हर्षिल खैरनार : हनुमान जी के लिये रखी खाली सीट अब सारी सीटें खाली कर देंगी…
कुछ दिन पहले मैं अपने कुछ बिज़नेस एसोसिएट्स के साथ शहर के एक अच्छे रेस्टोरेंट में डिनर के लिये गया था, रूफ टॉप रेस्टोरेंट, ठंडी हवाएँ, मद्धिम रौशनी, हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत, कुछ लोग परिवार सहित थे, कुछ कपल्स थे, कुछ दोस्त थे।
किसी भी टेबल की चर्चा दूसरी टेबल तक शायद ही पहुँच पा रही थी, छोटे बच्चे भी एकदम संयमित बर्ताव कर रहे थे, तभी दो परिवारों का आगमन हुआ, कपड़े अच्छे पहने हुए थे लेकिन महिलाएँ थोड़ी सी असहज दिखीं।
लेकिन थोड़ी ही देर में इस परिवार की टेबल सभी का ध्यान खींचने लगी, वेटर को आवाज़ देने से लेकर तो ज़ोर ज़ोर से बातचीत करना और बच्चों का उधम करना, बड़े से फिश पॉट में तैरती मछलियों पर कॉमेंट्स करना, ज़ोर ज़ोर से हँसना सब जारी था। बाकी के लोग असहज होने लगे, मैनेजर ने स्थिति को भाँपकर उनसे शांत रहने का निवेदन किया, बताया कि आपके शोर से बाकी लोग डिस्टर्ब हो रहे हैं।
इसके बाद वो थोड़े संयमित तो हुए लेकिन उनके बच्चे पूरा समय रेस्टोरेंट में इधर से उधर घूमते रहे और जाते जाते एक व्यक्ति अपने मित्र से बोला – यार मैं इसीलिए बड़े रेस्टोरेंट में आना पसंद नहीं करता हूँ, बड़े लोगों के बहुत चोचले होते हैं।
आप कितना ही पैसा कमा लो, महँगे से महँगे कपड़े पहन लो लेकिन आपके बातचीत करने का अंदाज़ आपके बारे में सब कुछ बता देता है।
आदिपुरुष में भी यही हुआ फिल्म पर पैसा पानी की तरह बहाया, लेकिन पात्रों का चित्रण, फिल्म के सस्ते, सड़कछाप, टपोरी टाइप डायलॉग्स लिखकर फिल्म के निर्देशक ओम राउत और मनोज मुन्तशिर ने फिल्म का सत्यानाश कर दिया।
फिल्म समीक्षा मेरा विषय नहीं है, द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी जैसी फिल्मों का प्रमोशन केवल उनके विषय के कारण ही किया था और वो भी फिल्म देखने के बाद किया था, जो कि आगे भी जारी रहेगा, इसीलिए आदिपुरुष देखने जाना है या नहीं ये प्रतिक्रिया जानने के बाद ही तय किया हुआ था।
ओम राउत को सैफ अली से जाने क्या प्रेम है कि उसको हर फिल्म में रखना मजबूरी है या ये कोई अजेंडा है। ओंकारा के पहले सैफ अली का लुक शायद ही किसी को जमा हो और आवाज़ तो ऐसी है कि बच्चे भी ना घबराएँ।
आदिपुरुष पिछले वर्ष ही रिलीज़ होनी थी तब भी इसका ट्रेलर देखकर लोगों ने जो तीखी प्रतिक्रिया दी तो मनोज मुन्तशिर ने कहा कि – हम सबकी भावनाओं का सम्मान करते हैं और फिल्म में बदलाव के बाद रिलीज़ करेंगे, लेकिन क्या बदलाव किये गए समझ नहीं आया।
शायद पहले सड़कछाप डायलॉग्स ज़्यादा नहीं होंगे तो उसे नए सिरे से लिखा गया होगा। फिल्म तकनीकी रूप से कमज़ोर होती लेकिन डायलॉग्स अच्छे होते तो भी फिल्म देखी जा सकती थी।
रावण की भूमिका में सैफ का लुक किसी मुग़ल आक्रांता के जैसा ही दिख रहा है, सीताजी के रोल में कृति सेनन कहीं भी प्रभावित करती लगती नहीं है। हनुमानजी को भी एक अलग ही रूप देने का कुत्सित प्रयास किया गया है। सीताजी को श्वेत वस्त्रों में दिखाया गया है जबकि पहले कौन सी महिला श्वेत वस्त्र पहनती थीं सभी को पता है।
स्व. रामानंद सागर जी ने रामायण उस दौर में बनाई जब तकनीक इतनी ज़्यादा विकसित नहीं थी, परंतु पात्रों का चयन, उनकी वेशभूषा, डायलॉग्स इतने उच्च स्तर और भव्यता से परिपूर्ण थे कि आजतक भी वही रामायण और उसके पात्र लोगों के मन मस्तिष्क में छाए हुए हैं, बल्कि हर कोई रामानंद सागर जी की रामायण से ही इसकी तुलना करने को विवश है।
अरुण गोविल जी की मंद मुस्कान, उनके साथ दीपिका चिखलिया जी की मनमोहनी छवि, सुनील लहरी का लक्ष्मण रूप, स्व. दारासिंह जी का हनुमान रूप और स्व. अरविंद त्रिवेदी जी का रावण का रूप आज तक मन मस्तिष्क पर अंकित है। इसी तरह स्व. बी आर चोपड़ा जी ने भी महाभारत की रचना की थी और उसके भी सभी पात्र, वेशभूषा, डायलॉग्स, सेट सब कुछ भव्यता के शिखर पर था।
2020 के लॉक डाउन में जब इन दोनों धारावाहिकों का पुनः प्रसारण हुआ तो पुरानी और वर्तमान पीढ़ी ने भी उसी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ इन्हें देखा इसलिए अब ये सभी पात्र सभी के भीतर तक घर कर गए हैं।
कुछ लोग कह रहे हैं कि तानाजी जैसी फिल्म भी ओम राउत ने दी थी, मनोज मुन्तशिर ने पहले इतने सुंदर गीत लिखे, डायलॉग्स लिखे इसलिये ये फिल्म देखने जाना चाहिए।
इस थ्योरी के हिसाब से तो कल को ओम राउत सेक्सी कॉमेडी फिल्म बना दें और उसमें मनोज मुन्तशिर सस्ते, सड़कछाप डायलॉग लिख दें तो भी देखने जाएँ।
द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी तकनीकी रूप से, लोकेशन के हिसाब से शायद उतनी बेहतर फ़िल्में नहीं रही होंगी लेकिन इन फिल्मों का विषय और प्रस्तुति इतनी ज़बरदस्त थीं कि बॉलीवुड से कोई समर्थन ना मिलने के बावजूद ये फ़िल्में सुपरहिट रहीं। अब 72 हूरें, अजमेर फाइल्स भी हिट होने जा रही हैं।
बॉलीवुड ने शुरू से ही हिंदुओं को दोयम दर्जे का बताने का प्रयास किया है, संसार के सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण को हँसी का पात्र बताया है उसे लालची बताया है, साधुओं को बलात्कारी बताया है लेकिन जंज़ीर में शेर खान बड़े दिल वाला है, सरफ़रोश में इंस्पेक्टर सलीम मुसम्मल ईमान वाला है, फिल्म चलते चलते में शाहरुख़ खान को हिंदू बताया है लेकिन वो सुहागरात के बाद अपनी पत्नी को बताता है कि उसके गले में लॉकेट अल्लाह मियां का है जो कि उसके सब काम कर देते हैं।
आज जब कुछ फिल्मकार बॉलीवुड के इस प्रोपेगेंडा की पोल कश्मीर फाइल्स, केरल स्टोरी से खोल रहे हैं और बहुत दमदार तरीके से कर रहे हैं तो आदिपुरुष की आड़ में इन्होंने खुलकर हमारे सनातन धर्म, देवी देवताओं और सनातन परम्परा पर प्रहार करने का कुत्सित प्रयास किया है।
दक्षिण भारत आज भी भव्यता के साथ सनातन धर्म पर फ़िल्में बनाता है, उनके अधिकांश पात्र परंपरागत वेशभूषा और सेट भी वैसे हो रहते हैं, इसीलिए दक्षिण के एक सुपरस्टार प्रभास को उठाकर एक बकवास फिल्म बनाकर उनकी भी छवि पर दाग़ लगाने का प्रयास है जिसे समझने में शायद प्रभास से चूक हो गई है।
ओम राउत और मनोज मुन्तशिर ने भी गंभीर चूक की है, हनुमान जी के लिये रखी खाली सीट अब सारी सीटें खाली कर देंगी, एक जागृत देव की शक्ति का एहसास भी इन्हें जल्दी ही हो जायेगा।
इन्हीं की भाषा में अब सही में इनकी लंका लग जाएगी।
ताकि सनद रहे और वक्त ज़रूरत काम आवै।