सुरेंद्र किशोर : हाल के चुनावों में राहुल गांधी का यह नारा क्यों नहीं चला..!

हाल के चुनाव में राहुल गांधी का यह नारा नहीं चला कि
पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी मिले
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल में कहा था कि
पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी
मिलनी चाहिए।

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पर,इस बयान का कोई लाभ कांग्रेस को तीन राज्यों में नहीं मिला।
क्योंकि पिछड़ों को वाजिब हिस्सेदारी देने के मामले में कांग्रेस का रिकाॅर्ड अब तक खराब ही रहा है।
इसलिए मतदाताओं ने राहुल की बातों पर विश्वास नहीं किया।
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हां,नीतीश कुमार के ऐसे वायदे पर भाजपा विरोधी मतदातागण
विश्वास कर सकते हैं।
क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने पिछड़ों को हिस्सेदारी दी है।
अपने शासन के प्रारंभिक वर्षों में नीतीश कुमार सरकार ने तो अति पिछड़ों को पंचायतों में जो आरक्षण दे दिया
उससे खुद नीतीश की जाति कुर्मी के अनेक लोग नाराज हो गये।क्योंकि कुर्मी की पंचायतों में सीटें घट गईं।
उस नाराजगी को, जो प्रमुख कुर्मी नेता स्वर देने लगे थे,उन्हें बाद में कैबिनेट स्तर का पद देना पड़ा था।
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अब तो सबकी नजरें अगले लोक सभा चुनाव पर है।
अभी तो नरेंद्र मोदी का पलड़ा भारी लगता है।
हाल के विधान सभा चुनावों के बाद
तो मोदी का पलड़ा और भी भारी हो गया है।
वैसे कल क्या होगा,यह कहना कठिन है।
इंडी गठबंधन अब हल्का मालूम पड़ता है।
क्योंकि कांग्रेस किसी और को नेतृत्व देने के मूड में नहीं लग रही है।
कांग्रेस की राजनीतिक साख घट गई है।
तेलांगना की जीत भी कांग्रेस की जीत नहीं बल्कि अल्पसंख्यक लाॅबी की जीत है जिसने कांग्रेस पर कर्नाटका के बाद तेलांगना में दांव लगाया है।
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यदि 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले किसी गैर कांग्रेसी गंभीर नेता को इंडी गठबंधन का नेता नहीं बनाया गया तो उसे नुकसान होगा।
भाजपा विरोधी मतदाताओं के बीच यह संदेश जाएगा कि यदि सरकार बनेगी तो वह मनमोहन सरकार जैसी ही नकारा होगी।
यानी उसकी कमान कांग्रेस के शीर्ष परिवार के पास ही रहेगी।
यदि किसी गैर कांग्रेसी सुपात्र को इंडी गठबंधन 24 के चुनाव के लिए अपना नेता बना दे तो चुनावी मुकाबले में आज की अपेक्षा कुछ गंभीरता तो आ ही जाएगी।
हालांकि फिर भी पलड़ा मोदी का ही भारी रहेगा,ऐसे संकेत अभी मिल रहे हैं।
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4 दिसंबर 23

Veerchhattisgarh

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