नवसंवत्सर..भारतीय काल गणना वैज्ञानिक व्यवस्था

आधुनिक विज्ञान ब्रम्हांड की आयु 1 अरब 98 करोड़ वर्ष निकालते हैं जबकि उनकी गणना पदार्थों के गुण से संयुक्त है
और
वेदों के अनुसार पृथ्वी की आयु वर्ष 2020 तक एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 125 वर्ष है।
दोनों में इतने हद तक साम्य वेदों,भारतीय दर्शन की सत्यता और प्रामाणिकता ही सिद्ध करते हैं।

सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं,
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था।
छिपा था क्या कहां, किसने देखा था उस
पल तो अगम, अटल जल भी कहां था।-
ऋग्वेद(१०:१२९)
(यहां सत से आशय प्रकाश और असत से अंधकार है।)
वेद कहते हैं कि ईश ने ब्रह्मांड नहीं रचा। ईश के असीम,अनंत, अनादि होने से ब्रह्मांड रचाता गया।

ग्रेगेरियन केलेण्ड़र की काल गणना मात्र दो हजार वर्षो की अति अल्प समय को दर्शाती है ।जबकि यूनान की काल गणना 1582 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष, यहूदी 5768, मिस्त्र की 28691, पारसी 198875 तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है।

इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो वेदों के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 121 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास वेदों में हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथो में एक एक पल की गणना की गई है ।जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बन्ध ईसा से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मोहम्मद से है। किन्तु विक्रम संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रम्हाण्ड़ के ग्रहो व नक्षत्रो से है।

इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रम्हाण्ड़ के सबसे पुरातन ग्रंथो वेदो में भी इसका विस्तृत वर्णन है।

नव संवत् यानि संवत्सरो का वर्णन यजूर्वेद के 27 वें व 30 वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व को सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रो की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर आधारित है।

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भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अंतर नहीं पड़ता और यही कारण है कि जब आधुनिक विज्ञान का जन्म भी नही हुआ था, उस वक्त भी वर्षों पूर्व सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण की तिथि-टाइम बता देते थे

जबकि

पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं फिर भी. नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। अभी 10 साल पहले ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड स्लो कर दिया गया. फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है।

इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्यात्य देशो के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारंभ करने की बात हो हम कुशल पंड़ित-जानकर के पास जाकर शुभ मुहूर्त में काम करते हैं।

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