कोरबा। वेदों, शास्त्रों में समस्त प्राणियों की पालनकर्ता नदी, नाले, तालाबों को मां की गौरवमयी उपाधि दी गई है। इसी सम्मान की परंपरा का निर्वाह करते पुराने बुजुर्ग आज भी स्नान करने के लिए सीधे पैर को पानी में नहीं रखते बल्कि हाथों में लेकर पहले सिर-माथे पर लगाकर क्षमा याचना करते हैं कि “हे मां तुझ पर पैर रख रहा हूं क्षमा करना, अपने आशीष से सदा हमारे जीवन को शीतलता प्रदान करना।”…लेकिन आज गंदगी हम पर डालकर अपनी समृद्धि के द्वार खोले जा रहे हैं और हमें जीवनधारा, जीवनदायिनी की कागजी उपाधि देनें वाले हमें बचाने के लिए जल-जीव संरक्षण का ढोल पीटने पीटने करने वाले भी न जाने कहां खो गए हैं!! यह अवश्य है कि जब कोई दिवस आता है यदा कदा अपनी झलक प्रेस विज्ञप्तियों में दिखा जाते हैं।
मेरा मेरी बहन हसदेव और बालको का बहुत पुराना नाता रहा है। मेरी बहन हसदेव के जल ने ही बालको की समृद्धि को जन्म दिया लेकिन आज उसके कारिंदों ने मुझे माध्यम बनाकर मेरी बहन हसदेव को सिसकियों के मध्य जीने को विवश कर दिया है। आपके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को बड़े जतन से सहेजा जा रहा है। संस्कृति-सभ्यताएं हमारे तटों पर ही जन्म लेती हैं और हमारा अस्तित्व मिटने पर ये भी नष्ट हो जाती हैं।
अपनी बहन हसदेव के साथ ही कोरबा शहर के एक बड़े हिस्से की जनसंख्या को अकाल मौत की तरफ धकेलती हुई मैं केसला नदी जिसे लोग प्रेम से ढेंगुर नाला भी कहतें हैं आज आपसे अपने दुर्भाग्य की कथा कहने बैठी हूं। कभी मैं भी बल खाती, इठलाती चलती थी, मेरे भी पास लोग आते, लेकिन अब मैं कोमा में हूं, उन्हीं लोगों के कारण जिनकी समृद्धि के कारण हम हैं।
जंगलों के बीच से मैं हंसती-खिलखिलाती जल-वन जीवों और लोगों के चेहरे पर प्रकृति की मुस्कान बिखेरते हुए चलती हूं।
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मेरी बहन हसदेव आज सिसक रही है क्योंकि मेरे ही कारण इसके प्रदूषण का स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ गया है। उसकी गोद में खेल रही मछलियों समेत सभी जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है।
मैं भी कभी लोगों के लिए जीवनदायिनी सिद्ध हुआ करती थी। पशु पक्षियों की टोलियां मेरे जल को पीकर तृप्त हो जाते थे। लोग मुझमें स्नान कर सूर्यदेव को अर्द्ध अर्पित कर दिन का आरंभ करते थे। सबके लिए मैं वरदान थी लेकिन बालको द्वारा मुझमें लालघाट की ओर से बहाए जा रहे ऑयल युक्त विषैले तत्वों के कारण हसदेव की जलधारा में मैं आज श्रापित होकर मिल रही हूं।
लालघाट की सीमा को छूते ही मैं कोमा की स्थिति में पहुंचने लगती हूं, मन अशांत हो उठता है कि जो मुझे मां कहकर सम्मान देतें है, उनके शरीर में निगम के नल कनेक्शन के द्वारा पहुंचकर अपने बच्चों के स्वस्थ शरीर को रोगों से भर देने वाली हूं।
मैं काली हो चुकी हूं, इतनी कालिमा भरा कलंक भला कोई अपनी मां को कैसे कर सकता है, सोचकर मन दहल जाता है कि मेरी दीदी के कारण ही बालको फ़ला फूला है लेकिन आज मेरी बहन को ही बर्बाद करने में लगा हुआ है, जिसने लाखों लोगों की जीवनचर्या को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभांवित किया है।
ध्यान लगाती हूं तो लगता है कि जब गंगा, यमुना जैसी मेरी यशस्वी बहनें तिरस्कार सह रही हैं, तो मेरी और बहन हसदेव भला क्या हस्ती, क्यों कोई मेरी विपदा पर कान धरे। फिर भी आज अपनी व्यथा व्यक्त की हूं, आपसे बन पड़े तो कुछ करना। अब तो मैं केवल रोगदायिनी बना दी गई हूं।
निगम प्रशासन को यह कभी दिखाई नहीं देता कि मैं अब तो मैं केवल रोगदायिनी होकर सीधे अपनी बहन हसदेव से जाकर मिल रही हूं जहां से पूरे कोरबा शहर में निगम के द्वारा दिए 56,000 जल कनेक्शनों के माध्यम से शहरवासियों के पेट में जाकर सीधे सीधे मौत के मुंहाने पर विभिन्न बीमारियों के साथ पहुंचा रही हूं।
हजारों नल कनेक्शनों के द्वारा जब मैं शहर में, कस्बों में, वार्डों में लोगों के घरों में पहुंचती हूं तो नीचे तल पर कुछ समय बाद ऐसी स्थिति निर्मित होती है। अब इसे पीकर शरीर को कौन से विटामिन मिलते होंगे यह सहज ही समझा जा सकता है।
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इससे कैंसर, विकलांगता, ब्लड प्रेशर, त्वचा रोग और फेफड़े की बीमारियों को बढ़ावा ही मिल रहा है। कोरबा का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय भी मान चुका रहा है कि मुझमें लालघाट एवं चेकपोस्ट बस्ती के समीप के नाले के माध्यम से ऑयलयुक्त काला दूषित जल व्यापक मात्रा में प्रवाहित किया जाता रहा है, तब धारा – 33(क) के तहत नोटिस जारी करते हुए 03 दिनों में मेसर्स भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड से स्पष्टीकरण मांगा था। इन्हीं व्यथाओं को लेकर, स्वास्थ्य को लेकर हाई कोर्ट में याचिका भी लगी थी।
उड़न खटोले से आपका आगमन आज ऊर्जा नगरी, काले हीरे की धरा कोरबा जिले में शुभ आगमन हो रहा है। उड़न खटोला में दूरबीन होता है। समयाभाव के कारण पास न आते बने तो दूरबीन से दूर से ही मेरी व्यथा को निहारकर कोई रास्ता हमारे उद्धार के लिए निकालिएगा।
तलहटी में नीचे राख जम जाने के कारण हमारी जलभराव की क्षमता भी कम हो रही है और यही कारण है कि शहर का भूजलस्तर प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक धरोहरों, संस्कृति को सहेजने वाले भारत-छत्तीसगढ़ के मेरे प्रिय लाल आशा की अंतिम कड़ी के रूप में मेरी व्यथा भरी गुहार पर मुझे, मेरी बहन हसदेव और हम पर पलने वालों की पुकार छत्तीसगढ़ सरकार अवश्य ही सुनेगी…