प्रहलाद सबनानी : भारतीय बन रहे हैं अमेरिकी अर्थव्यवस्था के शिल्पकार
हाल ही में वर्ष 2020 के लिए अमेरिकी जनगणना से सम्बंधित जानकारी अमेरिका में जारी की गई है। जिसके अनुसार अमेरिका एक ऐसा देश है जिसमें विश्व की सबसे अधिक मानव प्रजातियां निवास करती हैं। अतः अमेरिका एक बहुप्रजातीय देश है।
उक्त जनगणना सम्बंधी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में एशियाई मूल के नागरिकों की संख्या पिछले 3 दशकों के दौरान तिगुनी से अधिक हो गई है और एशियाई मूल के नागरिकों के बीच भारतीय मूल के नागरिकों की जनसंख्या सबसे अधिक तेज गति से बढ़ रही है। आज 40 लाख भारतीय मूल के नागरिक अमेरिका में निवास कर रहे हैं जो अमेरिका की कुल आबादी का 1.2 प्रतिशत है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय मूल के नागरिकों का योगदान अतुलनीय है क्योंकि भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा (डॉक्टर) एवं साइंटिस्ट जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से बढ़ रही है। एशियाई मूल के नागरिकों के बीच में भारतीय मूल के नागरिकों का वेतन सबसे अधिक 123,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष है। जो अमेरिका में निवास कर रहे समस्त नागरिकों के औसत वेतन 65,000 अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगभग दुगना है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक एशियाई मूल के नागरिकों के बीच, भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या चीन के नागरिकों की संख्या को पीछे छोड़कर पहिले नम्बर पर आ जाएगी। हालांकि, अभी भी जिन भारतीयों को एच-1बी वीजा प्रदान किए गए हैं एवं जिन्हें अभी अमेरिका की नागरिकता मिलना शेष है, ऐसे भारतीयों की संख्या अमेरिका में आज सबसे अधिक है। प्रतिवर्ष लगभग 55,000 से 60,000 की संख्या के बीच भारतीयों को एच-1बी वीजा प्रदान किया जाता है अर्थात उन्हें अमेरिका में अस्थायी तौर पर रहने की स्वीकृति प्रदान की जाती है।
हालांकि अमेरिका में भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या अमेरिका की कुल आबादी का 1.2 प्रतिशत ही है, परंतु अमेरिका में भारतीय मूल के डॉक्टरों की संख्या अमेरिका में कुल डॉक्टरों की संख्या का 9 प्रतिशत है। अमेरिका में हर 7वें मरीज का इलाज भारतीय मूल के डॉक्टर द्वारा किया जाता है। अमेरिकी की सिलिकान वैली में भी भारतीय मूल के नागरिकों का दबदबा कायम हो गया है। सिलिकान वैली में कार्यरत प्रत्येक 10 तकनीकी कर्मचारियों में एक भारतीय मूल का है एवं अमेरिका में प्रारम्भ होने वाले प्रत्येक 3 स्टार्ट-अप में से एक स्टार्ट-अप को प्रारम्भ करने में भारतीय मूल के संस्थापक भी शामिल रहते है। अमेरिका में कुल स्थापित की गई टेक कम्पनियों में से 8 प्रतिशत कम्पनियों को भारतीय मूल के संस्थापक सदस्यों के सहयोग से स्थापित किया गया है। अमेरिका में व्यावसायिक स्कूल एवं संस्थानों में भी भारतीय मूल के नागरिकों का दबदबा कायम हो गया है क्योंकि इन व्यावसायिक स्कूलों एवं संस्थानों में भारतीय मूल के नागरिक ही शिक्षा प्रदान करते हैं एवं इनमें कई संस्थानों के डीन अथवा प्रिन्सिपल के पदों पर भारतीय मूल के नागरिक ही आसीन हैं। इसी प्रकार बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थानों में भी भारतीय मूल के नागरिक ही उच्च पदों पर आसीन हो गए हैं। आज अमेरिका की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी भारतीय मूल के नागरिक ही हैं।
पिछले कुछ समय से भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने अमेरिका के राजनैतिक क्षेत्र में भी अपनी पैठ बनाना शुरू कर दिया है। वर्ष 2020 में भारतीय मूल के लगभग 60 अमेरिकी नागरिकों ने स्टेट लेजिस्लेशन एवं अमेरिकी कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ा। इसके अतिरिक्त अन्य कई भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने स्थानीय स्तर पर भी चुनाव लड़े एवं इन चुनावों में विजय भी हासिल की।
अमेरिका में विशेष रूप से भारतीय मूल के नागरिकों ने बहुत अच्छी तरक्की की है। अमेरिका में भारतीय मूल के नागरिक इसलिए भी सफल हो रहे हैं क्योंकि वे 1990 के दशक में एक तो भारत से उच्च शिक्षा प्राप्त कर वर्क वीजा प्राप्त करने के उपरांत अमेरिका में आए थे अथवा वे अमेरिका में उन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आए थे, जिन क्षेत्रों में उच्च कौशल की आवश्यकता है। इसलिए भारतीयों ने अमेरिका में शीघ्र ही अपना उच्च स्थान बना लिया क्योंकि अमेरिका को भी उच्च तकनीकी एवं उच्च कौशल प्राप्त नागरिकों की अत्यंत आवश्यकता थी, उस समय पर अमेरिका में सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र अपने पैर पसार ही रहा था। विशेष रूप से न्यूयॉर्क, सैनफ़्रांसिस्को, बॉस्टन एवं डैलस आदि शहरों में स्थापित टेक कम्पनियों में भारतीय मूल के नागरिकों ने अपने रोजगार प्रारम्भ किए, इन स्थानों में अच्छे स्कूल एवं अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं पूर्व में ही उपलब्ध थीं। अतः भारतीय मूल के नागरिकों ने अपने परिवारों को अपने कार्य करने के स्थान के आसपास ही निवास में रक्खा इससे वे अपने बच्चों को अमेरिका में उच्च शिक्षा प्रदान करने में भी सफल रहे हैं।
हाल ही के समय में अमेरिका में रह रहे भारतीयों को अमेरिकी एच1बी वीजा, जिसके अंतर्गत अस्थाई अवधि के लिए अमेरिका में कार्य किया जा सकता है, तो अधिक मात्रा में जारी किया जा रहा है। परंतु, भारतीयों को अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है जिसके चलते भारतीयों का रुझान अब अमेरिका की ओर कम होकर, कनाडा, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान आदि अन्य विकसित देशों की ओर बढ़ता जा रहा है, इन देशों को भी भारतीय इंजिनीयरों एवं डॉक्टरों की बहुत अधिक आवश्यकता है। अमेरिकी प्रशासन को भारतीयों को इस सम्बंध में आ रही विभिन्न परेशानियों को दूर करने हेतु तुरंत कुछ उपाय करने चाहिए अन्यथा आगे आने वाले 4-5 वर्षों के दौरान अमेरिका में आने वाले उच्च शिक्षा एवं उच्च कौशल प्राप्त भारतीयों की संख्या कम हो सकती है।
उच्च कौशल प्राप्त भारतीयों मूल के नागरिकों की संख्या का विकसित देशों में तेजी से बढ़ना यह भी संकेत देता है कि इन देशों के नागरिकों का भारतीय संस्कृति की ओर रुझान बढ़ रहा है क्योंकि इसी कारण के चलते वे भारतीय मूल के नागरिकों को लगातार उच्च पदों पर आसीन करते जा रहे हैं एवं भारतीय मूल के नागरिकों पर इन देशों के नागरिकों का अपार विश्वास निर्मित हो गया है। साथ ही, इन देशों के नागरिकों को अब यह आभास भी होने लगा है कि इन विकसित देशों में विशेष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में निर्मित हुई कई समस्याओं का हल अब केवल भारतीय मूल के नागरिक ही निकाल सकते हैं, क्योंकि भारतीय सनातन संस्कृति के इतिहास में इस प्रकार की समस्याओं का कहीं पर भी जिक्र ही नहीं पाया जाता है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – psabnani@rediffmail.com
Veer Chhattisgarh
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प्रहलाद सबनानी : 5 लाख करोड़ डालर की भारतीय अर्थव्यवस्था ग्रामीण विकास के सहारे..विश्व स्तरीय संस्थाओं ने की प्रशंसा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए 6 विकास सूचक उच्च मानक वाले माने जाते हैं। इन विकास सूचकों में शामिल हैं – ट्रैक्टर एवं दोपहिया वाहनों की बिक्री में वृद्धि, उर्वरकों की बिक्री में वृद्धि, कृषि क्षेत्र में बैकों द्वारा प्रदान की जाने वाली ऋणराशि में वृद्धि, मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार की मांग में वृद्धि, कृषि और कृषि आधारित उत्पादों के निर्यात में वृद्धि और चावल एवं गेहूं का भंडारण करने की स्थिति (बफर मानक पर आधारित)। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहिले 6 माह के दौरान उक्त समस्त उच्च मानकों में वृद्धि दर बहुत अधिक रही है। जनवरी से सितम्बर 2022 की अवधि के दौरान 5.16 लाख ट्रैक्टर भारत में बेचे गए हैं। सितम्बर 2022 माह में ही कुल 53,310 ट्रैक्टर भारत में बिके हैं। इस मानक के अनुसार भारत के ग्रामीण इलाकों में खुशहाली आ रही है। इसी प्रकार, अप्रेल से सितम्बर 2022 की अवधि के दौरान कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं के निर्यात में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है तथा इसी अवधि के दौरान प्रसंस्कृत फलों और सब्ज़ियों के निर्यात में 42 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। चालू वित्त वर्ष के पहिले छह माह में कृषि क्षेत्र में कुल निर्यात 1377.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कुल कृषि निर्यात का लक्ष्य 2356 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निर्धारित किया गया है। इसी अवधि में दलहन के निर्यात में सबसे अधिक 144 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। उक्त वर्णित समस्त मानकों के अंतर्गत भारत के ग्रामीण इलाकों में तेज गति से हो रही वृद्धि दर को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की 74 प्रतिशत आबादी गावों में निवास करती थी और गावों की आबादी का दो तिहाई हिस्सा सीधे ही कृषि कार्यों से जुड़ा था। भारत के कृषि क्षेत्र में होने वाले कुल कार्य में से 96 प्रतिशत कार्य ग्रामीण इलाकों में ही होता है। भारत के विभिन्न राज्यों में आज भी 60 से 80 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए सीधे ही कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। हालांकि हाल ही के समय में ग्रामीण इलाकों में निवास करने वाले नागरिकों के लिए कृषि के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों जैसे सेवा एवं विनिर्माण के क्षेत्रों में भी रोजगार के बहुत अवसर निर्मित होने लगे हैं। ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे किसानों में 72 प्रतिशत किसान सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं। इस वर्ग के लिए कृषि क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के प्रयास किए जा रहे हैं और इस कार्य में सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है। आज भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों में, हो रही समस्त गतिविधियों में से लगभग 40 से 50 प्रतिशत गतिविधियां ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही हैं एवं सेवा क्षेत्र में हो रही कुल गतिविधियों में से लगभग 30 प्रतिशत गतिविधियां ग्रामीण इलाकों में चल रही हैं। ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों के लिए स्वयं सहायता समूह भी विकसित किए गए हैं और रोजगार के अधिकतम नए अवसर अब गैर कृषि आधारित क्षेत्रों में निर्मित हो रहे हैं।
भारत में शहरी एवं ग्रामीण इलाकों के बीच अब डिजिटल विभाजन भी बहुत कम हो गया है। भारत के ग्रामीण इलाकों में भी अब इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध हो गई है। इससे सेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संस्थानों को बहुत आसानी हो रही है और वे अपने कॉल सेंटर ग्रामीण इलाकों में स्थापित करने लगे हैं क्योंकि एक तो भारत का 70 प्रतिशत वर्क फोर्स ग्रामीण इलाकों में उपलब्ध है, दूसरे ग्रामीण इलाकों में कॉल सेंटर स्थापित करना तुलनात्मक रूप से कम खर्चीला रहता है और इससे इन संस्थानों की लाभप्रदता बढ़ जाती है।
एपेडा द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार भारत से इस वर्ष अभी तक कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं का निर्यात 25 प्रतिशत बढ़ा है। ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिक अब केवल खेती करके फसल ही नहीं उगा रहे हैं बल्कि कृषि पदार्थों को प्रसंस्कृत कर खाद्य पदार्थों के रूप में भी बेच रहे हैं। पहिले ग्रामीण इलाकों से कृषकों को अपनी फसल बेचने के लिए गांव से शहर तक आने में 6 से 7 घंटे लग जाते थे अब केवल 20 से 25 मिनट में ही अपने गांव से शहर तक पहुंच जाते हैं क्योंकि प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत 70 प्रतिशत से अधिक गावों को शहरों से पक्के रोड के माध्यम से जोड़ा जा चुका है। देश में 6 लाख से अधिक गांव हैं। इसका लाभ सीधे सीधे ही किसानों को मिला है और देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत हुई हैं।
एक अनुमान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने के लिए सेवा क्षेत्र का योगदान 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का होगा, उद्योग क्षेत्र का योगदान एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का होगा एवं शेष एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान कृषि क्षेत्र से आएगा। भारत की राष्ट्रीय आय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की 46 प्रतिशत की भागीदारी है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगातार बढ़ रहा है। आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान बढ़कर 20 प्रतिशत से अधिक हो गया है जबकि अभी भी गावों में निवासरत कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा कृषि कार्यों से जुड़ा है।
इसी प्रकार हाल ही के समय में भारत में ग्रामीण पर्यटन भी तेज गति से बढ़ रहा है क्योंकि भारत के शहरों में पर्यावरण की स्थिति दिनोंदिन बहुत बिगड़ती जा रही है एवं भारत के ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त हरियाली के चलते साफ हवा उपलब्ध है। इसलिए ऑक्सिजन ग्रहण करने के उद्देश्य से कई भारतीय अब ग्रामों की ओर रूख कर रहे हैं। विशेष रूप से जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, ओडिसा एवं केरला जैसे प्रदेशों में ग्रामीण पर्यटन तेजी से प्रगति कर रहा है। भारत में सांस्कृतिक पर्यटन विकसित करने की भी अच्छी सम्भावनाएं मौजूद हैं, अतः इस क्षेत्र में भी केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों द्वारा कार्य किया जा रहा है। इस क्षेत्र में नीति आयोग भी अपनी सक्रिय भूमिका अदा कर रहा है।
भारत में आज ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में लगातार अच्छी वृद्धि दृष्टिगोचर है। इससे भारत के ग्रामीण इलाके आर्थिक केंद्र के रूप में विकसित होते जा रहे हैं। कई कम्पनियां अब अपने उत्पादों के 10/20 ग्राम की पैकिंग के छोटे छोटे पैक ग्रामीण इलाकों में उपलब्ध करा रही हैं इससे उनके द्वारा निर्मित उत्पादों की बिक्री में अतुलनीय सुधार देखने में आ रहा है। उदाहरण के लिए, शेम्पु के छोटे पेकेट जिन्हें केवल एक बार उपयोग करके समाप्त किया जा सकता है, ग्रामों में बहुत ही सस्ती दरों पर एफएमजीसी कम्पनियों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है, इससे इस तरह के उत्पादों की मांग ग्रामीण इलाकों में बहुत बढ़ गई है और इस तरह से एफएमजीसी कम्पनियों को गावों के रूप में एक विशाल नया बाजार उपलब्ध हो गया है।
मनरेगा योजना के अंतर्गत भी ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं एवं इससे गावों में निवास कर रहे नागरिक बहुत मजबूत हुए हैं। जनधन योजना के अंतर्गत गावों में निवास कर रहे नागरिक बैंकों से जुड़ गए हैं। इससे बैकों से ऋणों की मांग भी बढ़ी है। उज्जवला योजना को लागू किए जाने से सबसे अधिक लाभ ग्रामीण महिलाओं को मिला है। ग्रामीण इलाकों में लकड़ियों की कटाई कम हुई है। ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। कुल मिलाकर यह भी कहा जा सकता है कि आज शहरी एवं ग्रामीण इलाकों के बीच विघटन खत्म हो रहा है क्योंक अब ग्रामीण इलाकों में भी सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती जा रही हैं अतः निकट भविष्य में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन भी कम होता दिखाई देने लगेगा।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – psabnani@rediffmail.com
लेखक श्री प्रहलाद सबनानी के बारे में
श्री प्रहलाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की।आपनेCAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF) मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित संघ(IBA),”C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं -( i ) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (11) बैंकिंग टुडे एवं (111) बैंकिंग अप्डेट।