसद करती है । संसद से बड़ा न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और न राहुल गांधी । बस तोते की तरह रटे जा रहे हैं कि मोदी संविधान बदल देंगे । राहुल कहते हैं कि 400 पार का नारा ही संविधान बदलने के लिए दिया गया है । तो साथ साथ यह भी बताते चलें कि राजीव गांधी को जब 403 सीटें मिली थी तो उन्होंने क्या संविधान बदल दिया था ? उनका असली डर 370 हटाने का है । तभी से उन्हें लगाने लगा कि ये संविधान बदल देंगे।

चुनाव के चार चरण पूरे हो चुके हैं । कुल मिलाकर देखें तो एक जून का अंतिम चरण अब बहुत दूर नहीं है । इंडी गठबंधन हो या एनडीए , दोनों ओर से जो नेरेटिव सैट होना था , बहुत पहले हो चुका है । केजरीवाल जैसे लोग मोदी बनाम अमित शाह कहकर जो पुलाव पका रहे हैं , वह पका ही नहीं , कच्चा रह गया । देखिए मोदी यदि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो 73 वर्ष की उम्र में बनेंगे।

मतलब उनका तीसरा कार्यकाल पांच साल चलेगा । 75 वर्ष की उम्र का सिद्धांत उन पर 2029 पर लागू होगा , बीच में नहीं । वैसे भी यह कोई सरकारी कानून है क्या ? संगठन के भीतर की बात है । सरकारी कानून होता तो क्या 82 वर्ष के खड़गे पार्टी अध्यक्ष बन पाते । यह राजनीति है , खयाली तोते मत उड़ाइए । आइए 4 जून की सुनते हैं । वह जो कहेगी , उसी को सलाम करते हैं ?

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