टीशा अग्रवाल : पत्थर नहीं मैं शालिग्राम.. मुझमें मेरे राम…

मैं पत्थर नहीं मैं शालिग्राम हूँ। सदियों से गुमनाम रहा आखिरकार सदियों के रतजगों की प्रतीक्षा मेरा सौभाग्य बनी।

प्रतीक्षा कभी न समाप्त होने वाली आस बनकर मुझे सांत्वना देती रही। जब भी सांसों की लौ मद्धम होती…और सांस छूटने सी लगती तभी मन की आस से आवाज़ आती…राम आएंगे। मेरे राम आएंगे।

कभी सोचता मेरे राम ने न अहिल्या को निराश किया न शबरी को। पर मैं तो उन दोनों के सामने धूल भर हूँ।

पर वही धूल अब चट्टान बनकर सौभागी बना। और यह सौभाग्य वरदान बना। कैसा होगा वह क्षण जब भक्त की देह में ईश्वर का वास होगा, और जब ईश्वर स्वयं भक्त को तारेंगे?

प्रभु श्री राम के नाम से तो जो पत्थर तर गए वो सब तिर गए। जब नेपाल से मैं चला तब मैं पत्थर था, लाखों करोड़ों भक्तों के भाव और उनके स्पर्श से भाव विह्वल हुआ। उनके अश्रुओं से मेरा अभिषेक हुआ, और उनकी जयकार से मेरा मंगलाचरण हुआ।

मैं देख रहा था हर उस रास्ते को जो फूलों से और भक्ति से भरा था। हर एक राम भक्त को, उनकी आस्था और उनकी प्रसन्नता को। जब राम नाम के साथ मुझे स्पर्श किया जा रहा था, तब मुझे मेरे सौभाग्य पर गर्व हो रहा था।

मुझे याद है वो बूढ़ी माई जो पनीली आँखों से मुझे दुलार रही थी, वो छोटा बच्चा जो जय जय श्री राम के साथ मुझे अंक में समेटने के प्रयास में था। वो नवयुवक जिसकी आँखों मे मैने स्वयं के स्वरूप को राम बनते देखा, और करोड़ो ह्रदय के स्पंदन जो अब मुझमें स्पंदित हो रहे हैं।

जो देखा उसका वर्णन सम्भव नहीं, और जो अनुभव किया वह मेरे राम के नाम मे रच बस गया।

अब मैं अयोध्या पहुंच गया हूँ। अपने धाम। अपने राम के पास। अब देखना है कब मुझ पर राम कृपा होगी और मुझे उकेरा जाएगा। छैनी हथौड़ी का हर एक स्पर्श मुझे मेरे राम के और भी समीप ले जाएगा।

मैं शालिग्राम हूँ। मुझमें मेरे राम हैं।

जय श्रीराम।।

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