कौशल सिखौला : विपक्ष को सरकार का कोई भी काम समझ नहीं आता, कभी आएगा भी नहीं !
नौ सालों में मोदी सरकार ने एक भी काम ऐसा नहीं किया जो हमारे विपक्ष को समझ आए !
जाहिर है न तो कोई विदेशों में भारत को मिलने वाले सम्मान से खुश होगा और न ही सेंट्रलविष्टा के निर्माण से !
देश के विपक्ष को सरकार का कोई भी काम समझ नहीं आता, कभी आएगा भी नहीं !

जो लोग इस समय राष्ट्रपति राष्ट्रपति रट रहे हैं , उन्होंने इन्हीं द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ यशवंत सिन्हा को लड़ाया था !
जो विपक्ष राष्ट्रपति के अभिभाषणों का बहिष्कार करता आया हो , जो राष्ट्रपति नेत्रित संसद न चलने देता हो , उसे अब राष्ट्रपति की बेतहाशा याद आ रही है!
खैर , लोकतंत्र है तो चलाइए अपने अपने एजेंडे । नौ सालों से चल रहा है अब स्पीड जरा तेज हो गई है । देखते रहिए , अगली मई आते आते क्या हाल हो जाएगा । एक बात जरूर है जो न तो विपक्ष को भानी थी और न ही भा रही है । सरकार ने नई संसद को सावरकर के दिन से जोड़ दिया है । सावरकर का विरोध कांग्रेस को करना था तो यह भी एक कारण बन गया विपक्ष के बहिष्कार का । विपक्ष का मानना है कि विपक्ष को चिढ़ाने के लिए उदघाटन दिवस को सावरकर के दिन से जोड़ा गया।
यह बात भी ठीक है कि नई संसद का निर्णय संसद ने कांग्रेस सरकार के दौरान तब लिया था जब मीरा कुमार अध्यक्ष थी । लेकिन संसद का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया । अब अपने ड्रीम प्रोडक्ट का उदघाटन यदि वे खुद कर रहे हैं तो शिकायत हो सकती है , इतना बवाल नहीं कि बीस पार्टियां संसद में जाने से ही इंकार कर दें ?
पुरानी संसद ऐतिहासिक थी , नई संसद भविष्य का इतिहास लिखेगी । सदियों की गुलामी के बाद पुरानी संसद ने वे महान पल देखे हैं , जब भारत को दासता से मुक्ति मिली । नई संसद बदलते भारत की दास्तान सुनाएगी । निश्चित रूप से पुरानी संसद से दिलों के रिश्ते बने हुए हैं । उस संसद का निर्माण बेशक अंग्रेजों ने कराया हो , वह संसद देश के सीने में धड़कती है । उसे संग्रहालय बनाना और निरंतर अपडेट रखना जरूरी है । अब अगर नरेंद्र मोदी नई संसद का उदघाटन कर रहे हैं तो सभी को संसद भवन में आना चाहिए । आखिर हैं तो वे पूरे देश के प्रधानमंत्री ही न ?
