हर्षल खैरनार : राजदण्ड या गदा.. PM मोदी को रोकने का आखिर ये रास्ता जाता किधर है !
नमस्कार..
मैं हूँ दरबारी पत्रकार.. बेरोज़गारी के लंबे आलम में आपका स्वागत है.. (हाथ मसलते हुए)
इस दौर में देश के भीतर एक अलग ही बहस चल पड़ी है कि नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी को करना चाहिए या नहीं करना चाहिए?
दरअसल कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष इस बात को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और सरकार पर लगातार सवाल कर रहा है, उन्हें कठघरे में खड़ा कर रहा है और इस उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की बात कर रहा है।

लेकिन विपक्ष जहाँ इस पर सवाल खड़े कर रहा है वहीं बीजेपी इसे सही बता रही है। आज विपक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों इस नए संसद भवन का उद्घाटन कराना चाह रहा है जबकि इसी विपक्ष ने द्रौपदी मुर्मू का ना केवल विरोध किया था बल्कि अपमानित भी किया था। कांग्रेस नेता अधीररंजन चौधरी ने तो उन्हें राष्ट्र पत्नी तक कह दिया था और विवाद बढ़ने पर ये कहकर माफी माँगी थी कि उनकी हिंदी इतनी अच्छी नहीं है इसलिये उनकी बात को गलत समझा गया।
ख़ैर.. आगे बढ़ते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं कि परदे के पीछे आखिर चल क्या रहा है..? क्यों समूचा विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी से संसद भवन का उद्घाटन नहीं कराना चाहता है और क्यों ओवैसी समेत तमाम नेताओं के पेट में मरोड़ें उठ रही हैं..? कई नेता तो यहाँ तक कह चुके हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो वापस पुराने संसद भवन में ही संसद सत्र आयोजित करेंगे।
दरअसल इस दौर में विरोध की असली वजह ये है कि जब अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्रता दी थी तो जवाहरलाल नेहरू से पूछा था कि सत्ता हस्तान्तरण की कोई विधि भी की जा सकती है। अब नेहरू जी को कुछ जानकारी नहीं थी तो उनके सलाहकारों ने बताया कि जब चोल राजा दूसरे राजा को सत्ता सौंपते थे तो “राजदंड सेंगोल” दिया करते थे और उस राजदंड पर तमिल भाषा में साफ साफ लिखा है कि – “ये हमारा आदेश है कि भगवान शिव के अनुयायी स्वर्ग में शासन करेंगे”
लेकिन चाटुकारों ने इस राजदंड की गाथा को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया और इसे नेहरू को उपहार स्वरुप भेंट बताकर उनकी निजी संपत्ति घोषित कर दिया। इस बात का खुलासा आज जब गृहमंत्री अमित शाह ने किया तो समूचा विपक्ष और भी बुरी तरह से बौखला गया। ये राजदंड सभापति की कुर्सी के पास स्थापित किया जायेगा। ओवैसी इस राजदंड को “गदा” बता रहे हैं।
दरअसल इन सबके अलावा इस नए संसद भवन में महात्मा गाँधी, डॉ भीमराव अम्बेडकर और चाणक्य की मूर्तियां तो लगी हैं लेकिन जवाहरलाल नेहरू की नहीं लगी है, यही कांग्रेस की दुखती रग का कारण है और प्रधानमंत्री मोदी ने उसी पर हाथ रख दिया है।
इसके अलावा नए संसद भवन के तीन प्रवेश द्वारों के नाम – ज्ञान द्वार, कर्म द्वार और शक्ति द्वार रखे गए हैं। संसद भवन की दीवारों पर गीता के श्लोक लिखे गए हैं। कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष की असली तकलीफ यही है कि उसे कहीं ना कहीं ये लगने लगा है कि प्रधानमंत्री मोदी एक तथाकथित सेकुलर देश को “हिंदू राष्ट्र” बनाने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
इन सबके बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तमाम विपक्षी नेताओं से मिलकर 2024 में मोदी बनाम विपक्ष की लड़ाई में शामिल हो चुके हैं। जिन नेताओं पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगाया करते थे आज उन्हीं के साथ गलबाहियाँ करते नज़र आ रहे हैं।
दरअसल कांग्रेस इस देश को गाँधी परिवार की जागीर समझती है और इतने बड़े संसद भवन का उद्घाटन गाँधी परिवार का कोई व्यक्ति ना करके मोदी करने जा रहे हैं इसकी तकलीफ कुछ ज़्यादा है। ये वही कांग्रेस है जिसके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के नए विधानसभा भवन का केवल सांसद रहे सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी से करवाया था और छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्यपाल अनुसूईया उइके जो कि दलित महिला थीं उन्हें निमंत्रण तक देना उचित नहीं समझा था।
बात केवल इतनी ही नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन का जो दिन तय किया है वो है 28 मई.. इस दिन स्वातन्त्रय वीर सावरकर का 140 वां जन्मदिन है।
इस एक संसद भवन ने कांग्रेस के उस तिलिस्म को भी ढहा दिया है जिससे कांग्रेस ने देश की जनता को दशकों तक गुमराह करके रखा था।
अभी अभी कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस को प्रधानमंत्री का ऑस्ट्रेलिया, न्यू पापुआ गिनी में मिले सम्मान ने फिर से निराश करा ही था और नए संसद भवन ने उस दर्द को और गहरा कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ही इस नए संसद भवन की आधारशिला रखी थी और अब उसका उद्घाटन भी करने जा रहे हैं.. लेकिन कांग्रेस और विपक्ष को ये समझना चाहिए कि संसद भवन देश का है ना कि मोदी या बीजेपी का।
लेकिन मोदी विरोध में अंधे हो चुके विपक्ष के लिये ये समझना बड़ा ही पेचीदा हो चला है कि प्रधानमंत्री मोदी को रोकने का आखिर ये रास्ता जाता किधर है!!
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