देवांशु झा : जीवन में अर्द्धशतक मारने वाले तेंदल्या..शतक मारो!!

कुछ बरस पहले एक आलोचक ने मुझसे पूछा था कि सचिन अभी तक hall of fame में क्यों शामिल नहीं किए गए ? मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की थी कि खेल से विदा होने के न्यूनतम पांच वर्ष बाद ही उसकी पात्रता बनती है । आज नहीं तो कल सचिन उस लीग में होंगे ही !

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आश्चर्य यह कि संसार में बल्लेबाजों की भला वह कौन सी पंक्ति, जमात है जिसमें गौरव के साथ खड़े होने के लिए सचिन को जोर लगाना पड़े !! परंतु पश्चिम के कुछ कुंठित क्रिकेट पंडितों ने सचिन को हमेशा एक शंका, चोटिल अहंकार से देखा। क्यों?? संभवतः इसलिए कि साढ़े पांच फुट के इस भारतीय बल्लेबाज ने पुरुषार्थ और प्रभुत्व की हरक्यूलियन मांसलता को ध्वस्त कर के रख दिया था। शायद इसीलिए सचिन उन्हें विस्मित करते रहे। शायद इसीलिए वह इस संसार के सर्वाधिक प्रिय बल्लेबाज भी रहे। The most lovable batsman of cricket history.

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आप कह सकते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप से सुनील गावस्कर और जावेद मियांदाद जैसे छोटे कद के बल्लेबाज पहले अपना प्रभुत्व दिखला चुके हैं। परन्तु नहीं।वह इसलिए कि सचिन एकदिवसीय क्रिकेट में भारत के कान्तिहीन बल्लेबाज़ी क्रम को तोड़ने वाले पहले बड़े बल्लेबाज थे जिसने ऊंची कद-काठी के हट्टेकट्टे पठानों और अंग्रेजों को अपने लयात्मक विस्फोट से स्तब्ध कर दिया था–वह भी आश्चर्यजनक निरंतरता के साथ। श्रीकांत और संदीप पाटिल के उच्छृंखल आक्रमण से सचिन के सातत्य की तुलना संभव ही नहीं है। सचिन का स्तर बहुत ऊंचा था।

सचिन जयसूर्या नहीं थे। उनमें रूढ़ रौद्र नहीं था। वर्षों के तपन से निखरी प्रतिभा की झलक थी। जो कभी मिट नहीं सकती। वह पदचाप के साथ अपना सिर स्थिर रखते थे। जैसे कोई धनुर्धर लक्ष्यबेध से पहले समाधिस्थ हो जाता है। बल्ले का फालोथ्रू ऐसा कि कैमरे वाले चमत्कृत होकर क्लिक करते रहते और गेंद बाहर चली जाती। मुझे यह कहने में रत्ती भर हिचक नहीं कि मैंने क्रिकेट इतिहास के कुछ सर्वाधिक सुन्दर शाट्स को सचिन के बल्ले से ही निकलते देखा था। भारतीय दर्शकों ने पहले भी शोर किया था। तालियां बजाईं थीं लेकिन स्टेडियम में वैसा उल्लास पहले कभी नहीं देखा गया था। वह भारत के नीरस, प्रतिगामी क्रिकेट को अपने पराक्रम से खींचकर बाहर लाने वाले पहले चमत्कारी बल्लेबाज थे। क्रिकेट के मैदान पर उनकी आभा अलग थी। हमें यह स्वीकारना ही होगा कि वह भारत के एकदिवसीय क्रिकेट में मशाल लेकर बढ़ने वाले पहले बल्लेबाज थे। उनके हाथों में ऐसी मशाल थी जो कभी बुझी नहीं। वह कल्ट तैयार करने वाले विलक्षण बल्लेबाज थे।

मुझे याद है लगभग बीस वर्ष पहले ईएसपीएन ने विश्व के पच्चीस महान क्रिकेटरों की एक श्रृंखला बनाई थी जिसमें बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों ही शामिल थे। उस श्रृंखला में सचिन को सर डॉन के बाद दूसरा स्थान दिया गया था। उन्हें रिचर्ड्स और सोबर्स जैसे दिग्गजों से ऊपर रखा गया था। सचिन का आलोचक मैं भी रहा हूं। लेकिन इन दिनों जब मैं पलट कर उनकी बहुतेरी पारियां देखता हूं तब मुझे यही लगता है कि वैसी पूर्णता किसी बल्लेबाज में नहीं थी।‌

सचिन पश्चिम के क्रिकेट जगत के लिए एक पहेली बनकर रहे।उनकी तुलना कभी लारा, कभी पोन्टिंग और कभी कैलिस से हुई। लारा और पोन्टिंग तो बहुत हद तक ठीक हैं। कैलिस में रिकार्ड के बावजूद वह चमक या विशिष्टता नहीं है। और अंततः लारा, पोन्टिंग भी सुदीर्घ खेल जीवन की प्रतिस्पर्धा में सचिन से पिछड़ जाते हैं। पश्चिम ने सचिन को सूक्ष्म तरीके से उतारने की कोशिश की है । जैसे, विज़डन की सौ पारियों में उनकी किसी पारी को स्थान नहीं दिया या हॉल आफ फेम में दो अन्य खिलाड़ियों के साथ उन्हें रखा। स्वीकारने के साथ अस्वीकार का कपट।‌ जैसा कि मैंने ऊपर इंगित किया है।

सचिन एक चैंपियन बल्लेबाज थे। हर विफलता के बाद लौट कर आने वाला अपराजेय बैट्समैन। और मैं यह हमेशा से मानता आया हूं कि पूरी लय में उन्हें खेलते हुए देखने का अनुभव अद्वितीय, अलौकिक होता था। शाट्स खेलते हुए वैसा शारीरिक संतुलन या सौष्ठव उस दौर के किसी बल्लेबाज के पास नहीं था। या कि क्रिकेट में शॉट्स की वैसी प्लेसिंग, प्रत्युत्पन्नमति किसी भी समकालीन बल्लेबाज में नहीं थी।

समय बीत जाने पर या नए दौर के सितारों के साथ लोग पुराने दिग्गज को भूलने लगते हैं । यह होता रहा है‌। मानवीय स्वभाव है। भारत में यह व्यापक है। परंतु ऐसा कोई मानवीय स्वभाव या कुंठा सचिन को छोटा नहीं करती। स्वयं पोंटिंग, लारा और कैलिस संयुक्त रूप से कहते पाए गए हैं कि उनमें से कोई भी सचिन नहीं था। वह अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण मौकों पर चूके। कुछ अत्यंत बड़ी पारियां भी उनसे अपेक्षित थीं। किन्तु उनकी सफलताओं का प्रतिशत बहुत अधिक है। निश्चय ही टेस्ट में कुछ पर्वतीय पारियों से वह सर्वकालिक महान बल्लेबाज हो जाते। तथापि क्रिकेट इतिहास के महान बल्लेबाजों की कोई सूची सचिन रमेश तेंदुलकर के बिना पूरी नहीं हो सकती। भारतीय क्रिकेट हमेशा उनका ऋणी रहेगा।इस अर्थ में ऋणी रहेगा कि वही पहले महान बल्लेबाज थे, जिन्होंने नियमित अंतराल पर आगे बढ़कर, गेंदबाजों पर चढ़कर हमें मारना सिखाया।उनका चौबीस वर्ष लंबा करियर आरम्भ से अंत तक इस सत्य का प्रमाण है।

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