सर्वेश तिवारी श्रीमुख : अंग्रेज अधिकारियों को श्रृंखलाबद्ध तरीके से इतनी बार मारा गया कि…

हिन्दी पट्टी में बंगाल के क्रांतिकारियों पर बहुत कम बात हुई है। इतनी कम कि यदि आपसे अनुशीलन समिति, बंगाल वोलेंटियर्स या युगान्तर पार्टी के बारे में पूछा जाय तो अधिकांश लोग दो चार पंक्ति से अधिक नहीं बोल पाएंगे। ऐसा लगता है कि उनपर बात करने, या उन्हें याद करने का जिम्मा केवल बंगाल वालों को दे दिया गया है।


हम जब स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों की बात करते हैं तो सामान्यतः रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक या आजाद से शुरू होते हैं और भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त आदि पर आ कर रुक जाते हैं। इतिहास की किताबें हों या हिन्दी सिनेमा, कहीं भी सामान्यतः इन्हीं क्रांतिकारियों पर बात हुई है।
इन महान क्रांतिकारियों पर बात होनी भी चाहिये, यह राष्ट्र इनकी पवित्र भावना को सदैव पूजता रहेगा, इनके शौर्य को सदैव प्रणाम करता रहेगा। पर देश को अन्य राज्यों में हुई क्रांतिकारी घटनाओं को भी अवश्य पढ़ा जाना चाहिये।

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अब यदि मैं बंगाल के क्रांतिकारियों की बात करूं, तो आप जब उनके बारे में पढ़ेंगे तो एक एक घटना आपको दांतों तले उंगली दबाने को विवश कर देगी। वहाँ अंग्रेज अधिकारियों को श्रृंखलाबद्ध तरीके से इतनी बार मारा गया कि आश्चर्य होता है। ऐसा लगता है कि तब के बंगाली नवयुवकों ने कभी अंग्रेजों की सत्ता को स्वीकार किया ही नहीं।
अंग्रेजों का जितना भय आम जनता में था, उतना भी भय अंग्रेज अधिकारियों में क्रांतिकारियों का भी हो गया था। भय का आलम यह कि खुदीराम बोस को फाँसी देने वाले जज ने अगले दिन नौकरी छोड़ दी, फिर भी दो महीने में मर गया। प्रफुल्ल चाकी को गिरफ्तार करने वाले नन्दलाल बनर्जी को शिरीष पाल और रानेन गांगुली ने मार दिया।
मास्टर दा सूर्यसेन, जिन्होंने चिटगांव विद्रोह को लीड किया था, उन्हें पकड़वाने वाले नेत्रसेन नामक व्यक्ति की हत्या एक क्रांतिकारी ने कर दी। पर नेत्रसेन की पत्नी ने जीवन मे कभी उस क्रांतिकारी का नाम नहीं बताया, क्योंकि वे मानती थीं कि नेत्रसेन को उनकी गद्दारी के लिए यह दण्ड अवश्य मिलना चाहिये था।
पिछले दिनों हाथ में एक किताब आयी। बंगाल वॉलेंटियर्स के क्रांतिकारी विमल दास गुप्त के जीवन पर आधारित सत्य व्यास का उपन्यास ‘1931’। सत्य व्यास इससे पूर्व युवा पीढ़ी को ध्यान में रख कर प्रेम कहानियां लिखते रहे हैं, पर यह उपन्यास पढ़ कर लगा कि वे शायद यही लिखने के लिए बने हैं। यदि वे मेरी सुनते तो कहता, अभी बहुत सारे ” फिनिक्सों” पर लिखा जाना बाकी है, और यह आप सबसे बेहतर कर सकते हैं।
“प्रेम” सत्य व्यास के लेखन का ‘मोह’ है, वे इस उपन्यास में भी इस मोह का त्याग नहीं कर सके हैं। पर यह उनके लेखन का सौंदर्य है कि इस महान क्रांति कथा में प्रेम कहीं नहीं खटकता! बल्कि कथा को और सुन्दर बना देता है।
डेढ़ सौ पन्नो के इस उपन्यास का हर पन्ना आपको बांध लेगा। आप आश्चर्य में डूब जाएंगे भाई साहब! क्रांतिकारियों की निष्ठा, उनकी निडरता, उनके परिवार का समर्पण, अंग्रेजी व्यवस्था का अत्याचार, सत्य व्यास ने क्या शानदार कलम चलाई है हर भाग पर…
भाषा सहज है, और कहानी में प्रवाह इतना कि आप एक बार पढ़ने बैठ गए तो समाप्त किये बिना नहीं उठेंगे। मैंने यह किताब एक बार में पढ़ी है।
यदि रुचि है, तो आपको भी अवश्य पढ़नी चाहिये। अमेजन पर मात्र डेढ़ सौ रुपये में बिक रही यह किताब अवश्य पढ़ी जानी चाहिये।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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