राजीव मिश्रा : बेचारा ऋषभ.. क्यों वह धोनी नहीं बन सकता…

हर गाड़ी का अपना कैरेक्टर होता है. गाड़ियां अपना कैरेक्टर अपने ड्राइवर पर रिफ्लेक्ट करती हैं. आप होंडा या टोयोटा चलाते हैं तो आप नॉर्मल सभ्य परिवार वाले लोग हैं… आप बिना बात किसी को ओवरटेक नहीं करेंगे, रोड रेज में नहीं उलझेंगे.. वहीं आप ऑडी या बीएमडब्ल्यू चलाते हैं तो आपको बर्दाश्त नहीं होगा कि कोई आपको ओवरटेक कर ले. रेड लाइट पर रुके होंगे तो लाइट के ग्रीन होते ही आप बाजू वाली गाड़ी से आगे निकलने के लिए पहले से ही इंजिन को रेव कर रहे होंगे. आप अगर वोल्वो चलाते हैं तो आप बेहद सेफ्टी कॉन्शियस होंगे. आप साठ की सड़क पर चालीस पर चलेंगे, और आपकी गाड़ी में एक लैब्राडोर या गोल्डन रिट्रीवर होगा ना कि कोई डॉबरमैन.

ये कुछ छोटे छोटे क्लीशे स्टीरियोटाइप हैं. चार साल पहले जब गाड़ी खरीदने गया था तो मार्केट की सभी कारें टेस्ट ड्राइव कर के देखी थी… तब लगा था कि ये सारे स्टीरियोटाइप एक वजह से हैं. जब आप बीएमडब्ल्यू की स्टीयरिंग पर होते हो तो लगता है, आप किसी को भी ठोक दोगे… आप सड़क के दादा हो. आप जब ऑडी की स्टीयरिंग पकड़ते हो तो आप फटी जींस और लेदर जैकेट पहने टीनएजर की माइंडसेट में आ जाते हो.. आपको ड्राइविंग एक खेल, एक रेस लगने लगता है… आप किसी को भी बगल से आगे निकलते देखना बर्दाश्त नहीं कर सकते.

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ऋषभ पंत अपने दिमाग से वही उछलता कूदता टीनएजर है. चाहे जेम्स एंडरसन की तेज गेंद को रिवर्स स्वीप मारना हो चाहे तेज गाड़ी चलाना.. उसका माइंडसेट ही यही है. उसने एक ही गलती की है.. वह मर्सिडीज चलाता था. मर्सिडीज दारू पीकर तेज गाड़ी चलाने वालों की कार नहीं है, यह सूट पहने ऑफिस जाते रिस्पेक्टेबल जेंटलमैन की गाड़ी है. ऋषभ ने अपना जो नुकसान किया है वह तो किया ही है, सबसे ज्यादा उसने मर्सिडीज की इमेज का नुकसान किया है. उसका जो माइंडसेट है उसमें उसे ऑडी चलानी चाहिए, मर्सिडीज नहीं… और उसे हमेशा उर्वशी रौतेला टाइप ही मिलेगी, ऐश्वर्या टाइप नहीं…

बेचारा ऋषभ…

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