ध्रुव कुमार : योग- एक रहस्य.. नींद में ऐसे होता है योग…

आमतौर पर कुछ लोग योग को केवल व्यायाम मान लेते हैं। वैसे इसमें कोई बुराई नही है। योग हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन योग इससे कहीं बढ़कर हैं।

योग एक दर्शन तो है ही जो मानव की चेतना को ब्रह्मांड की चेतना के साथ जोड़ता है इसके साथ ही योग इतना बड़ा रहस्य है कि बड़े बड़े ज्ञानी और योगीजन भी इसे पूरी तरह से नही समझते हैं तो मैं क्या हूँ, जो योग को समझ सकूं लेकिन मैंने जितना योग के बारे में समझा है उसके अनुसार …

योग पूरी तरह से एक विज्ञान हैं जो आधुनिक क्वांटम भौतिकी के नियमों पर पूरी तरह से खरा उतरता है दरसअल यह पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा के छोटे छोटे कणों से मिलकर बना हुआ है जिन्हें स्ट्रिंग कहते हैं।योग क्रिया के द्वारा हम अपनी चेतना को उस ब्रह्मांड की अनन्त ऊर्जा से जोड़ते हैं।

योग शक्ति इतनी प्रबल हो सकती है कि साधक एक ही समय में कई जगह पर उपस्थित हो सकता है, वह भूत भविष्य, वर्तमान को केवल जान ही नहीं सकता है बल्कि वह समयचक्र को नियंत्रित भी कर सकता है।बाकी किसी किसी के मस्तिष्क को नियंत्रित करना तो बहुत ही आसान है।

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हॉलीवुड ने यौगिक कॉन्सेप्ट के आधार पर इन्सेप्शन, मैट्रिक्स, डॉक्टर स्ट्रेंज समेत इतनी न जाने कितनी फिल्में बनाई हैं जिनमें कई के नाम भी याद नहीं हैं। ये सभी उपनिषदों से प्रेरित हैं। अब आप कह सकते हैं कि यह सब तो कल्पना है या साई-फाई बातें हैं तो ऐसा नही है।

दरसअल यदि आप उपनिषदों का गहराई से अध्ययन करें तो आपके सामने योग का अद्भुत रहस्य दृष्टिगोचर हो जाएगा। इसके बारे में कई उपनिषदों में वर्णन है मैं यहाँ कुछ के बारे में बताता हूँ।

योग के बारे में सबसे महत्वपूर्ण वर्णन मांडूक्य उपनिषद में प्राप्त होता है जहाँ बताया गया है कि हमारी चेतना की कई अवस्थाएं होती हैं एक अवस्था होती है जागृत अवस्था जहां हमारी चेतना सुसुप्तावस्था में रहती हैं और हमारा मस्तिष्क सक्रिय होता है यहाँ हम बाहरी चीजों का अनुभव करते हैं।

दूसरी अवस्था होती है नींद में सपनों की अवस्था जिसमें हमारे चेतना उन भौतिक विचारों के साथ क्रिया करती है जो हम बाहर से प्राप्त करते हैं इसी के परिणामस्वरूप हमें स्वप्न आते हैं।

तीसरी अवस्था वह हैं जब नींद में हमें स्वप्न नही आते हैं अर्थात गहरी और पक्की नींद की अवस्था। सुनने में यह अवस्था सरल लगती हैं लेकिन यह अत्यंत दुरूह अवस्था है जो बहुत ही कम आती है और जिसे भी यह अवस्था प्राप्त होती है वह इसे शब्दों में व्यक्त ही नहीं कर सकता है क्योंकि इसके बारे में शब्द ही नहीं होते हैं। दरसअल इस अवस्था में ब्रह्म का सूक्ष्म साक्षात्कार होता है इस अवस्था में वे चीजें अनुभव होती है जो भौतिक जगत से परे होती हैं।

चौथी अवस्था आती हैं समाधि की अवस्था।यह स्वप्न और जाग्रत दोनों से भिन्न होती है। इसे “तुरिया” भी कहा गया है। इस अवस्था में व्यक्ति परमतत्व का प्रत्यक्ष अनुभव करता है उसे हर जगह वही परम तत्व प्राप्त होता है। यह अनन्त ज्ञान, सुख, और मोक्ष की अवस्था है।

उपनिषदों में इस बात का भी वर्णन है कि जब व्यक्ति योग की साधना करता है तो उसके क्या क्या चरण आते हैं।

जैसे यदि योग करने वाला व्यक्ति सही दिशा में योग साधना करता है तो उसे सर्वप्रथम ‘धुंध’ दिखाई पड़ेगा उसके बाद ‘टूटता हुआ कांच’ दिखाई देगा, उसके बाद अनन्त जल व चंद्रमा प्राप्त होगा। अंत में वह ब्रह्मांड के स्तर को प्राप्त करेगा।

माया, चेतना और ब्रह्मांड के बारे में एक अद्भुत कथा राजा जनक की आती है। ये जनक माता सीता के पिता से पहले के जनक थे।

कथा के अनुसार एक बार राजा जनक अपने महल में अपने बिस्तर पर सोए हुए थे। तभी उनके सेनापति ने आकर आवाज लगाई …..

“महाराज जी-महाराज जी उठिए।हमारे राज्य पर पड़ोसी राज्य ने हमला किया है।”

जनकजी हड़बड़ी में उठे और बोले “हमारी सेना को सज्ज करो, हम युद्ध करेंगे।”

इसके बाद महाराज जनक कवच आदि पहनकर युद्ध के लिए निकल गए ।

युद्ध भयानक हुआ लेकिन अंत में जनक युद्ध हार जाते हैं और उनके राज्य, कोष आदि सभी पर शत्रु का आधिपत्य हो जाता है।

इसके साथ ही उनका विरोधी राजा यह भी आदेश देता है कि “यदि जनक को मिथिला में कोई भी व्यक्ति सहायता करेगा या शरण देगा तो वह भी राजा का शत्रु होगा।”

परिणामस्वरूप जनक को मिथिला से निकाल दिया जाता है। अब जनकजी के पास न राज्य हैं, न कोष, न परिवार। यहाँ तक कई दिनों से उन्हें भोजन भी प्राप्त नही हुआ था।

तभी उन्होंने देखा कि एक मन्दिर में लंगर चल रहा था तो वे भी पंक्ति में लग गए।

लेकिन जनक जी पंक्ति में सबसे अंत में थे इसीलिए जब वे भोजन लेने गए तब तक भोजन लगभग समाप्त हो गया था लेकिन फिर भी पात्र की तली में जो कुछ भी पड़ा हुआ था बांटने वाले ने जनकजी को वही दे दिया।

जनकजी उसी बचे-कुचे भोजन को करने के लिए एक शिला पर बैठ गए। जैसे ही वे पहला निवाला गृहण करने वाले थे कि एक चील ने आकर उनके भोजन पर हमला किया व उसे छीन लिया।

अब जनकजी हर तरह से टूट चुके थे। उनके पास न राज्य, न राजा, न परिवार यहाँ तक भोजन भी नही था उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं ।

तभी एक बार पुनः द्वारपाल ने आकर आवाज लगाई। महाराज जी, महाराज जी उठिए दरबार में मंत्रीगण आपका इंतजार कर रहे हैं।जनकजी हड़बड़ाकर पुनः अपने बिस्तर से उठे।

दरसअल ये सारी घटना उन्होंने स्वप्न में देखी थी लेकिन इतना भयानक स्वप्न देखने के बाद जनकजी अब इस बात को लेकर कंफ्यूज हो गए कि सत्य क्या है ?

उन्हें लग रहा था कि सत्य क्या है। क्या वे अभी भी स्वप्न में हैं, क्या उनका राज्य छिन गया है, अथवा जो वो देख रहे हैं वो सत्य है अर्थात अभी भी वो राजा हैं।

परिणामस्वरूप जनकजी के मुख से बस दो ही शब्द निकल रहे थे “ये सत्य या वो सत्य।”….

इसके अलावा वो कुछ भी नही कह रहे थे परिणामस्वरूप उनकी रानी व राजदरबारी सभी चिंतित थे कि राजा को हुआ क्या है। इस कारण तत्काल उनके गुरु अष्टावक्र को बुलाया गया।

उनके सामने भी जनकजी दो ही शब्द कह रहे थे कि “ये सत्य या वो सत्य।”

तत्ववेत्ता गुरु अष्टावक्र ने तत्काल उनकी पूरी आपबीती को जान लिया और उनसे कहा कि “न ये सत्य राजन, न वो सत्य “।

इसके बाद अष्टावक्र बहुत लंबा चौड़ा दर्शन देते हैं जिसके अनुसार वो जनकजी को बताते हैं कि “स्वप्न में भी तुम थे और इस समय अपने सिंहासन पर भी तुम हो राजन। लेकिन इसे दूसरे लोग नही जानते हैं।”

वो कहते हैं “चेतना अनन्त हैं वो कुछ भी देख सकती है कुछ भी कर सकती है लेकिन जो भी तुमने स्वप्न में देखा था या जो भी तुम अभी देख रहे हो वह सब असत्य हैं।इसीलिए इस जगत को त्याग भाव से भोगो।”

वास्तव में यह इतना गूढ़ तत्व है कि मैं इसे समझा ही नहीं सकता हूँ क्योंकि मेरे पास शब्द ही नही हैं कि सत्य क्या है असत्य क्या है। यह मानिए कि चेतना के लिए कुछ भी सत्य नही है लेकिन सब कुछ सत्य है।

बल्कि एक वैज्ञानिक संकल्पना तो यह भी है कि हम वास्तव में स्वप्न में रहते हैं अर्थात यह दुनिया मायाजाल है अर्थात मैट्रिक्स हैं।

क्या हम ब्रह्म या परमतत्व के स्वप्न में जीवन जी रहे हैं? कुछ भी नही कहा जा सकता है।

अतः योग अनन्त ज्ञान का साधन है।।

ॐ नमः शिवाय।।

 

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